इश्क़ का अंजाम पार्ट-19 Love story in Hindi
अभी तक आपने इश्क़ का अंजाम पार्ट-18 में पढ़ा कि सार्थक मंजिल के भागने की नाकाम सी कोशिश पर सार्थक ने उसे सजा देते हुए घर की साफ-सफाई से लेकर अपने भी सारे काम सौंप दिए । लेकिन मंजिल उसके लिए खाना बनाती तो वो खाता नहीं , पानी देती तो फेंक देता । ये सब करने के बावजूद वो उससे लगातार काम कहता रहता है ।
ज्यादा गुस्सा होने पर उसे अपने आने तक गेट पर खड़ा रहने को कहता है और खुद रात को 2 बजे आता है और आते ही मंजिल को 4 बजे अपने लिए नाश्ता बनाने को कहता है । मंजिल जब नाश्ता बनाकर रखती है तो बिना खाए ही चला जाता है , जिससे गुस्सा होकर मंजिल सब कुछ फ्लोर पर पटक देती है । अब आगे-
सार्थक बिल्कुल सख्त हो चुका था मंजिल के साथ । उसे ऐसा करके क्या खुशी मिलती थी पता नहीं लेकिन उसे इतना जरूर मालूम था कि इससे मंजिल की जरूर तकलीफ मिलती है । उस तकलीफ से गुजर कर ही सही मंजिल को शायद इस बात का जरा सा ही अहसास हो जाएं कि उससे इश्क करने और उसे इतने करीब रख कर भी उसे न पा पाने पर सार्थक किस तकलीफ से गुजर रहा होगा ।
सुना है बहुत गुस्सा आता है तुम्हें? रात 10 बजे शूटिंग करके लौटा सार्थक मंजिल को हर जगह ढूंढ़ता हुआ आख़िरकार किचन तक आ ही गया था ।
मैं आपके लिए डिनर तैयार कर रही हूँ आप डाइनिंग टेबल पर बैठिए चलकर बस 10 मिनट में सब सर्व करती हूँ । मंजिल बर्तन निकाल कर उसमें खाना रखने लगी।
तुमने सुना नहीं शायद मैंने क्या कहा ? सार्थक ने अपने दोनों हाथ अपनी पैंट की जेब में किए और मंजिल के पीछे आ खड़ा हुआ ।
अब उससे भी आपको कोई दिक्कत है क्या ? मंजिल ने बिना उसकी तरफ देखे जवाब दिया ।
मेरा नुकसान करोगी तो दिक्कत तो होगी ही न !
कैसे नुकसान? मैंने आपका कोई नुकसान नहीं किया है ।
वो कप जो तुमने तोड़ा है आज सुबह, जानती हो कितना महंगा था ! मैं हमेशा उसी में कॉफी पी…..
कमाल है एक कप के लिए इतनी पूछताछ …! मंजिल ने उसे हँसती हुई आँखों से देखा ,’ हैरानी हो रही है मुझे कि जब आप मुझे खरीद सकते है तो मामूली से कप की औकात भी क्या ? फिर कप तो बोलता भी नहीं है , कोई विरोध भी नहीं करता है। मंजिल उसपर तंज कसते हुए खाना उठा कर वहाँ से बाहर निकल गयी । सार्थक बिना हिले-डुले खड़ा ही रह गया जब तक के उसे मंजिल की आवाज नहीं सुनाई दी।
डिनर लग गया है सर । खाने का मन हो तो खा सकते है अगर फेंकना हो तो वैसा बताइए ।
कैसा बोलती हो मैम जी आप भी । कल्पना खड़ी हो गयी थी उसकी बगल में आकर।
कैसा क्या बस पूछ ही तो रही हूँ कि रखना है कि फेंकना है ।
फेंकना क्यों है आप ने दो दिन से खाया कहाँ है कुछ ? आप ही खा लीजिये कम से कम ।
दो दिन से खाना क्यों नहीं खाया है तुमने? सार्थक ने कल्पना की बात सुन ली और आते ही मंजिल को गुस्से से देखने लगा।
वही तो साहब खाई ही नहीं कुछ पानी पीती हैं बस।
लगता है मरने का ज्यादा ही शौक है तुम्हें? वो कुर्सी पर आराम से बैठ गया।
मर भी जाऊँ तो किसी को क्या ही फर्क पड़ता है ।
सही कहा , मुझे भी नहीं पड़ता अगर मैंने तुमपर 20 करोड़ नहीं लगाएं होते ।
मंजिल इतना सुनते ही आग हो गयी अंदर से उसकी नजर में बटर नाइफ दिखी और सार्थक के गर्दन की नस । उसने तुरंत आँखें बंद कर ली और अपने गुस्से को आँसू बनाकर पी गयी।
बैठ जाओ और चुपचाप खाना खाओ , ये मेरा ऑर्डर है । कल्पना ने इतना सुनते ही मंजिल को कुर्सी खींचकर बिठा दिया । वो भी किसी रोबोट की तरह कुर्सी से चिपक गयी।
अभी मंजिल ने थोड़ा ही खाना खाया था की सार्थक ने फिर उसे टोक दिया।
अगर मैं सही हूँ तो शायद तुम ज्यादा तीखा नहीं खा पाती न ?
मंजिल ने कोई जवाब नहीं दिया बस खाना खाती रही ।
कल्पना किचन से एक बाउल में मिर्च ले आइए प्लीज ।
खाना अच्छा तो दिख रहा है फिर मिर्च…..
ले आइए न ।
अच्छा ।
कल्पना हरी मिर्च से भरी कटोरी लाई तो सार्थक ने मंजिल की तरफ इशारा करते हुए कहा – मंजिल को दीजिए ।
सर…..! कल्पना हैरान हुई।
दीजिये न आप ।
कल्पना खड़ी रही तो सार्थक ने उसके हाथ से कटोरी लेकर मंजिल की तरफ बढ़ा दी। उसने लाल आँखों से सार्थक की तरफ देखा और फिर से सर घुमा लिया ।
तुम बहुत बेमन से खाना खा रही हो शायद कोई स्वाद नहीं मिल रहा तुम्हें अब मिर्च के साथ खाओ तो अच्छा लगेगा।
मंजिल ने कुछ नहीं कहा उसने कटोरी से एक मिर्च उठा ली और खाना उसके साथ खाना शुरु कर दिया।
उन्हूं ऐसे नहीं एक बार में पूरी एक मिर्च।
ये कौन सा तरीका है साहब , आप जानते है वो तीखा नहीं. …
मंजिल ने उसकी तरफ बिना देखे एक साथ दो मिर्च मुँह में रख ली और उन्हें चबाने लगी ।
ओह्हो… देखा आपने , इन्हें हरी तीखी मिर्च, मिर्च नहीं कैंडी लग रही है आप बेवजह डर रही थीं ।
सर रोक दीजिये उन्हें प्लीज तबियत खराब हो जाएगी उनकी… कल्पना कांप रही थी।
कुछ नहीं होगा देख नहीं रही आप कितनी मजबूत हैं ये। उसके बाद मंजिल की तरफ देखते हुए उसने कहा – एक काम करो ये मिर्च तुम्हें इतनी अच्छी लग रहीं हैं न तो एक ही बार में सब खा जाओ।
बहुत हो गया आपका , मैम अब आप एक भी ….
कल्पना की बात पूरी होती इससे पहले ही मंजिल ने सार्थक की आँखों में आँखे डालकर देखा और एक ही बार में सारी मिर्च मुँह में रख ली।
मुँह से निकालो बेटा….. कल्पना की आँखें भर आयीं और वो मंजिल का मुँह जबरदस्ती खोलने लगी।
मंजिल का पूरा चेहरा लाल हो चुका था आँखें भी लाल थी और उनसे तेजी से आँसू बह रहें थें।
मुँह खो……
मंजिल ने कल्पना के हाथ को झटक दिया और उठकर वहाँ से अपने कमरे की तरफ भागी।
ये क्या किया आपने ? कल्पना की आवाज न चाहते हुए भी तेज हो गयी।
मोहब्बत ….! सार्थक अपनी थाली सरका कर उठ खड़ा हुआ और अपने कमरे की तरफ चल दिया ।
कल्पना अपना सर पकड़ कर वही एक कुर्सी पर बैठ गयी।
कल्पना सारी सफाई करने के बाद मंजिल को देखने के लिए दबे पाँव उसके कमरे में गयी उसे लगा था की मंजिल सो चुकी होगी लेकिन बेड पर देखा तो मंजिल भीगे कपड़ो में लेटी कराह रही थी ।
मैंने मना किया था आपको लेकिन आप अपनी जिद के आगे किसी की सुनती कहा है । कल्पना घबरा गयी थी मंजिल की हालत देखकर क्योंकि उसका चेहरा लाल हो चुका था उसकी गर्दन में सूजन झलकने लगी थी। भीगा होने के बावजूद उसके शरीर से पसीना निकल रहा था ।
गीले कपड़े निकालिए पहले । खुद भी भीगी है और बिस्तर भी गीला कर रखा है । उसने मंजिल को उठाते हुए कहा । लेकिन वो अपना पेट दाबे दूसरी ओर पलट गयी।
ज्यादा दिक्कत हो रही है आपको । कल्पना मंजिल के सिरहाने बैठ गयी।
बहुत जलन हो रही है दीदी….! दीदी , इस शब्द में न जाने कितनी करुणा कितना प्यार उभर आया था । कल्पना को अचानक से लगा कि सामने उसके सर की मोहब्बत नहीं उसकी खुद की बहन लेटी हो।
कहाँ पर? उन्होंने उसके बालो को सहलाते हुए पूछा।
पेट में, गले में ,नाक में , चेहरे पर सब कहीं ।
आप थोड़ी देर खुद को सम्भालिये मैं कुछ करती हूँ । कल्पना वहाँ से उठकर तुरंत कमरे से बाहर भागी ।
एक प्लेट में बर्फ , ठंडा पानी और दही लेकर जब कल्पना वापस से कमरे में पहुंची तो बिस्तर पर मंजिल नहीं थी । वो एकदम से डर गयी क्योंकि जब वो एकबार भागी थी तो उसकी ऐसी हालत कर दी है उसके सार्थक साहब ने अगर दूसरी बार भागी होगी…..! नहीं , नहीं…! वो प्लेट और दही रखकर मंजिल को ढूंढने लगी। तभी उसे बाथरूम के पास से पानी गिरने की आवाज आयी , उसने अंदर झाँक कर देखा तो मंजिल लगभग अपने सारे कपड़े उतार कर शॉवर के नीचे खड़ी थी।
हे देवा ….! वो बाथरूम में गयी और शॉवर बंद कर दिया ।
इतनी रात में बार-बार पानी में भीग कर और बीमार होना है क्या ? उसने मंजिल को एक तौलिए से लपेटा और सहारा देकर बाहर तक ले आयी ।
दही खाने से जलन शांत होती है । उसने मंजिल को बिस्तर पर बिठा कर दही उसके आगे रख दिया ।
अगली सुबह जब सार्थक शूटिंग पर जाने के लिए तैयार होकर नाश्ता करने आया तो किचन में कल्पना को देख उसे गुस्सा आ गया ।
आप किचन में क्या कर रहीं हैं? कल्पना ने कोई जवाब नहीं दिया।
ये सारे काम मंजिल को करने थें न तो आप क्यों हैं यहाँ पर ? इस बार भी कल्पना बिना कुछ कहे अपना काम करती रही ।
मंजिल …. मिस मंजिल क्या आप तक मेरी आवाज ….
इतनी तेज मत बोलिये वो जग जाएंगी ।
सुबह के 8 बज रहे हैं और वो अभी तक……
नाश्ता तैयार तो हो गया आप आराम से बैठिये।
अब आपको क्या हुआ है , आप क्यों मुझसे इस तरह बात कर रही है । पहली बार की तरह कल्पना ने इस बार भी कोई जवाब दिये बगैर नाश्ता ले जाकर टेबल पर रख दिया।
कोई बतायेगा की ये मेरे घर में हो क्या रहा है ? सार्थक की आवाज़ में खीझ उभर आयी थी।
Sorry sir ! थोड़ी देर हो गयी उठने में आज , अभी नाश्ता तैयार किये देती हूँ । मंजिल भागते हुए सीढ़ियों से उतरी थी और उसी तेजी से किचन में भी घुस गयी बिना बाहर ये देखे कि टेबल पर नाश्ता लगाया जा चुका था ।
आप यहाँ मत रहिए गर्मी लग जाएगी आपको ।
ये तुम्हारे चेहरे को क्या…हुआ ? सार्थक मंजिल के चेहरे को देखकर हैरान रह गया । उसका चेहरा और गर्दन सूजे हुए थें , उसके होंठ भी सूज कर काले पड़ चुके थें और उसकी आँखें छोटी-छोटी हो गयी थी।
नाश्ता तो बनाना ही पड़ेगा । कल्पना और मंजिल दोनो ने सार्थक को अनसुना कर दिया । सार्थक धीरे-धीरे चलता हुआ मंजिल के पास खड़ा हो गया जहाँ कल्पना भी खड़ी थी।
वो मैंने बना दिया है अभी तो आपको कमरे में ही रहना चाहिए, आप उठते ही यहाँ भाग आयी है थोड़ा फ्रेश हो जाइये जाकर।
मंजिल….. मैं कुछ पूछ रहा हूँ तुमसे !
सर ऐसी कोई दिक्कत की बात नहीं हैं , वो हरे तीखे मिर्च मेरे फेवरेट है न तभी उनके खा पाने की खुशी झलक रही है चेहरे से। इतना कहकर मंजिल रसोई से बाहर निकल गयी।
एक तो दो दिन की भूखी और ऊपर से बहुत सारे मिर्च! कुछ तो असर होना ही था खैर आप नाश्ता कर लीजिए वरना ठंडा हो जायेगा ।
नहीं करना…। सार्थक नाश्ता बिना किए ही वहाँ से निकल गया।
To be continued…….
Please wait for इश्क़ का अंजाम पार्ट-20
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