इश्क़ का अंजाम Part 8
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अब आप पढ़ रहे है हमारी दूसरी कहानी इश्क़ का अंजाम….. अभी तक आपने इश्क़ का अंजाम part7 में पढ़ा कि सार्थक का उस घटना के बाद किसी भी काम में मन नहीं लगता, उसे हर वक्त मंजिल की फिक्र लगी रहती है। आज दो दिन बाद सार्थक मंजिल के कमरे में जाता है तो मंजिल उसकी चोट के बारे में पूछती है यह सुनकर सार्थक अंदर से खुश हो जाता लेकिन इस खुसी को अपने चेहरे पर नहीं आने देता है अब आगे इश्क़ का अंजाम part 8
सार्थक कमरे से बाहर तो निकल आया था लेकिन मंजिल का मासूम सा चेहरा उसकी आँखों के सामने बार-बार आ रहा था। उसकी गहरी काली आँखें , उनमें डूबते उतरते से सहमे हुए ख्वाब, उसके नाजुक से होंठ और उन होठों पर सभी के लिए अच्छे-अच्छे लफ्ज़ सिवाय सार्थक को छोड़कर और आज तो उसके लिए भी कुछ नर्म नाजुक बातें।
उसका मोम सा दिल और उसमें अपनों के लिए बहुत सारा प्यार बिना किसी शिकायत के। जबकी उसके अपनों ने ही हमेशा उसके साथ कितना बुरा किया है,अबकी बार जो किया है अगर उसे पता चल जाये तो शायद वो मर ही जाये लेकिन उन्हें एक शब्द भी न कह पायेगी और सार्थक के इश्क़ का अंजाम बहुत ही बुरा होगा फिर ।
सार्थक जितनी बार उसे सोचता उतनी बार उसके मन में एक ही सवाल आता – क्या आज के जमाने में भी इतनी मासूम लड़कियाँ होती है ?
मंजिल को मासूम कहा जाये या बेचारी इस पर कुछ भी स्पष्ट कह देना बड़ा मुश्किल है क्योंकि सार्थक की नजरों में वो बहुत प्यारी और मासूम रही है हमेशा से ही जबकि पूरी दुनिया ने उसे बेचारी ही समझा है ।
जब मंजिल की माँ गुजरी तब वो सिर्फ 4 साल की थी, उसके पापा ने जब दूसरी शादी की तो उन्हें माँ बुलाने लगी लेकिन उन्होंने मंजिल को अपनी बेटी कभी माना ही नहीं ।मंजिल की हालत अपनी छोटी बहन के आने के बाद और खराब होती गयी ।
घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने के कारण सिर्फ एक बच्चे की पढ़ाई अच्छे से हो सकती थी इसीलिए मंजिल की छोटी बहन पर ज्यादा ध्यान दिया गया। मंजिल को गर्ल्स स्कूल में डाल दिया गया और मंजिल की बहन गुंजल को कान्वेंट स्कूल में ।
मंजिल के पिता को ये खराब तो लगता था लेकिन वो कभी कुछ भी बोल नहीं पातें थें अपनी पत्नी के घर छोड़ मायके भाग जाने की धमकी से उन्हें बहुत डर लगता था । मंजिल अपनी छोटी बहन से बहुत प्यार करती थी और उसे अपनी माँ से डर भी लगता था इन दोंनों ही बातों की वजह से वो उन दोंनों की लगभग सारी बातें मान लिया करती थी ।
गुंजल को वैसे तो मंजिल से कुछ विशेष दिक्कत नहीं थी लेकिन उसकी खूबसूरती और सादगी से गुंजल को बहुत जलन थी । एक बार गुंजल स्कूटी न चला पाने की वजह से मंजिल को अपने कुछ स्कूल फ्रेंड्स की पार्टी पर ले गयी थी।
वहाँ जिसमें भी मंजिल को देखा वो उसका दीवाना हो गया था वो लड़का हो या लड़की। गुंजल ने इस बात की शिकायत अपनी माँ से कर दी थी कि मंजिल सज-धज कर उसको दोस्तों को फंसाने गयी थी। बस फिर क्या था मंजिल का उठना-बैठना मुश्किल कर दिया था उन दोनों ने। मेकअप वैसे भी उसके पास ज्यादा नहीं था और जो काजल बिंदी था भी उसको भी छीन लिया गया था ।
मंजिल के लिए ये नया नहीं था क्योंकि बचपन से ही उसके साथ उसकी खूबसूरती की वजह से भेदभाव होता आया था , अगर कभी घर में रिश्तेदार आते थें तो मंजिल को उसके कमरे तक ही सीमित कर दिया जाता था । वो लड़को से बात नहीं कर सकती थी , रिश्तेदारी में सिर्फ मामा के घर ही जा सकती थी , बाहर पार्टीज में नहीं जा सकती थी , शॉपिंग पर भी जितनी बार गयी बस अपने पिता के साथ ही , फोन का इस्तेमाल तो जैसे करना ही सख्त मना था उसके लिए।
इसीलिए शायद वो इतनी बंद स्वभाव की रह गयी । शायद इसी वजह से वो सार्थक से भी बचती रही। जब सार्थक ने उससे दोस्ती के लिए हाथ बढ़ाया था तो उसने उससे किनारा करते हुए अपने दायरे में ही रहना बेहतर समझा। लेकिन भला सार्थक कब मानने वाला था ऐसे , लग गया मंजिल के पीछे ।
दो-चार बार तूबा की मदद से उसे मिलने भी बुलाया और अपनी मोहब्बत जाहिर करने की कोशिश की, कॉलेज जाते समय उसका रास्ता रोक उसे समझाने की कोशिश भी की लेकिन उसे तो जैसे कोई फर्क ही नहीं पड़ता था इन सब बातों से बल्कि वो और भी जिद्दी और मुँहफट हो गयी थी सार्थक के साथ। लेकिन सार्थक को जैसे इन सब बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता था
एक बार सार्थक ने उसके बालों में फूल लगा दिया था बदले में उसने सार्थक के गाल पर भरपूर तमाचा रसीद दिया था। मंजिल की जगह कोई और होता तो शायद अगले ही पल उसकी लाश सार्थक के कदमों में पड़ी माफी मांग रही होती लेकिन ये उसकी मोहब्बत का पहला स्पर्श था इसीलिए वो बस खड़ा मुस्कुराता ही रहा था , जो की मंजिल का खून जलाने के लिए काफी था।
उसके कुछ दिन तक मंजिल सार्थक को कहीं दिखी नहीं तब उसे तूबा से पता चला कि उसके घर में किसी ने शिकायत कर दी थी की मंजिल किसी लड़के के साथ आती-जाती है उसके बाद से उन लोगों ने उसे कॉलेज जाने से भी मना कर दिया था । ये सब सुन के सार्थक को बहुत गुस्सा आया था लेकिन उसने ठंडे दिमाग़ से काम लेते हुए मंजिल को छोड़कर उसके घर वालों की कुंडली निकालनी शुरु कर दी थी ।
हालाँकि कुछ दिनों बाद मंजिल ने दोबारा से कॉलेज जाना शुरु कर दिया था लेकिन अब सार्थक पहले से ज्यादा सावधान और जिम्मेदार बनकर उसको फॉलो कर रहा था , ताकि उसकी वजह से मंजिल को फिर किसी दिक्कत का सामना न करना पड़े ।
बाकी लोगों की तरफ तूबा के लिए मंजिल बेचारी थी और सार्थक के लिए वो इन्हीं सब बातों के लिए मासूम ।
सार्थक कमरे से थोड़ी दूर जाकर सिगरेट सुलगाने लगा। पीछे से कल्पना आकर खड़ी हो गयी ।
साहब खाना लगा दूँ चलके ? उसने नम्रता से पूछा ।
नहीं अभी नहीं ! उसने उसी तरह खोये हुए जवाब दिया ।
कोई दिक्कत है क्या सर ।
नहीं … लेकिन एक बात पूछूँ आपसे ? सार्थक ने कल्पना की तरफ पलटते हुए कहा ।
हाँ पूछिए न !
कभी-कभी जो मन करे वो तुरंत कर लेना चाहिए न वरना बाद में फिर पछताना पड़ता है कि काश कर लेता ।
हाँ लेकिन उसके लिए पहले ये भी तो देखना चाहिए कि हम सही कर रहें हैं की नहीं। वो सकता हो हम गलत कर बैठे बाद में फिर भी तो पछताना ही पड़ेगा न कि काश हम ये नहीं करतें ।
किसी को गले लगाना कैसे गलत हो सकता है ?
किसी अपने को गले लगाना उसे छूना या देखना इसमें कुछ भी गलत नहीं है।
मंजिल मेरी नहीं हैं क्या ? उसने आशंका भरी नजरों से कल्पना की तरफ देखा ।
अच्छा तो आप उनकी बात कर रहें हैं , उनके बारे में तो मैं इतना ही कहना चाहूंगी या तो वो सिरफिरी है या बहुत ऊंचे सिद्धांतों की इसीलिए आपको मना कर रहीं हैं। तभी बस इतना ही कहना चाहूंगी कि उनके साथ जो भी कीजियेगा उनकी मर्जी से कीजियेगा वरना पता नहीं अबकी क्या मार दें आपको । मुझे उनपर जरा भी भरोसा नहीं ।
मुझे लगता है कि अभी उसकी जैसी मर्जी कर ले लेकिन मेरे इश्क़ का अंजाम वही होगा जो मेरी मर्जी होगी देख लेना आप।
चाहती तो मैं भी यही हूँ और भगवान ने चाहा तो होगा भी यही। ऊपरवाले के आगे भला किसकी चली है जो इनकी ही चल जाएगी।
अच्छा चलिए आप खाना निकालिए चलके मैं शॉवर लेकर आता हूँ । सार्थक के चेहरे पर मुस्कुराहट तैर रही थी क्योंकि जहाँ भी कोई उसे ऐसा मिल जाता है जो उसके इश्क की आग को हवा देता है और कहता है कि मंजिल उसकी होगी तो मानो उसके चेहरे पर बच्चों जैसी मुस्कुराहट खेलने लगती है ।
वैसे अभी तो ज्यादा ऐसे लोग नहीं हैं तूबा, कल्पना और………. मंजिल की सौतेली माँ को छोड़कर जो ये दुआ करते हो उसके लिए । सार्थक ने सिगरेट को फ्लावर पॉट में बुझा दिया ।
अच्छा ठीक है ।
अच्छा वो मंजिल का खाना ……
वो उन्हीं के कमरे में पहुँचा दूंगी क्योंकि वो नीचे आपके साथ तो खाने आएँगी नहीं चाहे जितना समझा लो जाके इसीलिए कौन माथा-पच्ची करे जाकर इतने टाइम। कल्पना ने चलते हुए कहा।
ठीक है फिर आप मेरा ही लगा दीजिये चलके । कहता हुआ सार्थक अपने कमरे की ओर बढ़ चला ।
To be continued. ……
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