इश्क़ का अंजाम पार्ट-22 Love story
अब तो सुबह हो गयी अब बताने की तकलीफ करोगी कि तुम्हें क्या चाहिए ? सार्थक ने पहुँचते ही बिना किसी हाय हेलो के सीधा सवाल कर दिया । ये तक भी ध्यान नहीं दिया कि मंजिल सुबह-सुबह आईने के सामने बैठकर तैयार हो रही थी जो कि इतने दिनों में उसने कभी नहीं किया ।
लेकिन हाँ एक बात मैं फिर से क्लियर कर दूँ कि यहाँ से मुझे छोड़ जाने के अलावा बाकी दूसरी बातों पर ये नियम लागू है ।
नहीं ऐसा कुछ नहीं चाहिए मुझे क्योंकि मैने सोच लिया है अब मैं यहाँ से तभी जाउंगी जब तुम खुद मुझे छोड़ के आओगे ।
मतलब कि सात जन्मों का यहीं के लिए पक्का कर लिया है तुमने ।
सात जन्म या सात हफ्ते कौन जानता है ? ये सब तो वक्त की बातें है वक्त आने पर ही पता चलेंगी। मंजिल ने अपने लुक को फाइनल टच देते हुए मुड़कर सार्थक की तरफ देखा ।

कहर लग रही हो तुम …! ये कहना चाहता था सार्थक उसकी काजल लगी आँखों को देख कर लेकिन उसने अपने भाव को दबा दिया और बात आगे बढ़ाई – वक्त की तो मैंने वक्त ही पर छोड़ रखी है अभी तो सब तुम पर है कि तुम्हारी डिमांड क्या है।
डिमांड नहीं डिमांड्स … मेरी दो मांगे है आपको माफ़ी देने के बदले मिस्टर सार्थक । वो अपनी कुर्सी से उठ गयी।
इंटरेस्टिंग ! चलो बताओ आजमा लो मुझे और मेरी क्षमता को। सार्थक अपनी जेब में हाथ डालकर मंजिल के सामने खड़ा हो गया।
I want to meet my father …
For what ? सार्थक थोड़ा डर गया।
ये जानने का हक़ नहीं है तुम्हें बस इतना बताओ मिलवा सकते हो या नहीं ?
Ok, दूसरी डिमांड बताओ ।
पहले पहली तो पूरी हो जाने दो । उसने सार्थक को आँख मारते हुए कहा और मटकते मटकते कमरे के बाहर चली गयी ।
सार्थक मंजिल को उसके पापा के ऑफिस ले कर तो गया लेकिन मंजिल ने जब उसे बाहर ही रोक दिया तो उसे बेचैनी होने लगी। अंदर जाकर वो क्या करेगी ? कहीं उसके पिता कोई शिकायत न कर दे पुलिस से उसकी, मंजिल के समझने पर ! या किसी और वजह से मिलने गयी हो ? क्या खिचड़ी बनाएंगे ये दोनों मिलकर ? सार्थक के कदम इसी उलझन में पूरे फ्लोर को नाप रहें थें।
तो आपने कपड़े का ये छोटा सा शोरूम खरीदने के लिए अपनी बेटी को बेचा था ? गुंजल क्लॉथ स्टोर ! हु.उ.. नाम भी अच्छा रखा है आपने। मंजिल चारों तरफ लगे कपड़ों की डिजाइन को देखकर उनसे इम्प्रेस होने का दिखावा करने लगी। उसने एक बार भी अपने पिता की तरफ नहीं देखा जो की एक लिस्ट पर कुछ टिक करते जा रहें थें।
उन्हें उम्मीद तक नहीं थी कि मंजिल से उनका सामना कभी इस तरह भी हो जायेगा । हैरान , खुश , और शर्मिंदा होकर वो एक साइड में सर झुका के खड़े हो गएँ थें।
क्या हुआ कुछ कहेंगे नहीं अपनी बेटी से ? कि मुझे अपनी बेटी भी मानना छोड़ दिया है।
नहीं ऐसी बात नहीं है बेटा…
खबरदार… खबरदार जो मुझे अपनी बेटी कहने के बारे में सोचा भी तो ! मंजिल की चीख से उसके पिता की आवाज सहम गयी।
आपकी सिर्फ एक बेटी है गुंजल, मंजिल तो सिर्फ कमाई का जरिया थी। जिसे भेड़ बकरियों की तरह पाला और अच्छा दाम मिलने पर कसाई के हाथों बेच दिया।
वो बहुत प्यार करता है तुमसे ….
कुछ वक्त तक ये गलतफहमी मुझे भी थी आपके लिए लेकिन ऐसा नहीं है ।
बेटा मैं मजबूर हो गया था तुम्हारी माँ के आगे।
पहली बात तो ये कि मेरी कोई माँ नहीं है और दूसरी बात अब कोई बाप भी नहीं है मेरा। अनाथ हूँ मैं अब । मंजिल बोलते-बोलते रो पड़ी।
ऐसा मत बोलो बेटा , मैं आज भी बहुत प्यार करता हूँ तुमसे। रिश्ते ऐसी बातों पर ख़त्म नहीं हो जातें । उसके पिता ने उसके पास जाते हुए कहा ,” तुम जानती हो घर के हालत क्या थें उस वक्त । पैसे की बहुत सख्त जरूरत थी और गुंजल को किसी अच्छी यूनिवर्सिटी….. उन्होंने मंजिल के कंधो पर अपना हाथ रखने की कोशिश की लेकिन मंजिल ने तुरंत उन्हें झटक दिया।
पैसे की इतनी ही जरूरत थी तो मुझे बोलते मैं कुछ करती । नहीं कर पाती तो लोगों के साथ सोना शुरु कर देती । हमेशा किसी एक के इशारों पर नाचने से अच्छी थी दो घंटे की गुलामी….
नहीं…. बस करो मंजिल बस करो… अपने कानों को बंद करके वो नीचे बैठ कर बिलखने लगे।
कैसे बस करूँ अभी तक मैंने कुछ कहा ही कहाँ है । बहुत कुछ भरा हुआ है मेरे अंदर सारा नहीं तो आधा तो सुन ही लीजिए।
तुम यहाँ क्या कर रही हो मेरे स्टोर में? किसी कर्मचारी के फोन करने पर मंजिल की सौतेली माँ वहाँ आ चुकी थी।
उनको देखते ही मंजिल पहले तो डर गयी लेकिन हिम्मत जुटा कर उनसे सवाल जवाब करने के मूड में आ ही गयी।
आपका स्टोर? जहाँ तक मेरी जानकारी है आपने ये मेरी कीमत से खरीदा है न ।
कौन सी तुम्हारी कीमत..? कौड़ी के भाव तो कोई तुम्हें देखे न ऐसे में अगर मैंने अपनी अकल से करोड़ो कमाएं है तो उसमें तुम तो जरा सा भी नहीं हो ।
देखिये अब जब अकल की बात की आपने तो बता दूँ अकल होती न आपने अगर तो मेरा नहीं गुंजल का सौदा करतीं आप…
तेरी ये हिम्मत तूने मेरी बेटी को बेचने की बात की… । उसने झपट कर मंजिल के बाल पकड़ लिए । मंजिल के पिता दोनों की लड़ाई छुड़ाने की बजाय वहाँ से किनारे हट गएँ। ये देखकर मंजिल और बुरी तरह से टूट गयी कुछ उम्मीद लेकर वो यहाँ आयी थी वो भी चकनाचूर हो गयी। सच में मंजिल अनाथ हो गयी है अब । उसके हाथों की सारी शक्ति ख़त्म हो गयी और वो अपने बालों को छुड़ाने की कोशिश भी न कर सकी।
बहुत लम्बी जुबान हो गयी है न तेरी आज के बाद से खुलेगी ही नहीं। उन्होंने मंजिल को मारने के लिए हाथ उठाया लेकिन किसी ने उसका हाथ पकड़ लिया ।
सार्थक सर आप..! आप यहाँ!
हिम्मत कैसे की तुमने मंजिल को इस तरह हाथ लगाने की ! सार्थक की आँखें गुस्से से लाल हो चुकी थी और उसने गुंजल की माँ का गला अपने हाथों में पकड़ लिया था। उनके पति उन्हें बचाने आएं तो सार्थक ने उन्हें भी धक्का दे कर दूर कर दिया।
क्या समझा तुमने जो मन होगा तुम्हारा वो कर लोगी उसके साथ ?लाचार या बेबस नहीं मेरा प्यार है वो और मेरे प्यार को जो हाथ लगाएगा उसकी दुनिया तबाह कर दूँगा मैं । वो अपनी गर्दन छुड़ाने के लिए झटपटा रही थी। मंजिल भी अब तक खुद को संभाल चुकी थी । इसीलिए उसने तुरंत सार्थक को रोका।
सार्थक छोड़ो इन्हें ।
नहीं आप इसी स्टोर के बेसमेंट में लाश दफ़न होगी इसकी।
सार्थक पागलपन मत करो । वो उन दोनों के बीच में आकर सार्थक का हाथ अपनी तरफ खींचने लगी।
सार्थक प्लीज, गुंजल के लिए छोड़ दो इन्हें। वो उन्हें छोड़ता नहीं लेकिन उसके आगे अब उसकी माँ का चेहरा नहीं उसकी उड़ती हुई उलझी जुल्फें आ रहीं थीं और उसके हाथ पर मंजिल के दोनों हाथ।
उसने अपना हाथ ढीला छोड़ा तो मंजिल ने पूरी ताकत से उसे अपनी तरफ खींच लिया और सीने से लगाकर दोनों हाथों से पकड़ लिया। मंजिल को लग रहा था ऐसा कि जरा सी भी ढील मिली तो कहीं वापस से गर्दन न पकड़ ले उनकी लेकिन सार्थक के इमोशन एक दम से पूरी तरह बदल चुके थें , सारा गुस्सा कहीं दूर चला गया था। उसके सीने से सटी मंजिल की पीठ और उसके बालों की खुशबू ने उसे आँख बंद करने पर मजबूर कर दिया था ।
तुम ठीक तो हो ना ? मंजिल के पापा ने उससे एक बार भी न पूछा लेकिन अपनी पत्नी को जरूर संभालने पहुँच गएँ। उसने उन्हें दूर हटा कर मंजिल की तरफ देखा । जैसे कह रही हो की इस बार तो बच गयी लेकिन अगली बार नहीं बच पाओगी। मंजिल की आँखों से आँसू बहते हुए सार्थक के हाथ पर गिरे तो उसने अपनी आँखें खोल दी। उन दोनों को देखने के बाद उसने अपने दूसरे हाथ से मंजिल को अपनी बाहों में भर लिया।

चलें यहाँ से? उसने मंजिल के कान के पास मुँह ले जाकर धीमे से पूछा ।
मंजिल बोली कुछ नहीं बस हाँ में सर हिला दिया।
Ok! उसने मंजिल के एक कंधे पर अपना हाथ रखा और उसे संभालता हुआ बाहर ले आया। मंजिल को कार में बिठाकर जैसे ही वो ड्राइविंग सीट पर बैठने गया उसे पीछे एक कार खड़ी दिखाई दी जो उसके आने से पहले नहीं थीं ।
तुम बैठो मैं आता हूँ । सार्थक पहले पीछे लगी कार के पास गया फिर स्टोर के वॉचमैन के पास।
कार किसकी है ?
मेमसाहब की ।
जो अभी अंदर गयीं थीं?
हाँ !
कि साहब की है जो अंदर हैं?
नहीं उनके पास तो खाली एक स्कूटर हैं ये कार तो मैडम की ही है । वहीं चलाती हैं इसे।
Ok Thank you । सार्थक ने एक सिगरेट निकाली और कार के पास जाकर पीने लगा । सिगरेट सुलगाने के बाद जलता हुआ लाइटर उसने उस कार की फ्रंट सीट पर डाल दिया और अपनी कार में आकर बैठ गया।
ये क्या किया तुमने ? जानते भी हो कार के साथ-साथ ये सब भी जल जाएगा । फिर से रोड पे आ जाएंगे ये लोग ।
तो तुम क्यों परवाह कर रही हो इन लोगों की । जो किया इन लोगों ने वहीं पाया ।
मैं इनकी परवाह नहीं कर रहीं मुझे बस गुंजल की फ़िक्र है जैसे अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए मुझे बेचा ये लोग गुंजल को भी वैसे ही बेच सकतें हैं । सार्थक ने मंजिल के घबराये हुए चेहरे की तरफ देखा । क्या सिर्फ उसे अपने पेरेंट्स की जरूरत ही दिखाई दी इन सब के पीछे उसकी मोहब्बत, उसकी आशिक़ी की कोई वैल्यू ही नहीं हैं मंजिल की नजरों में ।
उसने अपनी मोहब्बत में हार कर ये कदम उठाया था वो कोई पेशेवर खरीददार नहीं हैं लड़कियों का । सार्थक ने अपने आंसुओं को भीतर ही भीतर पीकर कहा-
कार के अलावा कुछ नहीं जलेगा । फायर फाइटर्स आ जाएंगे तब तक । इतना कहकर सार्थक ने कार स्टार्ट कर दी।
मंजिल के लगातार रोने की वजह से सार्थक ने कुछ दूर जाकर कार रोक दी और उसे कम्फर्ट कराने की कोशिश करने लगा ।
देखो तुम पर क्या गुजर रही है उसे मैं पूरी तरह से समझ तो नहीं सकता हूँ लेकिन इतना जरूर है की बिल्कुल ही बेखबर भी नहीं हूँ मैं । कहीं न कहीं तुम्हारे इस दर्द का कारण मैं भी हूँ ये भी पता है मुझे । इसके बावजूद मैं चाहता हूँ, कोशिश करता हूँ कि तुम ज्यादा से ज्यादा खुश रहो । उसने अपना हाथ धीमे से मंजिल के कंधे पर रखा।
दूसरी डिमांड बाकी है मेरी, पूरी करोगे ?उसने अपने आँसू पोछते हुए कहा।
जरूर करूँगा लेकिन तब जब तुम मुझे भरोसा दिला सको कि उससे तुम्हें कोई तकलीफ न हो।
Don’t worry ! वही एक चीज है जो करने में मुझे बहुत सुकून मिलता है ।
क्या ? मुझे मेरे मामा के यहाँ जाना है।
अब तुम्हें उनसे भी मिलना है वो भी कहीं…
मुझे मिलना वहाँ किसी से नहीं है बस वहाँ जाना है।
जब मिलना नहीं है तो जाकर क्या करोगे?
तुमने कल ये तो बताया नहीं था की मुझे तुम्हारे सवालों के जवाब भी देने पड़ेंगे। मंजिल ने तंज कस दिया ।
ok नहीं पूछता बस। उसने कार स्टार्ट कर दी।

हिंदी फिल्मों का सुपरस्टार , 60 हजार करोड़ की नेटवर्थ का मालिक आज एक मामूली सी लड़की के इशारों पर पूरे शहर में ड्राइवर की तरह गाड़ी घुमा रहा था। शहर ही क्यों अब तो वो मुंबई से 50 किलोमीटर आगे निकल आया था ।
आखिरकार शाम होते-होते सार्थक उसके मामा के मोहल्ले में पहुँच ही आया था। मंजिल खुशी से झूमती हुई कार से उतर पड़ी लेकिन सार्थक थोड़ी झिझक के साथ बाहर निकला। आमने- सामने की पोजीशन में दस से बारह घर दिख रहें थें अलग-अलग रंगों से पूते हुए मीडियम साइज के। आसपास बच्चे जो अभी तक खेल रहें थें अब इकट्टा होकर उसे और उसकी कार को देखने लगे।
मंजिल एक दरवाजे पर लगातार दस्तक देती जा रही थी और सार्थक बड़े गौर से देख रहा था कि अंदर से कौन निकलेगा। थोड़ी देर के इंतजार के बाद एक बूढ़ी औरत ने दरवाजा खोला। उसकी आँखों पर लगा मोटा चश्मा बता रहा था कि इतनी देर क्यों लग गयी दरवाजा खोलने में ।
मंजिल ने उनके पैर छुए और कुछ पूछा थोड़ी देर बात करने के बाद उसने अपनी पर्स से निकाल कर उनके हाथ में कागज के टुकड़े जैसा कुछ रखा और बार-बार उस टुकड़े को दिखाते हुए बार-बार उनके हाथ पर रखा। मंजिल ने वहाँ से उसकी तरफ देखा तो उसने तुरंत अपनी नजरें दूसरी तरफ घुमा ली। इतनी देर में सार्थक समझ चुका था कि दादी को सिर्फ दिखाई ही कम नहीं देता बल्कि उनके सुनने और याद रखने की क्षमता भी काफी कम है ।
मंजिल के आने से पहले ही वो ड्राइविंग सीट पर बैठ चुका था। ड्राइविंग करते-करते उसे काफी थकान महसूस होने लगी थी लेकिन वो मंजिल को कार ड्राइव करने के लिए नहीं बोल सकता क्योंकि उसे आती ही नहीं है।
मंजिल जब कार में आकर बैठी तो उसके चेहरे पर एक अलग ही रौनक नजर आयी थी सार्थक को जो इतने सालों में कभी भी उसने नहीं देखी थी । सार्थक वहाँ की हर लोकेशन को अपने माइंड में फिट करने के साथ ही मंजिल के चेहरे पर आते-जाते हर भाव को भी पढ़ता जा रहा था ।
मुंबई पहुंचते ही सार्थक को नींद सी महसूस होने लगी थी लेकिन अभी वो सो भी नहीं सकता था । अब उसका शरीर आराम चाहता था। उसने आसपास कहीं होटल में रुकने की सोची इसके लिए जब उसने मंजिल से पूछना चाहा तो देखा मंजिल सो चुकी थी। बाहर से आती हुई हवा ने उसकी जुल्फे बिखेर कर उसके चेहरे पर कर दी थी जिससे वो बहुत ज्यादा प्यारी लग रही थी। मंजिल की इस प्यारी सी झलक ने सार्थक की जैसे सारी थकान ही खींच ली थी , उसे एक अलग ही लेवल की एनर्जी का अहसास हो रहा था इस वक्त।
कार का शीशा मंजिल के चेहरे की तरफ मोड़ते हुए सार्थक ड्राइविंग पर ध्यान देने लगा।
कहाँ थें आप सुबह से ? फोन भी नहीं उठा….! कल्पना ने जैसे ही पूरा दरवाजा खोला तो सार्थक ने उसे चुप रहने का इशारा कर दिया क्योंकि उसकी बाहों में मंजिल सो रही थी।
आपने फिर से… कुछ…! रात के 11 बज चुके थे ऐसे में मंजिल का इस तरह सार्थक के साथ होना कल्पना को फिर से डरा गया।
अरे नहीं । गाड़ी में ही सो गयीं थीं तो सोचा जगाने को रहने दूँ खुद ही कमरे में लिटा दूँगा जाकर इन्हें।
सार्थक मंजिल को गोद में लिए हुए आहिस्ते-आहिस्ते सीढ़िया चढ़ने लगा।
मंजिल को लिटा कर उसे अच्छे से चादर ओढ़ाने के बाद सार्थक एक कुर्सी खींच कर मंजिल के बिस्तर के पास बैठ गया । उसके मासूम से चेहरे को देखते-देखते न जाने कब कुर्सी पर ही सार्थक की भी आँख लग गयी।
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