इश्क़ का अंजाम Part 12 love story in hindi

                       इश्क़ का अंजाम Part 12 love story in hindi

इश्क़ का अंजाम , कहानी के पिछले भाग में अपने पढ़ा कि जब शक्ति कल्पना से मंजिल के बारे में पूछ रहा था उसी वक्त मंजिल किचन से माचिस लेने आयी थी। अपने कमरे में जाकर वो अपनी ही तस्वीरें जला रही थी। मंजिल से माचिस छीनने की कोशिश में वो मंजिल को अपनी बाँहो में खींच लेता है । लेकिन उसे तुरंत ही अपनी गलती का अहसास भी हो जाता है और वो उससे माचिस लेकर उसके कमरे से निकल जाता है । अब आगे –

सार्थक को ज्यादा चोट नहीं लगी थी ये बात शक्ति अच्छे से जानता था फिर भी उसने मंजिल से ऐसा कहा क्योकि वो नहीं चाहता था कि सार्थक एक्टिंग ही करता रह जाए और ये देवी जी उसके घर के सारे ग्रह दशा बिगाड़ दें ।

शक्ति की बातें असर भी कर गयी मंजिल पर । उसने सोच लिया था कि जब तक सार्थक ठीक नहीं हो जाता वो उससे कोई भी बहस नहीं करेगी क्योंकि चाहे जो भी हो वो बेचारी सही , गरीब सही , अकेली सही लेकिन वो बुजदिल या बेईमान नहीं थी । खिड़की के किनारे खड़े होकर उसने खुद को रिलैक्स करने की कोशिश की ।

कल्पना ने उसका पूरा कमरा अच्छे से साफ कर दिया था ताकि उसके पैर में कहीं काँच न लग जाये वरना फिर सार्थक ये नहीं देखेगा कि गलती किसकी है वो कल्पना पर ही चिल्लायेगा। कल्पना के जाने के बाद मंजिल भी अपने कमरे से निकल कर कर सार्थक के कमरे में चली गयी । वहाँ पर जाकर देखा तो सार्थक सो चुका था । थोड़ी देर वो कमरे में टहलती रही , फिर अचानक से न जाने क्या सोच कर नीचे कल्पना के पास चल दी।

मुझे बाहर जाना है , घर में थोड़ी उलझन महसूस हो रही है ।
आपने साहेब से पूछा बाहर जाने के लिए ?
गयी थी पूछने पर वो सो रहें हैं ।
तो जब वो उठ जाएंगे आप तब चली जाना। कल्पना ने शालीनता से कहा ।

तुम्हारे साहेब अगर सारी जिंदगी सोते रहेंगे तो क्या सारी जिंदगी मैं यहाँ सडूंगी । मंजिल ने लगभग गुस्से में चिल्लाते हुए कहा ।
मेमसाहब , देखने में आप जितनी प्यारी लगती है उससे ज्यादा जहर तो आप बोल लेती है। सलामती की दुआ न सही बद्दुआ के शब्द तो न निकालिये । ये कहकर कल्पना मंजिल के सामने से हट गयी क्योंकि वो मंजिल को और कुछ भी नहीं सुनाना चाहती थी ।

मंजिल कुछ देर वैसे ही खड़ी रही फिर पैर पटकती हुई अपने कमरे में चली गयी ।

इश्क़ का अंजाम
इश्क़ का अंजाम

रात में जब कल्पना खाना लेकर ऊपर गयी तो मंजिल ने खाना खाने से साफ इंकार कर दिया , कल्पना ने भी कोई जबरदस्ती नहीं की और थाली वापस ले आयी । अगले दिन जब कल्पना सार्थक के कमरे में गयी तब तक सार्थक उठ चुका था और फ्रेश होने के बाद खुद को दोबारा पट्टी से कवर कर रहा था।

आपने रात में मुझे जगाया क्यों नहीं ।
क्योंकि आप को चोट भी लगी है और आप थके भी थे ।
मंजिल ने रात में खाना खाया था ?
नहीं ।
क्यों?

पता नहीं , मैं तो लेकर गयी थी वो बोली कि मन नहीं है उनका। अच्छा ! कहीं मेरे लिए तो परेशान नहीं थी ? सार्थक ने बड़ी उम्मीद से कल्पना से पूछा । कल्पना कहना चाहती थी कि नहीं उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता अगर आप मर भी जाते तो , लेकिन सार्थक जिन उम्मीद भरी निगाहों से उसकी ओर देख रहा था उनको देख उसकी हिम्मत ही नहीं पड़ी सच बोलने की ।

अब पता तो नहीं है साहेब । बस रात में उन्हें एक बार आपके कमरे में आते देखा था, थोड़ी देर बाद निकल गयी थी । सच में वो आयी थी अच्छा कितनी देर रही !
यही करीब 10 मिनट तक ही ।

क्या उसने मुझे टच किया था या मेरे करीब बैठी थी । सार्थक बिल्कुल बच्चों जैसे हो गया था कल्पना के सामने । अब मैं कैसे देखती मैं तो नीचे ही थी फिर आप दोनों जब साथ हो तो मुझे नहीं लगा वहाँ पर मेरा जाना ठीक होता तभी मै…
यार आपको उसके पीछे देखने आने चाहिए था अब मुझे कैसे पता चलेगा कि वो यहाँ क्या करने आयी थी मुझे छुआ की नहीं । साला मैं सो ही गलत टाइम पे गया था। सार्थक फस्ट्रेशन में अपने बाल नोंचने लगा।

कल्पना को उसकी ये हालत देखी नहीं जा रही थी पता नहीं उसके साहेब एक लड़की के चक्कर में पड़ कर कैसे-कैसे हुए जा रहें हैं , उनकी सारी खुशी सिर्फ एक लड़की के कदमों में बिछ कर रह गयी है ।

आपके कमरे से निकल कर वो मेरे पास भी आयीं थी बोल रही थी कि आज दोपहर से उन्हें कुछ अच्छा नहीं लग रहा , कहीं घूम ले तो मन बहल जाये । लेकिन मैनें कहा कि वो ज्यादा परेशान न हो आपके ठीक होने के बाद जितना मन करे घूम ले आपके साथ। कल्पना ने आधे झूठ और आधे सच को सार्थक की खुशी के लिए एक ही फ्रेम में ला दिया था ।

सार्थक ने उत्साहित होते हुए अपने दोनों हाथ कल्पना के कंधे पर रखते हुए पूछा ,”क्या कहा ? उसने सच में ऐसा कहा कि उसे दोपहर से …..”

कैसी तबियत है आपकी अब ? दरवाजे पर मंजिल आकर खड़ी हो गयी थी। हलके नीले और सफेद लीजिये ग के कॉम्बिनेशन वाली फ्रॉक पहने हुए वो कोई परी सरीखी लग रही थी ।
मुझे क्या हुआ है मैं तो बिल्कुल ही ठीक हूँ । अपने वजन का भार न चाहते हुए उसे कल्पना पर डालना पड़ा । अच्छा ही हुआ जो उसने कल्पना के कंधे ऐन मौके पर पकड़े थे।

कहाँ का ठीक है आप । मालूम है डॉक्टर साहेब में सिर्फ बेड रेस्ट बोला है आपको लेकिन आप है कि. …. चलिए लेटिये दोबारा से। कल्पना ने सहारा देते हुए सार्थक को दोबारा बिस्तर पर बिठा दिया।
वहां क्यों खड़ी हो अंदर आ जाओ न । सार्थक ने मंजिल से कहा।
नहीं मैं बस तबियत पूछने आयी थी , बस जा ही रही हूँ अब । मंजिल पलट पड़ी।

अब अगर खड़ी ही है तो थोड़ी देर और खड़ी रह लीजिये तब तक मैं साहेब के लिए दोबारा से चाय ले आऊं। ये वाली तो ठंडी हो गयी है । मेरे जाते ही ये दोबारा उठ न जाये इस लिए…
हाँ जरूर , आप जाइये मैं यहीं हूँ ।
कल्पना के जाने के बाद मंजिल कमरे में एक कोने मे खड़ी हो गयी । आज भी वही कमरा है जो कल था लेकिन आज उसमें मंजिल की एक दो के सिवा और फोटो नहीं बची है ।

जानता हूँ बहुत खुश होगी तुम मेरा कमरा बर्बाद करके । लेकिन तुम्हें शायद मालूम नहीं ये तो बस ट्रेलर था मेरे पास तो तुम्हारी फोटोज की पूरी पिक्चर रखी है उसे कैसे बर्बाद करोगी ।
रस्सी जल गयी बल नहीं गया । इस हालत में होकर भी तुमको बहस करने की हिम्मत कहाँ से मिलती है ।
तुम्हारी मोहब्बत से ।
जोकि मैं करती नहीं ।

तो क्या हुआ अभी नहीं करती लेकिन आगे तो करोगी । सार्थक तकिये को टेढ़ा करके उसके सहारे पीठ करके लेट गया ।
इतना भरोसा नहीं करना चाहिए किसी पे क्योंकि भरोसा टूटने पर बहुत तकलीफ होती है ।

भरोसा , जिद, मोहब्बत, इबादत तुम अकेली क्या-क्या तोड़ पाओगी मेरी प्यारी मंजिल । सार्थक मुस्कुरा रहा था ।
आखिरी के तीन शब्द सुनकर मंजिल का मन हुआ कि पास रखे पॉट को उठा कर वो सार्थक के सर पर दे मारे और उसका एक ही बार में काम ख़त्म हो जाये । लेकिन उसे शक्ति के शब्द याद आ गएँ कि “मरे हुए को तो दुनिया मारती है ” मंजिल न तो ऐसी कमजोर दुनिया का हिस्सा है न ही खुद कमजोर ।

मैं देखती हूँ कि उन्हें चाय बनाने में इतना वक्त क्यों लग रहा है , वो शायद कोई और काम करने लगी होंगी। तुम्हारी दवाई में लेट हो रहा है । मंजिल वहां से जाने लगी तो पीछे से सार्थक ने मुस्कुराते हुए पूछा –
मेरी बातों से चेहरे पर आये ग्लो को छुपाने के लिए जा रही हो ।

मंजिल अंदर ही अंदर गुस्से का घूंट पीकर रह गयी , बिना कोई जवाब दिये वो वहां से निकल गयी ।

इश्क़ का अंजाम
इश्क़ का अंजाम

पीछे सार्थक न जाने क्या-क्या सोच कर मुस्कुराता रहा। उसे अपने इश्क़ का अंजाम सुखदायी होता नजर आ रहा था । उसकी इमेजिनेशन में मंजिल , मंजिल नहीं बल्कि मिसेज मंजिल मल्होत्रा हो चुकी थी जो उसकी फिल्म की सक्सेस पार्टी में उसकी प्यार की निशानी को गोद में लिए घूम रही थी । सारे फोटोग्राफर , पार्टी में मौजूद सारे मेहमान मंजिल के चारो तरफ ही थें , और वो खुद भी अपनी सक्सेस का सारा श्रेय अपनी वाइफ मंजिल को दे रहा था ।

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