इश्क़ का अंजाम Part-24 Love story in Hindi

                              इश्क़ का अंजाम Part-24 Love story in Hindi

मंजिल की आँख सुबह दस बजे खुली । उसने अपने आपको एक मुलायम से चादर में लिपटा हुआ पाया । आज वो सार्थक से दूर है किसी महफूज़ जगह पर एक गर्म मुलायम बिस्तर में । ये याद आते ही उसके चेहरे एक मुस्कुराहट आयी और आँखों में फिर से हलकी नींद उतर आयी। पर मंजिल को जैसे ही रात का सब कुछ याद आया वो चौंक पड़ी और उठ कर बैठ गयी। वो तो ऑटो में सोई थी, ये यहाँ कहाँ आ गयी? मंजिल तुरंत बिस्तर से उतर गयी और कमरे में लगी हुई कुछ तस्वीरों को देखने लगी।

इनको तो कहीं देखा है ? उसने एक तस्वीर अपने हाथों में उठायी । ये तो शक्ति है सार्थक का…. मैनेजर ! इतना याद आते ही मंजिल के हाथ से वो तस्वीर छूट कर फर्श पर गिर गयी, और उसके चेहरे पर खौफ और बेचारगी के मारे दो आँसू गिर पड़े । कमरे में शोर होने पर एक औरत वहाँ आ गयी।
आप ठीक तो है ?
मंजिल ने अपनी गर्दन घूमा कर देखा तो वही औरत थी जो रात में उसके साथ थी ।

क्या है ये सब , मुझे यहाँ से निकलने क्यों नहीं दे रहें तुम लोग। मंजिल जोर-जोर से चीख मारते हुए रोने लगी और कमरे का समान नीचे फेंकने लगी।
ऊपर की आवाज़ ग्राउंड में बैठकर मंजिल के जगने का इंतजार कर रहे सार्थक और शक्ति के कानों तक भी पहुंची । सार्थक उठकर घर के अंदर चल दिया तो शक्ति भी पीछे ही चल दिया उसके।
मुझे इसके बारे में कुछ भी नहीं पता मुझसे जैसा कहा गया वैसा किया मैंने ।

मुझे सिर्फ सार्थक से नफरत नहीं है शक्ति से भी है , कल्पना से है तुमसे है मुझे पूरी मुंबई से नफरत है सुना तुमने… नफरत है मुझे बहुत सारी नफरत। मंजिल ने गुस्से में आकर शक्ति का TV भी पटक दिया।

हाँ सुना हमने तुम बोलती रहो कि हमसे कितनी ज्यादा नफरत है। सार्थक कमरे में आ चुका था और उसकी आवाज सुनते ही मंजिल बिल्कुल खामोश हो गयी । साँस संभालते हुए उसने पलट कर सार्थक को देखा उसका गुस्से से भरा हुआ चेहरा और लाल आँखें देख कर मंजिल को जैसे साँप सूंघ गया हो। उसके चेहरे पर अचानक ही बहुत सारा पसीना उभर आया और उसके शरीर में कपकंपी होने लगी। डर के मारे मंजिल पलके झपकना भी भूल गयी थी तो मुँह से कुछ बोलना एक असंभव सी बात थी।

बोलो ! बोलती रहो , क्योंकि इसके बाद तुम्हें बोलने का मौका नहीं मिलेगा। सार्थक उसकी ओर आने लगा ।

तुमसे कहा था कि मत भागना तो फिर क्यों भागी तुम ? तुमने जरा भी नहीं सोचा कि मेरी चालाकियों को जानने वाला ये इंसान क्यों इतनी आसानी से भरोसा करेगा मेरी बात पर। थिएटर में न सही लेकिन बाहर आने पर तो तुम्हें समझ जाना चाहिए था कि इतनी बिजी रोड पर भी तुम्हें इतनी कम गाड़ियां क्यों देखने को मिल रही है । सार्थक मंजिल के आगे आगे खड़ा हो गया था । मंजिल बिल्कुल फ्रीज हो चुकी थी।

डर इतना ज्यादा लग रहा था उसे कि अपने दोनों हाथों से अपनी स्कर्ट को पकड़ लिया था । अब कोई नहीं बचा सकता है उसे सार्थक से, ये सोचते ही उसकी heart beat बहुत तेज हो गयी।
कितनी बार मेरा भरोसा तोड़ोगी मिस मंजिल ? सार्थक उसके चेहरे की ओर झुक रहा था लेकिन बीच में शक्ति आ गया।
सर अभी सो कर उठी हैं । क्या कह रहीं हैं, क्या कर रहीं हैं , इस को सोचने के लिए आपको इन्हें थोड़ा टाइम देना चाहिए। जब तक ये फ्रेश होकर नीचे आएँ तब तक हम लोग इनका बाहर ही इंतजार करते है।
सार्थक गुस्से में मंजिल को देख रहा था और शक्ति उसे लगभग खींचते हुए बाहर ले गया।

सार्थक ने कमरे से निकलते ही मंजिल ने गहरी साँस ली और अपनी स्कर्ट में जल्दी-जल्दी कुछ टटोलने लगी।
उसे ऐसा करते देख कर कमरे के टूटे समान को समेटने में जुटी उस महिला ने अपनी बात बतानी शुरु की।

शक्ति सर सार्थक सर के लिए काम करतें हैं और मैं शक्ति सर के लिए। कभी ऐसे डायरेक्ट सार्थक सर से मिलने का मौका नहीं मिला था कल से पहले। सार्थक सर ने शक्ति सर को बोला था थिएटर के बाहर नजर रखने के लिए लेकिन उन्होंने खराब तबियत का बहाना बनाकर मुझे भेज दिया। मैं हलके में ही ले रही थी 3 घंटे के ट्रैफिक डाइवर्जन को क्योंकि मुझे लगा था आप नहीं भागेंगी लेकिन वो दोनों जानते थें की आप भागेंगी। वैसे आप इतने Handsome, Good looking, Strong, rich और popular इंसान से दूर क्यों जाना चाहती हैं? जबकी वो तो आपको कितना प्यार करतें है।

Shut up now! मंजिल को जेब टटोलने के बाद जब कुछ भी नही मिला तो वो घबरा गयी।
Ok शायद आपको ज्यादा बातें करना पसंद नहीं हैं इसीलिए In short मैं आपको बता देती हूँ आपकी जेब में जो मिला वो मैंने शक्ति सर को दिया और उनसे सार्थक सर ने ले लिया। शक्ति सर नहीं चाहते थें कि बेहोशी की हालत में आपके साथ कुछ भी हो इसीलिए उन्होंने रात में न आपको सार्थक सर को ले ही जाने दिया और न उन्हें आपकी तलाशी ही लेने दी थी ।

इश्क़ का अंजाम पार्ट-24
इश्क़ का अंजाम पार्ट-24

 

अब इसके बाद भी आप कहती है कि सार्थक सर के साथ आपको शक्ति सर से भी नफरत है तो मुझे हैरानी होगी। पानी और रुमाल में बेहोशी की दवा मिलाने वाली मुझसे आपको नफरत हो जाये वो समझ में आता है लेकिन कल से बार-बार call करके आपकी तबियत पूछने वाली किसी कल्पना से आपको नफरत है ये जानकर मुझे आप पर दया आएगी। किसी एक इंसान के चक्कर में आपको पूरे शहर से नफरत हो जाएँ तो मुझे बहुत अफसोस होगा आपके लिए। बस इसके अलावा और क्या ही कहूं मैं आपसे। वो सर झुका के वापस से अपना काम करने लगी।

चलिए मैम सर आपका wait कर रहें हैं । शक्ति आया है कमरे में मंजिल को बुलाने । मंजिल के डर और घबराहट को देखते हुए शक्ति ने उसे समझाने के लिहाज से कहा –

आप बेवजह क्यों परेशान हो रही हैं सर तो बस ऐसे ही अपसेट है। न उन्हें परेशान होने की जरूरत है न आपको। हाँ इतना जरूर है कि अगर प्यार से एक दूसरे से बात करेंगे आमने सामने बैठकर, उनकी किसी भी बात पर बिना गुस्सा किए मुस्कुरा के जवाब दिया जायेगा तो वो खुद ही शांत हो जाएँगे और अगर आपने शाम को एक कप जबरदस्त कॉफी बना के पिला दी तब तो उनका दिल ही खुश हो जाएगा । वैसे भी आज कल्पना को छुट्टी दी गयी है तो अगर रात का खाना दोनों साथ मिलकर बनाएँगे तो…. शक्ति बोलते-बोलते रुक गया क्योंकि उसने पीछे सार्थक की आहट पहचान ली थी।

मंजिल भी समझ गयी थी कि शक्ति ने उसे खुद को बचाने के तरीके बताएं है। कल्पना का वहाँ न होना ही बताता है की सार्थक के दिमाग़ में कुछ बहुत बड़ा चल रहा है। सार्थक के कमरे में आते ही मंजिल खुद ही कमरे से बाहर निकल आयी और थोड़ी ही देर में कार की ड्राइविंग सीट पर भी चुपचाप बैठ गयी। वरना लाख कहने पर भी वो सार्थक के बगल वाली सीट पर कभी नहीं बैठती है।

शक्ति और उसकी असिस्टेंस सार्थक को छोड़ने कार तक आएँ । अगली सीट पर सहमी बैठी मंजिल उन दोनों को बिल्कुल उसी तरह देख रही थी जिस तरह कसाईबाड़े में जाने से पहले कोई पालतू जानवर अपने मालिक को देखता है । शक्ति भी उसकी उन आँखों को पढ़ रहा था , समझ रहा था लेकिन कर कुछ नहीं सकता था। इसीलिए जब मंजिल ने अपनी उम्मीद भरी निगाह उस पर टिकाई तो वो उसकी तरफ देख न सका और अपना चेहरा सार्थक की तरफ कर लिया।

सार्थक ने जैसे ही कार स्टार्ट की मंजिल के दिल में एकदम से एक हूक उठी और आँखों से आँसू झलक आएँ फिर उसने भी शक्ति की तरफ से नजर हटा कर अपना सर झुका लिया।
जैसा रास्ते भर मंजिल सोचते हुए आयी थी जिस चीज का उसमें खौफ भर चुका था वैसा होने से रोकने के लिए उसने शक्ति की सारी बातें गांठ बाँध ली थी। इसीलिए घर पहुंचते ही वो भागकर किसी कमरे में छुपने के बजाय सार्थक के पीछे-पीछे ही घर के अंदर आयी।

घर आते ही उसने कल्पना को आवाज लगायी जबकी उसे मालूम था कि आज उसे छुट्टी दी गयी है फिर भी वो सार्थक के मुँह से ये बात सुनना चाहती थी ।
वो आज अपने घर गयी है । सार्थक ने सोफे पर बैठते हुए उसे तिरछी आँखों से देखते हुए गयी।
वो नहीं हैं तो मैं कुछ बना दूँ तुम्हारे लिए..?
हाँ इससे अच्छा मौका हो ही नहीं सकता मुझे मारने का कुछ बनाओ और उसमें जहर मिला दो । घर पर है ही कौन जो मुझे बचाने की कोशिश करे।

नहीं ऐसा नहीं है। मंजिल ने भरसक अपना गला साफ रखते हुए बोलने की कोशिश की ।
अच्छा । सार्थक इतना ही बोला और सोफे पर सर टिका कर माथे पर हाथ रख लिया । जैसे उसके दिल में जो-जो बवण्डर उठ रहें थें उन्हें कुचल कर मार देने की कोशिश कर रहा हो। मंजिल थोड़ी देर वही खड़ी रही चुपचाप फिर सार्थक को देखने लगी।

ऊपर चली जाओ और मेरी एलमीरा से गन निकाल कर मुझे उससे मारने की कोशिश करो क्योंकि तुम्हारे ऐसे देखते रहने से मैं मरने वाला नहीं । सार्थक की आँखें बंद थी फिर भी पता नहीं वो कैसे जान गया कि मंजिल उसी को घूर रही है।
नहीं ऐसा कुछ नहीं है मैं तो बस ये पूछना चाहती थी कि क्या मैं कमरे में जाऊँ अपने ? मंजिल ने अपना सर झुका लिया था ।

तुम कब से मुझे पूछने या बताने लगी भई ? और पूछोगी क्योंकर ही भला जिससे सबसे ज्यादा नफरत करतें हैं उसकी परमिशन मांगकर क्या ही करना होता है। जाओ जो मन हो करो जाकर। सार्थक ने वैसे ही अधलेटे हुए ही जवाब दिया।
मैं बस फ्रेश होना चाहती हूँ नहाकर । मंजिल ने सधी जुबान में जवाब दिया ।
Ok जाओ नहा लो जाकर । सार्थक सोफे से उठकर अपने कमरे की तरफ चल दिया ।

मंजिल नहा ही रही थी कि बाथरूम में पानी आना बंद हो चुका था । उसने बाथरूम के हर टैब से , शॉवर से , नल से पानी निकालने की कोशिश की लेकिन सब कुछ बंद पड़ा था । जबसे वो यहाँ आयी है ऐसा कभी नहीं हुआ आजतक । ऐसा लग रहा था कि किसी ने बाहर से मेन स्विच ही बंद कर दी हो।
पानी क्यों नहीं आ रहा है ये देखने के लिए मंजिल टॉवल लपेटकर बाथरूम से बाहर आ गयी क्योंकि उसने तो सोचा था सार्थक अपने कमरे में लेटकर आराम कर रहा होगा । उसे बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था कि सार्थक उसके कमरे में ही बैठकर उसके बाहर आना का इंतजार कर रहा है ।

सार्थक को देखते ही मंजिल पहले तो बहुत तेज घबराई फिर उसने अपने एक हाथ से नीचे की टॉवल और दूसरे हाथ से सीने की तरफ कवर करके बाथरूम में वापस जाने की कोशिश की।
Don’t go वरना मैं दरवाजा तोड़ दूँगा । चाहता तो मैं खुद भी अंदर आ सकता था लेकिन अंदर तुम और भी बुरी सिचुएशन में होती इसीलिए शुक्र करो की मैंने तुम्हें इस तरफ बाहर बुलाया है।

सफेद तौलिए में लिपटा एक मासूम लड़की का बदन, बालों से चू कर उसके होठों तक और फिर होठों से उतर कर सीने में कहीं खो जाने वाली पानी की बूँदे उसे किसी अफीम से भी ज्यादा नशीला बना रहीं थी। सार्थक का जी तो हो रहा था कि वो उसके बदन से तौलिया भी खींच कर फेंक दे , लेकिन वो शक्ति की बताई ट्रिक भी आजमा के देख लेना चाहता था आज। शायद इसी से मंजिल के दिल का रास्ता बने।

please अंदर जाने दीजिए । उसने डरते हुए कहा क्योंकि सार्थक उसे एकटक निहारे जा रहा था । तौलिया छोटी थी इसलिए अगर ऊपर खींचती तो टांगे ज्यादा खुल जातीं और नीचे खींचती तो सीना ज्यादा दिखने लगता।
मुझे कॉफी पीनी है ।
कपड़े पहन….

नहीं मुझे अभी कॉफी चलिए और बेहतर होगा कि इसी तरह जा कर बनाओ ।
लेकिन….
क्या चाहती हो मैं ये तौलिया भी हटा दूँ तुम्हारे इस खूबसूरत से….
सार्थक धीरे से उसके करीब जाने को बढ़ा तो मंजिल खुद ही बोल पड़ी – जाती हूँ! और वहाँ से तुरंत निकल आयी।

इश्क़ का अंजाम पार्ट-24
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सार्थक मंजिल से दस कदम की दूरी बनाए हुए उसे देख रहा था। जोकि मंजिल को अनकम्फर्ट कर रहा था लेकिन मरती क्या न करती।
मंजिल कॉफी लेकर उसके पास पहुंची तो सार्थक ने उसे परेशान करने के इरादे से पूछा।
कॉफी में कुछ मिलाया तो नहीं है ?
न..हीं ! तुम देख तो रहे थें ।

उन्हू. .. मैं कॉफी नहीं तुम्हें देख रहा था। उसने फिर से मंजिल के पैरों से लेकर सर तक एक भरपूर नजर डाली। उसका टॉवल गीले बालों की वजह से भीग चुका था उसपर से मंजिल ने पीछे से सारे बाल आगे सीने की तरफ कर लिए थें जिससे रही- सही कसर भी पूरी हो गयी थी।
सार्थक की बात सुनकर मंजिल खुद को और ज्यादा सिकोड़ने लगी और साँसे भी बहुत धीमी कर ली थीं उसने। “नहीं मिलाया कुछ !” उसने बस फिर से वही बात दोहराई।

कैसे मान लूँ? लो पहले एक घूंट तुम पीकर दिखाओ। उसने कप उठा कर मंजिल के होठो से लगा दिया। मंजिल ने न चाहते हुए भी एक सिप ले ली। उसके कॉफी जूठा करते ही सार्थक ने मुस्कुराते हुए कप को घुमा कर उधर से ही कॉफी पीनी शुरु की जिधर से मंजिल ने पिया था।
अब मैं जाऊं ?

अगर मैं कहूं कि इसी तरह खड़ी रहो मेरे सामने तो क्या खड़ी रहोगी ! सार्थक मंजिल के झुके हुए चेहरे पर अपनी नजर टिकाए हुए था । उसका चेहरा बता रहा था कि वो कितनी सहमी हुई है इस वक्त। उसके चेहरे के हर पल बदलते भावों को देखकर सार्थक ने कुछ सोचते हुए कहा । – अच्छा जाओ मगर जल्दी आना मुझे कुछ जरूरी बात करनी है तुमसे। तब तक मैं यही बैठ कर कॉफी पी रहा हूँ ।
मंजिल बाथरूम में जाते ही कपड़े पहनने लगी उसे डर था कि कहीं सच में सार्थक अंदर न आ जाये। इसीलिए दरवाजे को अच्छे से लॉक करने के बावजूद वो उधर ही निगाह टिकाएं थी।

वैसे तो मंजिल रेगुलरली फ्रॉक , शॉर्ट्स और मीडी ही पहनती है लेकिन आज उसने खुद को ऊपर से लेकर नीचे तक कवर करने के लिए कुर्ती और जीन्स पहन ली थी । सार्थक ने जब उसे ऐसे देखा तो पहले उसे अजीब लगा लेकिन फिर वो समझ गया कि उसने ये क्यों पहना है।
इधर आओ ।

मंजिल सधे कदमों से चलकर सार्थक के आगे खड़ी हो गयी। सार्थक ने उसके दोनों हाथों को अपने हाथ में पकड़ कर सोफे पर बिठाया और खुद उसके आगे फर्श पर बैठ गया। मंजिल की साँसे ऊपर-नीचे हो रही थीं पता नहीं वो क्या कहेगा और पता नहीं क्या करेगा।
एक बात पूछूँ क्या वाकई में तुम्हें मुझसे इतनी नफरत है कि मेरी होने से अच्छा तुम जहर खाना पसंद करती हो ? मंजिल के दोनों हाथ उसके हाथ में हैं और उसकी आँखें मंजिल के चेहरे पर । मंजिल ने एक बार नजर उठाकर उसे देखा और फिर सर को वापस झुका लिया।

बोलो ! उसने बड़े प्यार से मंजिल के चेहरे को अपनी उँगलियों से ऊपर उठाया। फिर भी मंजिल ने कोई जवाब नही दिया।
क्या तुम्हें मुझसे डर लगता है ? मंजिल इस सवाल पर बजी चुप्पी साधे बैठी रही।

Ok! प्यार नहीं करना मत करो, शादी नहीं करनी मत करो लेकिन क्या मेरी इतनी भी हैसियत नहीं है कि तुम मुझे अपना दोस्त समझ कर ही अपनी बातें Share कर सको । मुझे लगता है कि अगर हम दोस्त होते तो हमारी समझ ज्यादा बेहतर होती और चीजें यहाँ तक पहुँचती ही नहीं । तुम अपनी दुनिया में खुश रहती मैं अपनी दुनिया में । महीने दो महीने में कभी-कभार मिल लेते एक- दूसरे के गर्लफ्रेंड-बॉयफ्रेंड की चुगली करते और फिर वापस से लौट जाते अपनी-अपनी दुनिया में ! है न ? इस बार मंजिल ने उसकी आँखों में देर तक देखा जैसे कुछ कहना चाह रही हो लेकिन बोली अबकी बार भी कुछ नहीं ।

मंजिल … सार्थक ने अपने दोनों हाथों में उसके छोटे से चेहरे को भर लिया। मंजिल ने भी अपने दोनो हाथ उसके हाथों पर रख दिये। मंजिल के इस तरह साथ देने पर सार्थक ने उसे धीमे से अपनी गोद में खींच कर सीने से लगा लिया। मंजिल भी उसकी शर्ट को पकड़ के सुबकने लगी। आज सुबह से पहली बार था ये जब मंजिल ने एक लम्बी राहत भरी साँस ली।

इश्क़ का अंजाम पार्ट-24
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मुझे डर लगता है तुमसे सच्ची में. …! उसने इतनी देर में पहली बार कुछ बोला था । सार्थक की बाहों में आकर वो उसी से उसी की शिकायत कर रही थी इसीलिए उसे गुस्सा जरा भी नहीं आ रहा था बल्कि बहुत सारा प्यार ही आ रहा था। थोड़ा बहुत प्यार तो उसे शक्ति पर भी आ रहा था क्योंकि उसी ने सुबह कहा था कि अगर प्यार की शुरुआत करनी है तो पहले दोस्ती तो अच्छे से कर लीजिए ।
क्यों लगता है डर ? मैं कोई भूत हूँ! सार्थक ने उसके बालों को सहलाते हुए पूछा।

बहुत गुस्सा करते हो , मेरी कोई बात भी नहीं समझते और … और मेरे साथ कभी-कभी जबरदस्ती की भी कोशिश करते हो जो मुझे बहुत डरा देता है तुमसे । मंजिल अब भी रो रही थी उसके सीने से लग कर ही।
Sorry! आगे से ऐसा कुछ भी नहीं करूँगा जो तुम्हें डरा दे। जैसे कहोगी वैसे रहूँगा । कभी गुस्सा भी नहीं करूँगा और तुम्हारी हर बात को समझूँगा और मानूँगा भी, क्योंकि अब से हम दोस्त बन गएँ है। उसने मंजिल के हाथ को अपने हाथ में लेकर चूम लिया।

वादा करो ।
हाँ प्रॉमिस कभी ऐसा वैसा कुछ नहीं करूँगा ।

तुमने अभी कहा था कि अगर हम दोस्त हो गएँ तो हमें साथ रहने की कोई जरूरत नहीं है। उसने अपना सर ऊपर करके सार्थक के चेहरे को देखा।
हाँ नहीं है लेकिन अभी तुम जाओगी भी किस के पास । तब तक यहीं रहो पढ़ाई कम्प्लीट करो और क्या पता धीरे-धीरे तुम्हें अपने इस दोस्त से प्यार भी हो जाएँ । उसने भी सर झुका कर मंजिल की आँखों में आँखे डाल के बड़े प्यार से जवाब दिया।

अगर तुम मुझे इस लिए रोक रहे हो कि एक दिन मुझे तुमसे प्यार हो जाएगा तो ऐसा कभी हो ही नहीं सकता है । इसीलिए मुझे जाने दो। मंजिल खुद को संभाल कर सीधी बैठ गयी थी ।

क्यों नहीं हो सकता है जब दोस्ती हो सकती है तो प्यार भी हो सकता है ।
दोस्ती तो बहुत से लोगों से की जा सकती है लेकिन प्यार तो सिर्फ एक ही इंसान से किया जा सकता है न।

हाँ प्यार तो सिर्फ एक ही इंसान से हो सकता है और वो इंसान तुम्हारी जिंदगी में. …. बोलते-बोलते सार्थक रुक गया और मंजिल के चेहरे को ध्यान से देखने लगा । कहीं कुछ छूट गया है क्या उसकी नजरों से ? मंजिल के होंठ पर किसी और के होठों का नशा , उसके गाल पर किसी और की उँगलियों के निशान या उसके बालों में किसी और के गुलाब की महक ..? इनमें से क्या?
क्या तुमने कभी किसी से प्यार किया है ? सार्थक ने अपना सवाल बदला। मंजिल ने कोई जवाब नहीं दिया सिर झुकाये बैठी रही।

देखो मंजिल हम अभी दोस्त बने है और दोस्त होने के नाते इतना जानने का हक तो बनता है मेरा। ऊपर से मैं तो प्यार भी करता हूँ तुमसे अगर यही पता चल जाएँ की तुम किसी और को पसंद करती हो तो मेरा कितना टाइम बच जायेगा यार । मैं भी Move on करके कोई दूसरी मंजिल ढूँढूंगा।
तुम सच बोल रहें हो न ।

मैं क्यों झूठ बोलूंगा तुमसे ?अब बताओ जल्दी से कौन है वो जिसे तुम प्यार करती हो। सार्थक की आवाज में एक उतावलापन आ चुका था और आँखों में एक जूनून जो मंजिल देख नहीं पायी।
हाँ मैं पसंद करती हूँ किसी को । हम दोनों ने भाग कर शादी का प्लान भी बना लिया था लेकिन तब तक तुम मुझे यहाँ ले आएं। अब तुम मुझे उसके पास छोड़ आओ चलके ताकि हम एक नयी जिंदगी शुरु….

छोड़ आऊंगा लेकिन पहले नाम तो बताओ। सार्थक की ये आवाज बदली हुई थी जिसे सुनकर मंजिल चौक गयी और सार्थक के चेहरे की तरफ देखा। पूरे चेहरे पर पसीना दिख रहा था, आँखें लाल थी और साँसे काफी तेज। सार्थक ने एक हाथ से सोफा पकड़ रखा था और दूसरा हाथ टेबल के कोने पर। सार्थक से सटकर बैठी मंजिल उसके सीने की धड़क को आराम से सुन पा रही थी।

सार्थक अपना ये रूप छुपाना चाह रहा था लेकिन नहीं कर पाया ऐसा। मंजिल ने डरते हुए उससे कहा – देखो तुमने अभी कहा कि तुम गुस्सा नहीं करोगे मेरी किसी बात पर ।
मैं कोई गुस्सा नहीं कर रहा मैंने सिर्फ नाम पूछा उसका । सार्थक ने खुद को कंट्रोल करने की कोशिश की। लेकिन तब तक मंजिल समझ चुकी थी कि सार्थक पर भरोसा करके उसने बहुत बड़ी गलती कर दी है ।

हम बात में बात करते हैं सार्थक । मंजिल उठ जाने को हुई तो सार्थक ने उसकी कमर पकड़ के उसे खुद से सटा लिया। अभी-अभी तो दोस्ती हुई है हमारी और तुम अभी से ही अविश्वास प्रस्ताव ला रही हो हमारे बीच ।
सार्थक दर्द हो रहा है please छोड़ दो । उसने अपनी कमर छुड़ाने की कोशिश की।
कहीं ये तूबा का भाई तो नहीं जो तुम्हें अक्सर कॉलेज ड्राप करने आता था ।

वो मेरे भी भाई की तरह ही है ।
Ok Then tell me who is your long time bf ?
सार्थक …! मंजिल इतना ही बोल पायी।
ये तो मेरा नाम है ।

मैंने मजाक किया था मेरी Life में कोई नहीं है। मैं अपना मजाक वापस लेती हूँ, मेरा इरादा बस तुम्हें थोड़ा परेशान करने का था इसके अलावा मैंने नही सोचा था कि तुम इतने सीरियस हो जाओगे।
तो मैं भी कहाँ सीरियस हूँ क्योंकि तुमसे बेहतर तो मैं तुम्हें जानता हूँ । इतने साल से follow कर रहा हूँ इतना तो जानता ही हूँ तुम्हारे बारे में । उसने मंजिल को ढील दे दी।

Lunch में कुछ बना दूँ? मंजिल ने इन सारी बातों को बदलने के लिए एक नई बात निकली।
तुम अपने लिए कुछ बना लो मैं शूटिंग पर जा रहा हूँ वहीं कुछ खा लूँगा । सार्थक मंजिल को छोड़ कर खड़ा हो गया और अपने कपड़े ठीक करने लगा ।
मुझे लगा कि नहीं जाओगे। मंजिल ने बैठे हुए ही अपना सर ऊपर उठाया।
क्या तुम चाहती हो कि मैं नहीं जाऊँ? सार्थक ने आवाज में पूरी सौम्यता लाकर पूछा।

अरे काम तो जरूरी होता है न वो मेरे लिए तो क्या किसी के लिए भी नहीं रुकना चाहिए। तुम जाओ आराम से मैं कुछ बना लूँगी अपने लिए। मंजिल हड़बड़ा कर उठ के खड़ी हो गयी।
ठीक है फिर मैं चलता हूँ अपना ध्यान रखना । सार्थक मुस्कुराते हुए घर के बाहर निकला लेकिन उसके अंदर कितनी आग लगी हुई थी ये तो वही जान रहा था।

कार में बैठते ही उसने शक्ति को एक मैसेज किया था – पहले खुद तो प्यार कर लो , तब जाकर दूसरों को कोई ढंग की सलाह दे पाओगे वरना तो अपनी घटिया एडवाइस से तुम लोगों का दिल ही दुखा सकते हो बस । शक्ति ने मैसेज पढ़ा और मुस्कुरा दिया। उसने अनुमान लगा लिया था मंजिल से बहस में जरूर वो हारा है और वो नहीं कर पाया जो करना चाहता था । अब वो क्या करे सार्थक को समझाने उसके घर जाएँ या इसी तरह थोड़ी-थोड़ी देर पर गालियां खाने को तैयार रहें ?

सार्थक को मंजिल के मामा के घर आने में पिछली बार लगभग तीन घंटे लगे थें लेकिन इस बार उसे इसके आधा ही समय लगा । उसने अपनी गाड़ी ठीक वहीं रोकी जहाँ पिछली बार रोकी थी। आसपास वही बच्चे खेल रहें हैं और आज फिर वो सब सार्थक के आसपास इकट्ठा हो गएँ। सार्थक उस घर में गया जहाँ पिछली बार मंजिल गयी थी।

कई बार दरवाजा पीटने पर भी अंदर से कोई आता नहीं मालूम हुआ। तो कुछ बच्चे सार्थक की मदद के लिए आएँ और बिल्कुल बंदरों की तरह दरवाजा बजाने लगे । थोड़ी देर बाद बूढ़ी दादी ने दरवाजा खोला । आज भी आँखों पर वही मोटा चश्मा लगा हुआ था । उन्होंने सार्थक को ऊपर से नीचे तक गौर से देखा ।
कौन तुम भइय्या ? दादी ने अपना चश्मा ठीक किया।

जी मैं….
अरे दादी फिर भूल गयी ये आएं नहीं थें उस दिन मंजू दीदी के साथ। बच्चों ने सार्थक की बात पूरी नहीं होने दी।
कौन मंजू….
महेश चाचू की अम्मा की नातिन दादी , जो उस दिन आपसे मिलने भी आयी थीं ।

अरे हाँ आओ बचवा अंदर आओ। दादी सार्थक को अंदर बुला ले गयीं और बच्चे वापस से खेलने भाग गएँ।
दादी उस दिन मंजिल ने आपको कोई चिट्ठी दी थी ।
मंजिल ?
वो….. मंजू.. मंजू ने आपको कोई चिट्ठी दी थी सफेद कागज की। तब आप दरवाजे पर खड़ी थीं उसने पैर भी छुए थें आपके। आपके हाथों पर उसने बार-बार

वो चिट्ठी रखी भी थी । याद आया दादी कुछ ।
हाँ याद तो है उसने दो चिट्ठी दी तो थी मुझे पर पता नहीं मैंने कहाँ रख दी। पहले तो याद था अब भूल गयी।

कोई बात नहीं दादी मैं ढूंढ लूँगा आप बस साथ साथ रहिये मेरे। सार्थक ने सोचा था कि छोटा सा घर है समान भी ज्यादा नहीं है लेकिन जब ढूंढते ढूंढ़ते उसकी कमर टेढ़ी होने लगी और दादी की बातों से उसका मूड भी खराब होने लगा। बाथरूम , रसोई , मंदिर ,आंगन , दलान, तुलसी, बक्सा, बर्तन , दाल-चावल, नमक-चीनी , कपड़े उसने घर का कोना-कोना छान मारा था घंटे भर में ही लेकिन चिट्ठियां उसे मिल ही नहीं रहीं थीं ।

सार्थक को धूल से एलेर्जी थी और इतनी देर तक धूल में ही रहने की वजह से उसकी स्किन जलने लगी थी, चेहरे और हाथ पैरों में लाल-लाल दाने उभर आएँ थें जिनमे खुजली हो रही थी। प्यास के मारे उसका गला भी सूखने लगा था । वो आंगन के चबूतरे पर आकर बैठ गया ।
दादी.. पानी….पिला दो। उसके गले से ठीक से आवाज भी नहीं निकल पा रही थी। वो बैठ कर कभी अपनी पीठ खुजाता तो कभी पैर । चेहरे से टपक रहे पसीने को वो बार- बार अपनी आस्तीन में पोछता । लगातार खांसते रहने की वजह से ऐसा लग रहा था की उसके फेफड़े ही सीने से बाहर निकल आएँगे ।

दादी ने उसे स्टील के लम्बे से गंदगी लगे हुए गिलास में लाकर दिया। उसने कभी भी नहीं सोचा था कि उसे कभी ऐसे बर्तन में खाना-पीना भी पड़ सकता है । लेकिन क्या कहें किस्मत भी शायद इसी को कहतें है।
सार्थक ने पानी पीने के बाद थोड़ा सा पानी बचा लिया और उसी से अपने चेहरे पर पानी के छिंटे मारे । ग्लास खाली हो जाने पर वो घड़े के पास पानी लेने जब दोबारा गया तो उसे वहाँ एक चूल्हा बना दिखा और उसी के पास एक दिवार अलमारी भी। जो मिट्टी की दिवार के अंदर थी।

दादी ये क्या है ।
बचवा सिरका रखने का ठौर है ।

सार्थक ने ग्लास वहीं रख दिया और झुककर उस खिड़की की कुंडी खोल दी। अंदर से बहुत तीखी सिरके की खुश्बू निकली जिससे सार्थक की खांसी बढ़ गयी । चेहरे के साथ-साथ नाक में भी बहुत जलन होने लगी। लेकिन सार्थक इन सब को जैसे भूल ही गया क्योंकि सिरके के डिब्बे पर उसे एक चिट्ठी रखी मिली। उसने आसपास देखा लेकिन दूसरी चिट्टी वहाँ नहीं थी।
दादी दूसरी चिट्ठी कहाँ है ?

वो तो दे दी थी न !
किसको दे दी थी।
याद नहीं आ रहा या तो महेश को दी होगी या तो बिपुल को ।

अच्छा दादी अब मैं चलता हूँ । उसने जल्दी से उनके पैर छुए और अपनी कार की तरफ भागा क्योंकि अब यहाँ की गर्मी उसके बर्दाश के बाहर थी।
जैसे ही वो कार में बैठा वैसे ही फिर उसके नंबर पर शक्ति की कॉल आयी। ये उसकी चौथी कॉल थी लेकिन सार्थक ने इस बार भी कॉल को इग्नोर किया और लेटर खोल कर पढ़ने लगा।

To be continued….
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               इश्क़ का अंजाम part- 23

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