इश्क़ का अंजाम Part 6
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अब आप पढ़ रहे है हमारी दूसरी कहानी इश्क़ का अंजाम….. अभी तक आपने इश्क़ का अंजाम part 5 में पढ़ा कि सार्थक मंजिल को kiss करने की कोशिश कर रहा था तभी मंजिल ग्लास टेबल पर रखी फल की टोकरी से चाकू उठा लेती है, और सार्थक को रूम से बाहर जाने को बोलती है लेकिन सार्थक मंजिल से चाकू छीनने की कोशिश करता है तभी मंजिल चाकू अपने पेट पर मरती है लेकिन सार्थक चाकू को पकड़ लेता है और उसके हाथ से खून बहने लगता है और खून देख कर मंजिल बेहोश हो जाती है अब आगे….
सार्थक हथेली के गहरे घाव पर पट्टी करते हुए बार-बार सिसक रहा था। डॉक्टर के सामने तो कल्पना कुछ नहीं बोली लेकिन जब डॉक्टर साहब चलें गएँ तो वो सार्थक को समझाने के लहजे से बोली –
,” साहेब , अभी तो बड़ी तेज दर्द हो रहा था घाव साफ करवाने में तब क्यों नहीं हुया जब वो घाव कर रहीं थीं आपके हाथ में? वो सार्थक के सामने ही नीचे फर्श पर बैठकर बात आगे बढाती हुई बोली,” मुझे वो ठीक नहीं लगती आज आपको मारने की कोशिश की है कल को मार ही ना दें. ….! मैं तो यही कहूँगी आपसे साहेब की आप इनको इनके घर छोड़ दीजिये। कितनी घमंडी है ये कोई कदर ही नही इन्हें आपकी ।
कल्पना उसे समझाती रही लेकिन सार्थक ने उसे नहीं टोका बल्कि पानी का ग्लास उठाकर और ध्यान से उसकी बात सुनने लगा।
आप भी जानते हो कि आपको कोई आकाल नही हैं लड़कियों का , पता नहीं किस बात का अहंकार है जो इतने बड़े आदमी को भी कुछ भी नहीं समझ रहीं हैं। मैं तो दावे के साथ कहती हूँ कि किस्मत तो उनकी ही खराब है जो आपको पहचान नहीं पा रहीं । फिर कितने दिन रख सकेंगे उन्हें आप उनकी मर्जी के बगैर? कल को खुदा-न-खास्ता उनकी फैमिली ने इन्हें ढूंढ लिया तो …या पुलिस ही आ गयी यहाँ तब? तब तो ये सारा महल , ये रुतबा , ये सम्मान सब कुछ मिट्टी में मिल जायेगा ।
आपने उसके कपड़े बदल दियें? उसकी पूरी बात को सुनने के बाद सार्थक ने उससे बस इतना ही सवाल किया।
हाँ बदल दिये है मगर मैं जो कह रही…
आपको कोई दिक्कत हो रही है उसे संभालने में?
आप ये कैसी बात कर रहें है ?मुझे क्यों दिक्कत होगी ! आपके घर और आपकी चीजों को ही संभालने के पैसे मिलते हैं मुझें फिर भला क्यों…? अगर आपको कुछ बुरा लगा हो तो माफी चाहती हूँ साहेब लेकिन मेरा ऐसा कोई मतलब नहीं था। कल्पना की आँखें लगभग डर और पछतावे से भर आयी थी वो सार्थक के सामने किसी अपराधी की तरफ खड़ी थी ।
सार्थक के चेहरे पर एक मुस्कान सी तैर गयी कल्पना का ऐसा चेहरा देख कर नहीं “आपकी चीज” सुनकर । चलो कोई तो है जो ये मानता है की मंजिल उसकी है । देखना एक दिन सभी लोग खुद वो भी मानेगी की वो मेरी है ।
नहीं ऐसी कोई बात नहीं है वो परेशान ज्यादा करती है मै खुद परेशान हो जाता हूँ तभी सोचा आप भी परेशान हो जाती होगी। लेकिन ऐसा नहीं है तो मुझे खुशी ही है। अच्छा एक और काम है करोगी ? सार्थक ने थोड़ा धीमी और नर्म आवाज़ में कहा ।
जी ..! कल्पना ने तुरंत दिलचस्पी दिखाई।
उस कमरे में जितनी भी नुकीली चीजें हैं चाकू-चम्मच सब हटा दो , ऐसी कोई भी नोंक वाली चीजें नहीं रहनी चाहिए वहाँ, जिससे वो खुद को कोई भी नुकसान पहुँचा सके। इतना कहकर सार्थक वहाँ से उठकर निकल गया।
वो सब कुछ बर्दाश कर सकता था लेकिन मंजिल से दूर होना नही । मंजिल को उसने जब से जाना था उसके साथ ही सारी जिंदगी बिताने का सपना देखने लगा था , एक ही छत के नीचे एक ही कमरे में दोनों का प्यार से रहने का सपना था उसका । लेकिन उस सपने की दिशा में पैर आगे बढ़ाने पर वो मंजिल को खो देगा ये उसने सोचा ही नही था । उसे अभी तक यकीन नहीं हो रहा था कि 2 इंच से भी कम दूरी पर मंजिल की मौत से सामना होते-होते बचा ।
जितना सार्थक इस वक्त उदास और डरा हुआ था उतना शायद एक के बाद एक लगातार तीन फिल्मों के फ्लॉप होने से भी नहीं होता । एक तो न जाने कितनी मेहनत-मशक्कत के बाद, इतने सालों के इंतजार के बाद मंजिल उसके हाथ लगी थी अब उसे कैसे किसी कीमत पर खो जाने देता ।
सार्थक ने मन ही मन ये सोच लिया था कि न तो वो मंजिल के इतने करीब जाएगा और न ही उसे किसी चीज के लिए फोर्स करेगा , और तो और वो उसकी सारी बातें भी मान लिया करेगा सिवा एक बात के ……. उसे उसके घर छोड़ देने के लिए।
सार्थक अपने कमरे में जा कर बार-बार अपने हाथ को देख रहा था , घाव गहरा था लेकिन उस घाव से उसे मीठे दर्द का अहसास भी हो रहा था बिल्कुल उतना ही मीठा जितना एक बार कॉलेज के कॉमन रूम में जब वो अकेली बैठी किताब पढ़ रही थी और सार्थक के आने से उठकर जाने लगी थी तब पीछे से सार्थक के हाथ पकड़ने पर, उसकी पकड़ से छूटने के लिए उसने उसके हाथों पर काटा था तब ।
4 दिनों तक रहा था वो गहरा निशान फिर भी उसने कोई दवाई नहीं लगायी थी हाथ पर क्योंकि वो चाहता था कि वो उसके हाथ पर हमेशा-हमेशा के लिए प्रिंट हो जाएँ , और वो इन्हें लव बाइट की तरह संभाल के रख सके।
वो वाकया याद आते ही सार्थक के चेहरे पर हलकी सी मुस्कुराहट आ गयी , और उसने अपने चोटिल हाथ को चूम लिया ।
दो दिन ऐसे ही बीत गएँ ना सार्थक मंजिल के रूम में गया और न ही मंजिल ही अपने कमरे से बाहर आयी और न किसी चीज को खाने से मना ही किया। शायद उस दिन के बाद से मंजिल भी सहम गयी थी और सार्थक भी उसे खो देने के डर से सहम गया था।
Wait for the next part of ‘इश्क़ का अंजाम ‘ story .
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मुझे आशा है कि आप सब को इश्क़ का अंजाम एक जुनूनी आशिक की लव स्टोरी पसंद आ रही होंगी। इश्क़ का महीना है तो अगर आपके पास भी कोई ऐसी लव स्टोरी हो तो आप अपने इस परिवार के साथ शेयर कर सकते है आपकी प्राइवेसी का पूरा सम्मान किया जायेगा। आप अपनी कहानी हमें मेल कर सकते है…
इश्क़ का अंजाम एक जुनूनी आशिक की लव स्टोरी
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