इश्क़ का अंजाम पार्ट 2
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अब आप पढ़ रहे है हमारी दूसरी कहानी इश्क़ का अंजाम….. अभी तक आपने इश्क़ का अंजाम पार्ट 1 में पढ़ा की सार्थक मंजिल को उसके घर से किडनैप करके अपने घर ले आया था अब आगे पढ़िए इश्क़ का अंजाम का दूसरा पार्ट2…..
कल्पना के जाते ही सार्थक मंजिल की तरफ देखकर मुस्कुराया और बोला “, इतना गुस्सा क्यों कर रही हो , अब तुम्हें इन चीजों की आदत डाल लेनी चाहिए।
मुझे मेरे घर जाना है सुना तुमने । मंजिल का गुस्सा कहीं से भी कम नहीं हुआ।
नहीं सुना मैंने जरा और तेज बोलोगी , उसने मंजिल की तरफ बढ़ते हुए कहा।
ये क्या बत्तमीजी है , तुम वहीं खड़े होकर बात नहीं कर सकते क्या ?? मंजिल थोड़ा पीछे हटते हुए बोली। सार्थक मुस्कुराते हुए बोला,” तुम इसे बत्तमीजी कहती हो ! मेरे ख्याल से तब तो तुम्हें पता ही नहीं कि बत्तमीजी क्या होती है। वो रुका ही नहीं और आगे बढ़ता रहा । मंजिल किसी की उलटीसीधी बातों पर चुप रहना नहीं जानती थी बराबर जवाब देती थी। लेकिन आज वो जिस जगह है वो अजनबी है और जिस इंसान के सामने है वो उससे ज्यादा पॉवरफुल इसीलिए उसने अपने शब्दों से ज्यादा अपने दिमाग़ पर भरोसा किया और भागते हुए बालकनी की तरफ चली गयी।
उसकी इस बेवकूफी पर सार्थक को काफी हँसी आ रही थी क्योंकि दरवाजा सिर्फ रूम के अंदर से ही लॉक हो सकता था बालकनी की तरफ से नहीं। ये बात मंजिल को तब पता चली जब उसने दरवाजा बंद करने की कोशिश की। दरवाजे का लॉक इधर नहीं था ये देखकर वो काफी ज्यादा घबरा गयी। लेकिन हिम्मत से काम लेते हुए उसने अपने दोनों हाथों से दरवाजे को दबा दिया। उसके इस बचपने पर सार्थक को बहुत प्यार आ रहा था साथ ही बहुत तेज हँसी भी की दुबली-पतली सी वो और कहाँ सार्थक की मस्कुलर बॉडी उसे लगता है कि वो उसे रोक पायेगी। लेकिन इन सब को साइड में रखते हुए उसने थोड़ा परेशान होने का नाटक किया , इधर-उधर देखा और थोड़ी देर खड़ा होकर कुछ सोचा और धीरे से अपने कदम कमरे के से जाने के लिए बढ़ा दिये।
सार्थक ने कल्पना को बुलाकर उसे हिदायत देते हुए कहा ,” मैं शूटिंग पर जा रहा हूँ, मेमसाहब का ख्याल अच्छे से रखना, खाना खिला देना और कोई दिक्कत हो तो शक्ति को कॉल कर देना वो मुझे बता देगा। अगर ज्यादा नखरे दिखाए तो पड़ी रहने देना मैं खुद शाम को आकर देख लूँगा ओके । इन सब बातों में कल्पना ने अपना सर ही हाँ में हिला दिया।
सार्थक को लग रहा था कि सारे दिन में मंजिल ने एक बार तो खाना खाया ही होगा कोई कितनी देर भूखा रह सकता है भला वो भी उसके जैसी फूडी लड़की तो बिल्कुल भी नहीं । लेकिन रात में जब सार्थक शूटिंग ख़त्म करने के बाद घर पहुँचा तब उसे पता चला कि मंजिल ने खाना नहीं खाया है। इतना सुनने के बाद सार्थक तुरंत गुस्से में अपने रूम की तरफ चल दिया।
खाना क्यों नहीं खाया ? उसने अपनी आवाज में नर्मी लाने की कोशिश करते हुए बोला। मंजिल इस वक्त रूम के एक कोने में फर्श पर बैठी थी उसे देखकर लग रहा था कि वो सारा दिन से यहीं बैठी रही है। उसका चेहरा पूरी तरफ उतरा हुआ था शायद वो अभी तक रोती ही रही थी।
मुझे मेरे घर जाना है। मंजिल ने गुस्से से उसकी तरफ देखा । तुम्हें क्या खाना है बताओ , मैं अभी बनवा कर लाता हूँ । सार्थक ने उसकी ओर बढ़ते हुए कहा ।
दूर…दूर रहो मुझसे , मेरे पास मत आना ! वो घबराकर तुरंत दीवार के सहारे खड़ी हो गयी। सार्थक को मंजिल का ऐसे खुद से डरना अच्छा नहीं लगा , इसीलिए उसने अपने कदम पीछे खींचते हुए कहा ,” ओके , नहीं आ रहा मैं तुम्हारे पास तुम बता दो की खाने में क्या खाओगी। मैंने कहा न कि मुझे सिर्फ अपने पेरेंट्स के पास जाना है अभी और इसी वक्त।
देखो बच्चों की तरह जिद मत करो।
मुझे अपने घर जाना है दैट्स इट । मंजिल की आवाज थकी हुई थी लेकिन उसका उसका आत्मविश्वास वैसा ही था । मैं खाना लेकर आता हूँ. …
उतनी देर से तुम्हें सुनाई नहीं दे रहा कि मैं क्या कह रही हूँ? बहरे हो तुम ? वो लगभग चीखते हुए बोली । उसके इस तरह के बर्ताव पर सार्थक को बहुत तेज गुस्सा आ गया था, आज तक उसने बड़े से बड़े लोगों की भी ऊँची आवाज नहीं सुनी थी और आज एक मामूली लड़की उसपर साउट कर रही है !
उसकी आवाज पर सार्थक का पूरा चेहरा तमतमा गया था ,” देखो तुम… ! वो बोलते बोलते एकदम से रुक गया। इतनी देर में पहली बार उसने मंजिल की तरफ ध्यान से देखा। वो अभी भी कल के ही कपड़ो में थी जो कि मैले हो चुके थें। उसके बाल भी बिखरे और उलझें थें, आँखों के किनारे सूजे हुए थें , कल से कुछ भी ना खाने की वजह से उसका शरीर काफी थका और कमजोर लग रहा था , उसे देखकर सार्थक को मुरझाये हुए फूलों की याद आ गयी वो भी बिल्कुल इसी तरह लगतें हैं , बेजान । उसके दिल ने एक अजीब से दर्द का अनुभव किया जो आज तक कभी भी नहीं किया था। उसने अपने सारे शब्दों को खुद में ही दबा लिया और बड़े ही प्यार से उससे कहा ,” देखो तुमने जो कहा है मै उसपर सोचूंगा लेकिन तुम्हें उसके लिए खाना खाना होगा और ये…ये अपने कपड़े भी बदलने होंगे। कपड़े बदलू ? यहाँ ? अच्छा लाओ दो मेरे कपड़े ….लेकर तो आये ही होगे तुम ! मंजिल की आवाज में सार्थक का मजाक उड़ाने वाला लहजा था, सार्थक भी ये बात समझ गया था। उसने इतनी हड़बड़ी में मंजिल को उसके घर से किडनैप किया था कि उसे उसकी जरूरतों का सामान लेना भी नहीं याद रह गया था। अब वो उसकी तरह न देखते हुए बोला ,” अच्छा तुम खाना ही खा लो चलकर , कपड़े का बाद में देखते है।”
क्या गारंटी है कि मैंने खाना खा लिया तो तुम मुझे कल मेरे माँ पापा के पास छोड़ आओगे ?
मैंने ये नहीं कहा कि छोड़ आऊंगा मैने कहा कि सोचूंगा अगर खाना नहीं खाया तो वो भी नहीं करूंगा,फिर जिंदगी भर अपने माँ पापा से न मिल पाने के लिए मुझे मत कोसना । इतना कहकर वो कमरे से निकल गया ।
सार्थक डाइनिंग रूम में इधर से उधर लगभग 20 मिनट तक घूमता रहा। वो जानता था की मंजिल खाना खाने के लिए तैयार नहीं होनी वाली है इसीलिए वो खुद भी खाना नहीं खा पा रहा था। वो भूखी रहें और सार्थक खाना खा ले ? नहीं हो ही नहीं सकता । थोड़ी देर तक ऐसा घूमते रहने पर जब उसे सुकून नहीं मिला तो अपने हाथों से मंजिल के लिए थाली लगाई और कल्पना को बुला कर उसे खाना ऊपर पहुंचाने को कहा ,” मुझे पता है आप उसे खाना खिला दोगी।” सार्थक की आवाज में एक उम्मीद थी और विश्वास भी। कल्पना मुस्कुराई और बस इतना ही बोली ,” साहेब जैसे आप मेरे लिए वैसे वो भी , न आपको भूखा देख सकती हूँ न उन्हें। अगर आप इजाजत दे तो अगर वो प्यार से न खाने को माने तो थोड़ा जबरदस्ती कर सकती हूँ क्योंकि सुबह से बहुत ही बार कोशिश कर चुकी हूँ प्यार से खिलाने की। जैसे भी आप उसे खाना खिला सकें। कल्पना थाली लेकर सीढ़िया चढ़ने लगी , पीछे-पीछे सार्थक भी चल दिया वो अपनी आँखों के सामने मंजिल को खाना खाते देखना चाहता था। कल्पना सार्थक के घर में 9 सालों से काम कर रहीं है , यहीं काम करतें हुए उसने शादी की थी तब सार्थक न सिर्फ उसकी शादी में शामिल हुआ था बल्कि हर रस्म में बढ़ चढ़ के हिस्सा भी लिया था। कल्पना के बच्चे भी हुए लेकिन तब भी उसने यहाँ काम करना नहीं छोड़ा और आज कल्पना के बच्चे सार्थक को अपना मामा समझते हैं । कल्पना ने कई बार इसके लिए उन्हें समझाया भी है लेकिन सार्थक को इस पर कोई आपत्ति नहीं थी भले ही वो कल्पना को हाऊसकीपर की तरह ट्रीट करता था लेकिन उसके बच्चों से ऐसे पेश आता था कि वही उसका असली मामा है। कभी कभी उन्हें अपनी शूटिंग पर भी साथ ले जाता था। किसी भी फेस्टिवल में वो खुद ही कल्पना के दोनों बच्चों के लिए शॉपिंग कर लेता था। शुरुआत में कल्पना के पति ने उस पर प्रेशर बनाया था कि वो सार्थक के यहाँ काम न करने जाया करें लेकिन जब उसे यकीन हो गया की सार्थक बाकी बड़े लोगों जैसा नहीं हैं औरतों की इज्जत करता है तब तो वो खुद भी सार्थक की ही बताई जगह पर ड्राइवर का काम करने लगा था। कल्पना दरवाजा खोल के कमरे के अंदर गयी, मंजिल बालकनी में खड़ी आसमान के तारे देख रही थी जब दरवाजा खुलने की आवाज सुनी तो घबराकर तुरंत पलट के खड़ी हो गयी कि कहीं सार्थक न आया हो । कल्पना को देखकर उसे थोड़ी राहत सी महसूस हुई।
मेमसाहब खाना खा लीजिये आकर । उसने थाली टेबल पर रख दी।
आप रख दो मैं खा लूँगी । उसने दोबारा से आसमान की तरफ देखते हुए कहा। उसका जवाब सुनकर कल्पना चौक गयी और दरवाजे के पीछे खड़ा सार्थक भी । सुबह से तो वो मना कर रही थी अचानक से कैसे मान गयी? मानेगी तो है ही भूख से जो हालत नहीं खराब हुई जा रही है देवी जी की । सार्थक थोड़ा सा मुस्कुराया । कल्पना मंजिल को शक भरी नजरों से देखते हुए कमरे के बाहर निकल आयी ।
सार्थक उसे दरवाजे के होल से खाना खाते देखकर मुस्कुरा ही रहा था कि अचानक ही उसे कुछ याद आया। अभी उसने ही तो कहा था की अगर उसने खाना खा लिया तो वो उसे उसके माँ पापा के पास ले जाने के लिए सोचेगा! कहीं ये इसी लिए तो खाना नहीं खा रही है ? मैं भी कितना बेवकूफ हूँ क्या-क्या बोल देता हूँ । सार्थक ने अपना सर पकड़ लिया।
शक्ति ने तो वैसे कई बार झूठ बोला था सार्थक के कहने पर लेकिन तब उसे दो या दिन दिन पहले ही पता होता था कि इस दिन झूठ बोलना है और वो तुरंत उस झूठ को सच साबित करने के लिए सुबूत का इंतजाम भी कर लेता था। लेकिन आज सुबह सार्थक ने आज के सारे शूट्स कैंसिल कर दिये तो उसने अपना सर पकड़ लिया। उसने सार्थक को समझाते हुए कहा भी की जिस फिल्म की शूटिंग चल रही है उसकी शूटिंग ऑलरेडी लेट है। तभी सारे क्रू मेंबर्स दिन रात एक करके शूटिंग में बिजी हैं । सुबह 4 बजे से ही को-एक्टर्स आने लगे है, लीड एक्ट्रेस भी बस पहुंचने वाली होंगी अब ऐसे में शूट से मना करना मतलब पैसे और सेट की बर्बादी उसपर से बाकी सब की नाराजगी। बोल देना मेरी तबियत कुछ सही नहीं हैं, आज किसी और के हिस्से का शूट कर लें । इतना कहकर सार्थक ने फोन रख दिया था शक्ति को कुछ और बोलने का मौका भी नहीं मिल पाया। उसे पहले खुद पर गुस्सा आया कि ऐसे सिरफिरे एक्टर का वो मैनेजर बना ही क्यों ? फिर सार्थक पर उसे गुस्सा आने लगी कि शूट नहीं करना था तो शाम को तो बता नहीं सकतें थें ! एक फिल्म की शूटिंग रोक दी कोई बात नहीं थीं बाकी के इवेंट्स कैंसिल करने की क्या जरूरत थी ? शक्ति ने अपना सर झटका और खुद को उन बातों के लिए तैयार करने लगा जो अभी उसे उन लोगों से सुननी पड़ती जिनके शूट्स आज सार्थक ने कैंसिल कर दिये थें।
To be Continued. ……
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