हेलो दोस्तो कैसे है आप, मैं आशा करता हूं आप सब अच्छे होंगे। आपका हमारी अपनी वेबसाइट atozlove पर स्वागत है। दोस्तो आपने हमारी पिछली स्टोरी डायरी-a cute love story को बहुत ही प्यार दिया उसके लिए आप सब का बहुत बहुत धन्यवाद। दोस्तो आज मैं एक अलग तरह की love story PSYCHO LOVER जो एक तरह की PSYCHO लव स्टोरी है जिसे पढ़ कर आपको मजा आने वाला हैं- love story
ओजू की किस्मत में कुछ लिखा हो या नहीं लेकिन अकेलापन बहुत ज्यादा लिखा था एक बार उसे उसके पापा अकेला छोड़ गएँ थें और आज लक्ष्य और उसकी माँ दोंनो उसे अकेला छोड़ गएँ । आदित्य ने जैसे ही ओजू की माँ की नब्ज़ चेक की उसका चेहरा पिला पड़ गया , बड़ी मुश्किल से उसने हिम्मत करके ओजू की तरफ देखा जो उसी की तरफ टकटकी लगाएं किसी उम्मीद से देख रही थी। ओजू की आँखों में जो उम्मीद की एक किरण बाकी थी उसका सूरज आदित्य की आवाज पर टिका था , लेकिन अब वो सूरज भी डूबता सा जान पड़ा आदित्य की आवाज बंद हो गयी ।
आदि….क्या हुआ मम्मी…की सांसे चल रही हैं न वो अभी मेरे पास ही हैं न ? मुझे छोड़ेंगी तो नहीं ! उसकी गोद में अपनी माँ का सर था और निगाहें आदित्य की तरफ थी । आदित्य को कुछ न बोलता देख ओजू को बड़ी बेचैनी हुई उसने अपनी माँ को एक दो बार पुकारा साँसे देखी जब सब कुछ थमता हुआ मालूम हुआ तो उसने फिर आदित्य की तरफ देखा।
आदित्य बोलो न माँ ठीक हैं न ? उसकी हिचकी बंध गयी थी आँखें डर से फैलकर बड़ी हो गयी थी।
चाचा , गाड़ी रोक दो….और देवू के हॉस्टल में फोन करके उसे घर बुला लो कल सुबह ही। इतना कहकर कार रुकते ही वो तुरंत नीचे उतर गया जैसे ओजू का सामना न करना चाहता हो । क्या हुआ गाड़ी क्यों रोकी ? हमें जल्दी हॉस्पिटल पहुंचना है न ? वापस कार में आओ , हमारे पास ज्यादा वक्त नहीं है। आदित्य….सुनते क्यों नहीं बाहर जाकर क्यों खड़े हो गये?आदि….। ओजू गुस्सा करती हुई खुद भी कार से बाहर आ गयी। क्या हैं साथ चलते क्यों नहीं ? डर गएँ? अरे मम्मी को हो जाता है कभी-कभी ऐसा सुबह तक ठीक हो जाएगी वो तुम बस साथ चलो , चलो अभी साथ । ओजू उसका हाथ पकड़ के कार के अंदर घसीटने लगी। आदित्य ने कसके उसे अपनी तरफ खींच लिया और सीने से लगाकर रोते हुए कहा ,” ओजू आंटी नहीं रहीं!” उसका बस इतना कहना भर था कि ओजू ने उसे धक्का देकर दूर किया और उसी पर बरस पड़ी। ,’ तुम डॉक्टर होकर ऐसी बात कह रहें हो ? कुछ करना-कराना आता भी हैं तुम्हें ? तब से देख रही हूँ कभी ये कर रहें हो माँ के साथ कभी वो , फिर कुछ नहीं कर पाएं तो बोल दिया कि. . …. बोल दिया कि आंटी नहीं रही ! ओजू का गला भर आया था। ,’ जानते भी हो तुम मेरी माँ मेरी कोई बात नहीं टालती, तो आज कैसे ? तुमने कुछ गलती की है , तुम्हें आता ही नहीं डॉक्टरी करना, आएगा कैसे जब पढ़ाई करनी थी तो तुमने नशाखोरी की और तो कुछ मालूम कहाँ से हो। मैं ही पागल थी जो तुम्हारे भरोसे बैठ गयी अरे जो खुद मरीज है वो दूसरों का इलाज क्या खाक करेगा ! हो न हो तुमने आज भी नशा किया है देख नहीं रहें मेरी माँ कैसे आराम से सो रहीं हैं बड़े आये। ओजू आदित्य पर भड़क रही थी और वो उसके चेहरे की तरफ देख के रोता ही जा रहा था। सही कह रही है वो मुझे डॉक्टरी नहीं आती , किसी डॉक्टर के की आँखों के सामने कोई मरीज मर जाये और वो हाथ पर हाथ धरे बैठा रहे तो किस बात का डॉक्टर वो ?
तुम न बस मुझे रुलाना जानते हो, इसीलिए तो ये सब ढोंग कर रहें हो लेकिन अब ये ओजू तुम्हारी वजह से रोने वाली लड़की नहीं रही। मैं अकेले जा रही हूँ माँ को लेकर दिल्ली,मुंबई , अमेरिका , कनाडा जहाँ भी माँ ठीक होंगी उनका इलाज कराऊँगी और तुम्हारे सामने खड़ा करके दिखाऊंगी। ओजू ने अपने आँसू पोछ डाले और कार की तरफ पलटी लेकिन एक आवाज़ ने उसे फिर रुला दिया।
मुर्दों का इलाज दुनिया के किसी कोने में नहीं होता बेटा। उसके चाचा इतनी देर बात हिम्मत करके बोल सकें । ओजू को लगा जैसे उसको किसी ने एक गहरे कुएँ में धकेल दिया है जिसका कोई अंत ही नहीं वो गिरती ही जा रही है। उसने एक उलझी हुई साँस ली और अपनी माँ के चेहरे की तरफ देखा जो आँखे बंद किए हुए मुस्कुरा रहा था इसके सिवा उनके चेहरे पर कोई और भाव नहीं दिख रहा था न कोई उम्मीद, न कोई हताशा बस सुकून। क्या वाकईं लक्ष्य की बात उनके इतने अंदर तक बैठ गयी थी? क्यों छोड़ गयीं मुझे क्या अपनी बेटी की बात पर भरोसा नहीं रहा था? जब बोल दिया था कि उसे छोड़ दूंगी फिर क्यों छोड़ गयीं मुझे कैसे लगा आपको कि आपसे ऊपर भी कोई हो सकता है मेरे लिए? ओजू की आँखों से बहते आंसू कई सारे सवाल लिये थे। उसने अपने कदम बढ़ाने की कोशिश की लेकिन…. । ओजू. … आदित्य ने गिरती हुई ओजू को संभालने की कोशिश की लेकिन जब तक वो रोक पता वो गिर पड़ी। आदित्य ने उसे तुरंत अपनी गोद में उठा लिया।
जिस आँगन में सुबह-सुबह तुलसी भजन होतें थें आज वहाँ रोना पीटना मचा था। मोहल्ले की औरतें ऐसे छाती पीट-पीट कर रो रहीं थीं जैसे उनका ही कोई सगा दुनिया से रुख़सत हो गया हो। कुछ लोग ओजू से सहानुभूति दिखा रहें थें । “हाय ! बाप को गएँ सालभर भी न हुआ होगा , बेचारी की माँ भी चल बसी।” बेटा दिल छोटा न करो ये तो दुनिया है जो आया है जायेगा तो है ही यही इसका नियम है ।” ,” कुछ नहीं ये खेल हैं ऊपर वाले का इसमे कोई क्या कर सकता है, जितना उसे अच्छा लगा उसने खिलाया अब मन उब गया तो अपने खिलौने को वापस बुला लिया।” बेटा हिम्मत से काम लो और देवू को सम्भालो तुम्हें कुछ हो गया तो बेचारा वो कहाँ जायेगा ? अब तुम्हें ही उसकी माँ-बाप सब बनना है इसीलिए खुद को अंदर से मजबूत करो।” और न जाने कितनी ही समझाइशें और सलाहें उसे दी जा रही थी जो उसने पहले भी कई बार कई जगहें सुनी थी। शायद इन सलाहों का कट,कॉपी,पेस्ट चलता था ओरिजनालिटी के नाम पर कोई अपनी तरफ से ज्यादा आँसू एड कर लेता था तो कोई एक्टिंग।
आदित्य अंतिम क्रिया का इंतजाम करने में ही बिजी था। एक बार घर के अंदर या ओजू को हिम्मत देने नहीं आया। सच कहा जाएँ तो आना ही नहीं चाहता था क्योकि ओजू की नजरों का सामना करना उसके बस की बात नहीं थी। जब देवू आ गया तो आदित्य का दिल हुआ की जाकर उसे एकबार अपने सीने से लगा ले थोड़ा दुलार कर ले लेकिन नहीं कर पाया वो। उसके अंदर ओजू का डर उसका रोता चेहरा बहुत बुरी तरह बैठ गया था।
जब ओजू की माँ की लाश चिता पर लिटाई गयी तब आदित्य ने अचानक ही कुछ गौर किया ,” ये क्या है , ऐसा कैसे हो सकता हैं? हवा के झोंके से जब सफ़ेद चादर हटी तो आदित्य को कुछ और नजर आया उसने बजाय चादर दोबारा ढकने के चादर थोड़ी और हटाई और पूरी बॉडी को ध्यान से देखा आदित्य का मन हुआ कि वो एक झटके में पूरी चादर हटा दे लेकिन इसके लिए उसे परमिशन की जरूरत थी ओजू की। लेकिन ओजू से तो वो कल से बचता आ रहा था उसकी हिम्मत ही नहीं बन पा रहीं थी उसका सामना करने की, पर अब उसे ये करना ही होगा वो वहाँ से भागा और सडक पर पहुँचतें ही एक कार से लिफ्ट ले ली।
ओजू मुझे कुछ जरूरी बात करनी हैं अभी। औरतों से घिरी बैठी ओजू को देख उसने तुरंत उसे वहाँ से उठने का इशारा किया। पसीने से तरबतर आदित्य को देख ओजू को हैरानी हुई अभी तो ये गया था देवू के साथ इतनी जल्दी…..। ओजू वहाँ से जैसे तैसे उठी, आदित्य उसे एक कोने में ले गया और उससे कुछ पूछने लगा।
जब तुम दोनों में बहस हुई थी तो आंटी जी तुम्हारे सामने बेहोश हुई थी कि तुम्हारे इधर-उधर होने के बाद?
अब ये सवाल क्यों पूछ रहें हो? ओजू की आवाज एकदम धीमी और दबी हुई थी। शायद रोने की वजह से उसका गला बैठ गया था।
सवाल करने का टाइम नहीं हैं ओजू सिर्फ जवाब दो वरना बहुत देर हो जाएगी।
अब और कितनी देर हो सकती है आदित्य ? ओजू मैं तुम्हारी हालत समझता हूँ लेकिन मैं जो कहना चाहता हूँ वो तुम भी समझो प्लीज ।
अब कुछ नहीं समझना आदित्य जो होना था हो चुका अब गड़े मुर्दे मत उखाड़ो।ओजू उतना कहकर पलट पड़ी तो आदित्य ने उसकी बाँह पकड़ ली।
अगर तुमने जवाब नहीं दिया तो मुझे गड़ा मुर्दा ही उखाड़ना पड़ेगा सच में ।
क्या ? ओजू रुक गयी।
आंटी जी का पोस्टमोर्टम कराना होगा ।
किस लिए ? जिन्दगी तो सही से जी नहीं पायीं अब मौत में भी सुकून नसीब न हो !
उन्होंने अपने साथ कुछ किया था ओजू वो ऐसे नहीं मरी! आदित्य डर रहा था कि ओजू फिर से नशा, डॉक्टरी जैसे शब्दों को लेकर उससे बहस न शुरु कर दे। लेकिन इस बार उसने ऐसा कुछ नहीं किया बल्कि हैरानी से उसकी आँखों में देखने लगी। मतलब?
आंटी जी का शरीर हलका नीला था, अभी मैंने देखा उनके होंठ भी पूरे नीले हो चुके थें। मेरा मन था कि मैं उनकी पूरी बॉडी चेक करूँ लेकिन वहाँ मुझे ऐसा कोई नहीं करने देता इसीलिए भागते हुए मैं यहाँ तुम्हारे पास आया, ताकि कन्फर्म कर सकूं कि. … नहीं , माँ ऐसा नहीं कर सकती मेरी माँ बीमार जरूर थी पर कमजोर नहीं बहुत हिम्मत थी उनमें । वो ऐसा नहीं कर सकती। ओजू उन्होंने किया है ऐसा। सौ नहीं लेकिन 60% तो कन्फर्म हूँ उनकी मेडिकल हिस्ट्री मिल जाती तो ये 100% कह सकता था। आदित्य की बात सुनकर ओजू बहुत उलझन में फंस गयी थी, वो एक अच्छे नैतिक इंसान की तरह इस कर्म को हो जाने दे या एक अच्छी बेटी बनकर नैतिकता व सामाजिकता को दरकिनार कर वो आदित्य की बात मान ले !
ओजू वक्त नहीं हैं हमारे पास ज्यादा।
चलो। ओजू भी साथ चलने को तैयार हो गयी ।
दोंनो जब तक घाट लर पहुँचे तब तक देवू ने मुखाग्नि दे दी थी और चिता धू-धू का जलने लगी थी। आदित्य और ओजू दोंनो खड़े ही रह गये , कुछ नहीं कर पाएं। अब ओजू के अंदर इतनी हिम्मत नहीं थी कि वो अपनी माँ के अंतिम दर्शन को पूरा होने से रोक सकें। अगर कन्फर्म होता की उन्होंने जहर खाया है तो जरूर वो कुछ करती लेकिन वो आदित्य के शक के अधार पर ऐसा कुछ नहीं कर सकती , क्या पता पोस्टमार्टम में कुछ भी न निकले तो? तब तो सब मेरा ही मजाक बनाएंगे , मुझे ही बातें सुननी पड़ेंगी सबको और माँ की रूह को भी कितनी तकलीफ होगी! आदित्य के पास भी कुछ करने का अधिकार नही बचा था , अगर वो कुछ करें भी तो क्या ? चलो पोस्टमार्टम में ये साबित भी हो जाएँ कि उन्होंने जहर खा लिया था उसके बाद? वो तो सामने बैठी नहीं हैं की उनसे पूछा जाये कि जहर क्यों खा लिया या अगर किसी ने खिलाया है तो वो कौन हो सकता है?
ओजू ने माँ के गुजरने के तीसरे ही दिन देवू को हॉस्टल भेज दिया। वो नहीं जाना चाहता था बोल रहा था ” दीदी तुम अकेली रह जाओगी।” लेकिन ओजू ने उसकी एक न सुनी। उसे लगने लगा था की उसका घर ही मनहूस हैं कोई उसमें सुकून से नही रह सकता इसीलिए देवू को वो एक मिनट भी घर में रोकने को तैयार न थी। आदित्य ने इसके परिवार ने , पड़ोसियों ने उसे समझाया की बच्चे हफ्ते भर तो अपने पास रख लो ताकि तुम्हें ज्यादा अकेलापन फील न हो पर ओजू ने किसी की न सुनी आखिर में आदित्य तैयार ही हो गया देवू को हॉस्टल छोड़ आने के लिए। जब देवू घर से निकल रहा था तो ओजू को रह-रह के लक्ष्य की याद आ रही थी जब पहली बार देवू हॉस्टल गया था तब लक्ष्य ही तो उसे छोड़ने गया था। अब पता नहीं कहाँ चला वो ? अरे चाहे जहाँ जाएँ मुझे क्या? उसकी वजह से मैंने अपनी माँ खोयी है तो क्यों दया करूँ उसपर? काश मम्मी को बताया ही न होता उसके बारे में कुछ तो आज…. जैसे ही ओजू के मन में ये ख्याल आया उसकी आँखें नम हो गयी और वो अपनी माँ के कमरे की तरफ भागी वहाँ उसने माँ की एक फोटो उठा कर सीने से लगा लिया और जोर-जोर से रोने लगी। देवू के सामने उसे मजबूत बनना होता था इसीलिए इन तीन दिनों में जीभर के रो ही नहीं पायी लेकिन आज उसे कोई देखने वाला नही था । क्यों माँ? क्यों किया मेरे साथ ऐसा? वो चीखने लगी, बार बार फोटो को देख सवाल करने लगी।,” मेरी गलती थी तो जो चाहे सजा देती, लेकिन छोड़ के जाने की क्या जरूरत थी! अगर यहीं करना था तो पैदा क्यों किया था और अगर पैदा हो भी गयी थी तो तुरंत मार देती कम-से-कम ये दिन तो न आता मेरी जिन्दगी में ! वो फर्श पर गिरकर सिसकने लगी।,” आपकी आज तक कौन सी बात टाली थी मैने , आपने जो कहाँ मैंने सब मान लिया जिंदगी में पहली बार मेरा भी दिल जिद पर आ गया कोई अच्छा लग गया मुझे , मैनें सोचा कि मैं जी गयी, हर तरह से उसने मेरा और आपका खयाल रखा तभी लगा कि जो है मेरा वही हैं वही एक जिद कर दी मैंने आपसे लेकिन….. अरे नहीं पसंद थी मेरी जिद तो मेरा गला घोंट देती खुद को ख़त्म करने की क्या जरूरत थी? ओजू फिर तेज-तेज से रोने और बोलने लगी। ,” पापा की एक ख्वाहिश के लिए आपने मेरी जिंदगी नरक बना दी माँ ! मेरे साथ देवू को भी अनाथ कर गयी एक बार भी नहीं सोचा उसके बारे में आप माँ नहीं पत्थर थी, जिसे भगवान में माँ की खाल पहना दी…..! क्यों माँ क्यों हो गयी थी ऐसी? कैसे सोच लिया कि आपके ऊपर मैं लक्ष्य को चुनूँगी? उसे तो पहले ही पता था कि आप उसे नहीं चुनेंगी इसीलिए पहले ही मेरी जिंदगी से जाने की कोशिश करता था लेकिन मैंने ही रोक रखा था उसे, मुझे क्या पता था उसे रोकने से आपको खो दूंगी…..। इसी तरह देर तक ओजू कमरे में पड़े पड़े ही कभी जोर से रोती , कभी चिल्लाती और कभी बिल्कुल खामोश हो जाती, ऐसा होते-होते कुछ वक्त बाद कमरे से आवाज आनी बंद हो गयी ।
घर का दरवाजा भी खुला था और ओजू अपने कमरे में भी नहीं थी ये देख आदित्य समझ गया की वो कहाँ हो सकती है वो सीधा उसकी माँ के कमरे में गया वहाँ वो अपनी माँ की फोटो को सीने से लगाए आँख बंद करके फर्श पर पड़ी थी। आदित्य का दिल हुआ की वो उसे उठाकर सीने से लगा ले, उसके माथा चूम ले और कहें वो नहीं रही तो क्या?मैं तो हूँ न मैं संभालूँगा तुम्हें। लेकिन हाय री किस्मत! वो इनमें से कुछ भी नहीं कर सकता था। वो आहिस्ते से चलते हुए उसके पास गया और घुटने मोड़ कर बैठ गया धीरे से उसके सर पर हाथ रख कर सहलाया तो वो जग गयी।
तुम कब आएं? उसने उठकर बैठते हुए पूछा ।
बस अभी। वो भी संभल गया।
देवू को छोड़ आएं?
हाँ ।
कुछ कह रहा था ।
हाँ ।
क्या ?
दीदी का खयाल रखना, बोल देना कि मेरी फ़िक्र न करें वहाँ उसके बहुत दोस्त है और सभी उसे प्यार करतें हैं। जब भी अच्छा न लगे तो उससे मिलने चली जाना वो तुम्हें हॉस्टल घुमाएगा, दोस्तों से मिलवाएगा और उस दिन तुम्हारे सामने मैच भी खेलेगा जिसमें सेंचुरी भी बनाएगा…! पागल है वो , नौवीं कक्षा में आ गया है फिर भी ज्यादा दिमाग़ नहीं लगाता। उसकी आवाज में प्यार था देवू के लिए। ऐसा कुछ नहीं है जब धोनी की तरफ शॉट मरेगा तब ये बात तुम्हें समझ आएगी। अच्छा चलो अब बाहर चलो यहाँ अंधेरे में ज्यादा देर बैठना ठीक नहीं , मैंने चाय बनाई है तुम्हारे लिए एक घूंट पी लो चलकर ।
मन नहीं है आदित्य ।
मन के लिए नहीं तुम्हारे लिए बनवाई है उठो चलो।वो ओजू का हाथ पकड़कर उठाने लगा ।
आदित्य…. उसने आहिस्ते से उसका नाम लिया और फिर चुप हो गयी ।
हाँ ।
क्या तुमने मुझे माफ़ कर दिया है? उसने पलके झुका ली इतने अंधेरे में भी उसे आदित्य की आँखों की चमक बर्दाश नहीं थी। किस बात के लिए?
मैंने उस दिन जो तुम्हें बोला था कि. … मेरा मन नहीं था ऐसा लेकिन मुझे बहुत डर लग रहा था मेरे जी में जो भी आ रहा था सब बोलती जा रही थी सोचा भी नहीं की तुमने तो पूरी कोशिश की थी लेकिन…..
कितनी बढ़िया शाम है और तुम भी कैसी बातें लेकर बैठ गयी हो? हटाओ इन्हें ये भी कोई गुस्सा करने या गौर करने वाली बातें होती हैं ! न इनमें कोई तुक न बात जैसी बात ।
तुम्हें बुरा नहीं लगा था जब मैंने कहा था कि तुम नशा…? ओफ्फो , कैसे समझाऊँ तुम्हें ये बातें गौर करने वाली नहीं होती जब आदमी परेशान होता है तो उल्टा-सीधा बोल ही देता है उन बातें को जो लोग गांठ बांधकर रख लेते हैं यकीन मानो वो सबसे ज्यादा बेवकूफ इंसान होतें हैं समझी और मैं बेवकूफ नहीं हूँ । सच में! उसने रोते हुए आदित्य के कंधे पर सिर रख दिया। आदित्य उसे रोता नहीं देख सकता था इसीलिए बात बदल दी। सच में ! मतलब क्या है कि तुम्हें शक है मेरी बुद्धिमानी पर? धत्त ऐसा थोड़े बोला। उसने हौले से मुस्कुराने की कोशिश की। दरवाजे की घंटी बार-बार बजाई जा रही थी लेकिन ओजू पूजा ख़त्म किये बिना नहीं उठना चाहती थी अब वो सारे वहीं काम करना पसंद करती थी वो उसकी माँ किया करतीं थीं अब माँ नहीं रहीं तो क्या उनके काम नहीं रुकेंगे। गाय को रोटी खिलाना , पूजा करना , तुलसी चौरा साफ करना शाम को उसपे बाती जलाना सब कुछ जो उसने माँ को करते देखा था अब खुद करती थी । दरवाजे की घंटी फिर बजी तो उसे गुस्सा न आ गया अभी पूजा ख़त्म हो तब सबक सिखाती हूँ अच्छा से। सबको पता है सुबह से वक्त मैं पूजा कर रही होती हूँ फिर भी…। आना का भी एक टाइम होता है । बिन बुलाये चले आओ एक तो और दो चार बातें समझा के चले जाओ। वो जल्दी-जल्दी पूजा करने लगी। पिछले 7-8 दिनों से जिसका जब मन आ रहा था उससे सांत्वना दर्शाने चला आ रहा था उसे फुर्सत ही नहीं मिल रही थी दरवाजा बंद करने और खोलने से । उसने पूजा करके थोड़ा पानी पिया और सीधे दरवाजा खोलने पहुंच गयी। ,” चाहे जो हो गालियाँ तो खायेगा ही आज।” उसने तेजी से दरवाजा खोला और इससे पहले कुछ कहती उसने देखा की सामने लक्ष्य खड़ा था।
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