इश्क़ का अनोखा इजहारनामा 1 । College going love story .

                        इश्क़ का अनोखा इजहारनामा । College going love story .

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पूरी तरह प्रेम को समर्पित इस वेबसाइट पर आपको मिलती हैं हर तरह की रंग-ढंग और स्वाद वाली love stories । इसी कड़ी में आपके सामने हैं 90s के प्यार की यादें ताजा कर देने वाली एक love story – इश्क़ का अनोखा इजहारनामा । जोकि आधारित है रितिका और हेमंत के अनकहे प्यार पर ।

क्या चाहिए ? उसने आगे बढ़ते हुए पूछा
वही, एक चीज ! उसने उसके चारों तरफ साइकिल घूमाते हुए कहा।
क्या ?
तुम्हारा नंबर ।
मेरे पास तुम्हें देने के लिए सिर्फ वही एक चीज है ।
क्या?
चप्पल । उसने अपने एक पैर से चप्पल उतारते हुए कहा। बेबस सा लड़का बेचारा तुरंत वहां से अपनी साइकिल लेकर रवाना हो गया क्योंकि वो फिर से वैसे ही नहीं पीटना चाहता था जैसे अभी कुछ दिन पहले पिटा था। पीछे से रितिका और उसकी सहेली आकांक्षा दोनों हंसती रही।

यार एटलीस्ट अब तो उसे अपना नंबर दे दे हाईस्कूल से तेरा पीछा कर रहा है अब तो ग्रेजुएशन भी पूरा होने को है । दे दे ना नंबर बेचारा कितना सीधा लगता है। आकांक्षा ने मजे लेने के इरादे से कहा।
तुझे इतनी ही दया आती है और तुझे इतना ही सीधा लगता है वो तो तू क्यों नहीं दे देती उसको अपना नंबर?
मैं तो दे देती यार पर कम्बख्त मुझसे वो बात ही नहीं करता ।
लगता है चाची को बताना पड़ेगा कि तु कॉलेज पढ़ने नहीं लड़को को अपना नंबर बाँटने जाती है।

तो बता दे ना कमसकम इसी बहाने मेरे घर में मेरी शादी की बात तो चलेगी वरना किसी को मेरी जवानी दिखाई ही नहीं दे रही । लड़की 21 की होने वाली है , इशारों-इशारों में शादी की ख्वाहिश दिखाती हैं लेकिन माँ-बाप हैं कि उन्हें कुछ समझ ही में नहीं आता है। एक तो कोई लड़का भाव नहीं देता उसपर से घरवाले मेरी परवाह नहीं करतें , तु देखना मैं कुंवारी ही मर जाउंगी।

हे भगवान तेरा रोज-रोज का यही दुख रहता है एक काम करती हूँ तेरी मैं ही किसी से शादी करवा देती हूँ बस। रितिका ने बैग को सही करते हुए कहा।
किसी से नहीं इसी लड़के से ।

पागल है क्या बेवकूफ कहीं की। इसी तरफ दोनों सहेलियाँ रोज ही बात करते-करते अपने कॉलेज पहुंचने का रास्ता पूरा कर लेती है। इस तरफ रोज ही आकांक्षा अपनी शादी पर चर्चा करती है और इसी तरफ वो लड़का लगभग रोज ही रितिका के आगे पीछे लगा रहता है ।

आज भी जब वो दोंनों तैयार होकर कॉलेज के लिए निकली तो पीछे से वो लड़का भी निकला लेकिन काफी दूरी से डरा-डरा हुआ। हेमंत ….हाँ यही नाम था उस बेचारे का जो पिछले चार- पाँच सालों से रितिका के पीछे साइकिल घुमा रहा था लेकिन नाम पूछने और नंबर मांगने के सिवा शायद ही उसने कभी रितिका से कुछ और कहा या पूछा हो ।

वो देख देख उधर……!!! उसे इतना दूरी से पीछे पीछे आता देख दोनों सहेलियाँ खिलखिला के हँसने लगीं।
लगता हैं उस दिन की चप्पल और कल की फटकार का बहुत बुरा असर हो गया है बेचारे के दिमाग़ पर।
अरे चलो किसी चीज का तो असर हुआ अब तो नहीं परेशान करेगा रोज-रोज ।

अगले 3-4 दिन रितिका कॉलेज नहीं गयी उसके पापा को काम से कहीं जाना पड़ा तो उसे किराने की दुकान देखनी पड़ी। रही बात आकांक्षा कि तो वो तो कॉलेज न जाने के बहाने ही तलाशा करती थी।
जब कुछ दिन बाद दोनों सहेलियाँ फिर उसी गली से निकली तो रितिका के कदम थोड़े धीमे चल रहें थें और उसकी नजरें काफी तेजी से इधर उधर भाग रही थीं ।

जल्दी चल ना यार देर हो जाएगी।
चल तो रही हूँ अब क्या भागने लग जाऊँ? उसी तरह धीरे चलते उसने कहा। कॉलेज नजदीक आ चुका था और हेमंत दोनों को ही कहीं नहीं दिखाई दिया।

अगले दिन भी वही हुआ । तीसरे दिन जब वो दोनो कॉलेज जा रही थी तो अचानक से आकांक्षा ने रितिका का हाथ दबाकर कहा । उधर देख रीतू…….! रितिका ने गर्दन पीछे की तरफ घुमा कर देखा तो हेमंत किसी और लड़की से साइकिल के सहारे खड़ा होकर बात कर रहा था । वो लड़की मुस्कुरा रही थी ड्रेस देख कर लग रहा था की उन्हीं के कॉलेज में ही पढ़ती है।

चल ना देर हो जाएगी। रितिका ने आकांक्षा का हाथ पकड़ के चलते हुए कहा।
कॉलेज की छुट्टी के बाद जब उन दोनो ने हेमंत को कॉलेज में देखा तो थोड़ा हैरान हुई क्योंकि आजतक वो कभी कॉलेज तक नहीं आया था लेकिन ये हैरानी जल्द ही दूर हो गयी जब सुबह वाली वही लड़की जल्दी से जाकर उसकी साइकिल के पीछे बैठ गयी और उसके कन्धों पर अपने दोनो हाथ टिका दिये।

तू चल ना ! ये सब ऐसे ही होते है , जरा भी सब्र नहीं होता इन लफंगों में । आकांक्षा रितिका का हाथ पकड़कर तेजी से वहां से निकली।
तू मुझे क्यों खींच रही है यार मैं कौन सा उस गधे के पीछे निकल लूँगी । मुझे मालूम नहीं क्या इस आवारा के बारे में । सबक तो तुम्हें लेना चाहिए तुम्हीं पीछे पड़ी थी न इस जैसे लड़के से शादी करने के लिए ।

इन जैसों से तो मैं 21 की क्या 71 की भी हो जाऊं तो भी शादी नहीं करूंगी । आकांक्षा ने मुँह बनाते हुए कहा।
अगले दिन भी कॉलेज जाने के रास्ते में हेमंत दिखाई दिया वो भी उसी लड़की को अपनी साइकिल के पीछे बिठाये हुए। दोंनों सहेलियों ने तुरंत मुँह फेर लिया ।

कहने को तो उन दोंनों को हेमंत से कोई फर्क नहीं पड़ता था लेकिन जब से उस नई लड़की की एंट्री हुई थी तबसे पिछले पाँच-छह सालों से चला आ रहा क्रम टूटने लगा था जिसकी रितिका को आदत हो चुकी थी। आप तो जानते ही होंगे जब किसी चीज की आदत हो जाती है तो वो इतनी आसानी से छूटती नहीं फिर ।

रोज की तरह ही दोंनों सहेलियाँ कॉलेज जाने के लिए , आज भी हेमंत को देखा उस लड़की के घर के बाहर जैसा तीन-चार दिन से रोज देख रहीं थीं ।लेकिन आज कुछ अलग हुआ जो रोज नहीं होता था।

इश्क़ का अनोखा इजहारनामा

इश्क़ का अनोखा इजहारनामा

रितिका आज बिल्कुल साइड से नहीं निकली बल्कि सीधा हेमंत की साइकिल के पास चली गयी जबतक की आकांक्षा उसे रोकती वो उस लड़की से उलझ गयी।
भगवान ने तुम्हें चलने के लिए पैर नहीं दिये हैं क्या जो रोज-रोज इसकी साइकिल पर बैठ कर जाना पड़ रहा है तुमको।
अरे आपको क्या दिक्कत हो रही है मेरे साइकिल से बैठ…..

हाँ हो रही है मुझे दिक्कत और क्यों हो रही है ये तुम्हें क्यों बताऊँ तुम्हारे लिए तो इतना ही जान लेना बेहतर है की आइंदा से इस लड़के की साइकिल पर अगर चिपक के बैठी मिल गयी तो कसम से वहीं मारूंगी तुमको।
ये क्या उलटी-सीधी बात कर रहीं हैं आप उससे मुझसे कहिए न उस बेचारी….

हाँ वो बेचारी और आप उसके हितैषी उसके एकमात्र सहारे है न। शकल देखी है अपनी चोरों के सरदार जैसी , आँखें ऐसी भैंगी है जैसे सौ जन्म से ही तिरछा देख रहे हो । उल्लू की शकल खुद की है उसे बेचारी बोल रहें है जनाब । ये लड़की तू सच बोल तुझे इस बंदर में दिख क्या गया जो तू इसके पीछे हो ली।

बस कर रीतू. ..! आकांक्षा ने उसका हाथ पकड़ के खींचते हुए कहा।
मैं बस करू? पिछले 5 सालों से ये लड़का मेरे पीछे साइकिल घुमा रहा था , जब इसे लगा की मैं नहीं पटूंगी इससे तो दूसरी लड़की फंसा ली , कमीना आदमी।

देखिये रितिका जी आप जैसा समझ रही है वैसा कुछ नहीं है। हेमंत ने कुछ समझाने के लहज़े में बोला।
मैं तुमको अंन्धी लग रही हूँ या बेवकूफ या फिर पागल । ऐसा लग रहा है तुम्हें तो बता दूँ ऐसा कुछ मेरे साथ नहीं तुम लोग के साथ है ये लड़की अन्धी है और तुम बेवकूफ ।

देखिए ये कोई तमीज़ नहीं हैं किसी से बात करने की आप जो इन्हें और मुझे बोल रही है ये सही नहीं कर रहीं ।
हाँ तुम तो बड़ा सही कर रही होगी न किसी और के बॉयफ्रेंड के साथ चिपक के बैठ के।
बॉयफ्रेंड. ..!!!! ये शब्द एक साथ वहाँ मौजूद तीनों लोगों के मुँह से निकला।

मैं ? किसका बॉयफ्रेंड ?
मेरे ……।
आपका ?
हाँ ।
कबसे ?
आज से और अभी से ।
लेकिन ……

लेकिन तो तुम्हारे लिए यही अच्छा है की दोबारा से ये लड़की मुझे तुम्हारी साइकिल पर दिख न जाये वरना बहुत बुरा होगा तुम दोंनों के साथ । पूरे मोहल्ले ने देखा है तुम्हें मेरे पीछे साइकिल घुमाते , चिल्ला-चिल्ला के बोल दूंगी की तुमने मुझे इस्तेमाल किया और शादी के नाम पर मुकर गये ।

इतना सब सुनके सिर्फ आकांक्षा को ही नहीं हेमंत को भी चक्कर आ रहें थें और वो बेचारी तीसरी लड़की तो कुछ समझ ही नहीं पा रही थी।
इसका मतलब की …. आप …मुझसे प्यार करती हो ? हेमंत ने लगभग हकलाते हुए पूछा ।

अरे भाड़ में जाये प्यार-व्यार ! अब मुझे सीधा शादी करनी है वो भी तुमसे वो भी जल्द से जल्द ।
आकांक्षा अभी एक सदमे से निकली नहीं थी की दूसरे में जा फंसी यही हाल हेमंत का भी था। लेकिन हेमंत के चेहरे में एक अलग सी चमक एक अलग तरह का ब्लश और छोटी सी स्माइल भी नजर आ रही थी ।

हमें कॉलेज जाने में देर हो रही है लेकिन बोले जा रही हूँ की ये क्या कोई भी लड़की मुझे तुम्हें टच करती हुई दिखाई न दे वरना उसके हाथ तो तोडूंगी ही तोडूंगी तुम्हारा शरीर भी तोड़ दूंगी।
मुझे लगता है की आप जब इतनी प्रोटेक्टिव है ही इनके लिए तो आप ही इनकी साइकिल पर बैठ के जाया करें मैं आज से आपकी सहेली के साथ जाया करूंगी। वैसे भी जल्द ही मेरी स्कूटी आने वाली है तब तो मुझे कोई दिक्कत ही नहीं रहेगी है न भैय्या ।

भैय्या ……….! हैरान होने की बारी अब रितिका की थी ।
हाँ हेमंत भैय्या , आप इन्हें ही बिठा ले ले जाइये क्योकि मुझे अपनी जिंदगी प्यारी है ।
कुछ और हुआ या नहीं लेकिन आकांक्षा खिलखिला के हँस पड़ी , हँसी तो उन दोंनो को भी बहुत आ रही थी लेकिन रितिका का एकदम सफ़ेद चेहरा और शर्म हैरानी और पछतावे से भरी हुई आँखें देखकर वो दोंनों बिल्कुल शांत थें।

ये मेरी ममेरी बहन है अभी इसका एडमिशन हुआ है आपके ही कॉलेज में तो जब तक इनकी स्कूटी नही आ रही है तब तक मामा ने मुझे इन्हें कॉलेज छोड़ने को बोला था। तभी मैं आपकी तरफ नहीं आ पा रहा था सोचता था की इसे कुछ भी पता चल गया तो पूरे घर में न पता चल जाये तभी आपसे दूर ही रह रहा था। हेमंत बहुत ही शालीन मुस्कुराहट के साथ रितिका के चेहरे की तरफ देखता हुआ बोल रहा था ।

तू तो गयी बेटा । आकांक्षा का हँसना रुक ही नहीं रहा था। रितिका के अंदर अगर एक शब्द भी बोलने की ताकत होती तो वो चिल्ला कर सबसे पहले उसका हँसना ही बंद करवाती । वो तो बेचारी सिर झुकाये अपने पैर के अंगूठे को जमीन के अंदर धंसा देने को तत्पर थी । वो तीनों एक दूसरे को देख रहे थें और मन ही मन उसकी दशा पर हँस रहें थें।

रितिका की बहुत किरकिरी हो गयी थी और ज्यादा किरकिरी कराने के मूड में वो बिल्कुल भी नहीं थी।
हाँ तो पहले बताना चाहिए था न कि तुम्हारी बहन है ये। उसने अपनी शर्म , संकोच और घबराहट को छुपाते हुए कहा।

आपने सुना ही नहीं और अच्छा किया जो नहीं सुना वरना फिर जो जो मुझे सुनने को मिला है वो कभी नहीं मिलता चाहे मैं आपके पीछे सारी जिंदगी साइकिल घूमाता रहता। यकीन करना थोड़ा मुश्किल है लेकिन हाँ आपको ये बंदर जैसी शकल वाला बेवकूफ आदमी पसंद आ चुका है । हेमंत के चेहरे पर अब खुलकर मुस्कुराहट आ गयी थी और पास खड़ी दोनों लड़कियां भी’ हाय…!!!’ कहके हँसने लगी । रितिका एक बार फिर शरमा कर रह गयी।
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