इश्क़ का अंजाम Part 14 love story in hindi

           इश्क़ का अंजाम Part 14 love story in hindi

हेलो दोस्तो कैसे है आप, मैं आशा करता हूं आप सब अच्छे होंगे। आपका हमारी अपनी वेबसाइट atozlove पर स्वागत है। दोस्तो आपने हमारी पिछली स्टोरी डायरी-a cute love story को बहुत ही प्यार दिया उसके लिए आप सब का बहुत बहुत धन्यवाद।
अब आप पढ़ रहे है हमारी दूसरी कहानी इश्क़ का अंजाम….. अभी तक आपने इश्क़ का अंजाम part-13  में पढ़ा कि जब सुबह सुबह सार्थक को मंजिल नहीं दिखती है तो वह उसके कमरे की तरफ जाता है, वहां मंजिल को दर्द में देखते ही वह परेशान हो जाता है। मंजिल का पेट बहुत दर्द कर रहा था क्युकी ये पीरियड्स का दर्द था ।

डॉक्टर के साथ-साथ सार्थक भी कमरे से बाहर निकल गया। कुछ इंजेक्शन की वजह से और कुछ कल्पना की मालिश की वजह से मंजिल को नींद आ गयी थी । उसके सोने के बाद कल्पना आहिस्ते से कमरे के बाहर निकल आयी ।

12 बजने वाले है जाएंगे नहीं आप ? कल्पना हॉल में बैठे सार्थक की ओर चली गयी थी।
अभी कैसी है वो ? सार्थक सोफे पर दोनों हाथों के सहारे सिर झुकाये बैठा था ।
अभी ठीक हैं सो गयी है ।

ऐसा सब लड़कियों के साथ तो नहीं होता है न ?
सबका अलग-अलग ही होता है साहेब लेकिन मैनें इतना ज्यादा दर्द वाला केस नहीं देखा। रज्जिनर बाबू जिनके यहाँ मैं पहले काम करने जाती थी उनकी लड़की को जरूर कुछ ज्यादा दिक्कत थी । लेकिन औरतों के डॉक्टर को जब से दिखाया था उसे फिर ज्यादा दिक्कत नहीं होती थी ।

इश्क़ का अंजाम

तो क्या किया जाये डॉक्टर के पास ले चलें मंजिल को । सार्थक ने सर उठा कर कल्पना की तरफ ऐसे देखा जैसे उसे ही सबकुछ आता है सार्थक को तो कुछ आता होई नहीं। सार्थक के मन में इस वक्त वही भाव था जो एक छोटे भाई में अपनी बड़ी बहन के लिए होता है । पिछले दस सालों में सार्थक ने अगर कोई बढ़िया चीज कमाई थी तो वो कल्पना ही थी ।

कल्पना न सिर्फ यहाँ इतने सालों से सार्थक के लिए काम करती रही है बल्कि बड़े होने का फर्ज़ भी अदा करती रही है। कई-कई महीने ऐसा हुआ है कि कल्पना बिना सैलरी लिए ही काम करती रही है ।जिस वक्त सार्थक इंडस्ट्री में अपना नाम बनाने के लिए स्ट्रगल कर रहा था, और आज जब सार्थक एक सुपरस्टार है कल्पना दोनों ही स्थिति में समान रही।

अभी आप अपने प्रोग्राम में जाइए फिर बाद की बाद में देखेंगे। ऐसे कैसे उसकी तबियत फिर बिगड़ गयी तो …?उसकी चिंता आप मत करो , अब खराब ही नहीं होगी और अगर हुई तो मैं हूँ न । अब आप जल्दी से नहा-धो के आ जाओ मैं तब तक कुछ बनाती हूँ खाने वाला । नहीं मैं नहीं जा रहा कहीं भी ।

अरे मैंने कहा न कि अब कुछ नहीं होगा आप जाइए । मैं छोटे साहेब को बुला रही हूँ वही लेकर जाएंगे आपको ऐसे तो जायेंगें नहीं आप । नहीं शक्ति को यहाँ मत बुलाओ मैं जा रहा हूँ लेकिन मेरे लिए खाने का कुछ मत बनाना मुझे जरा भी भूख नहीं है ।
ऐसे कैसे भूख नहीं है , खाना पड़ेगा आपको । नहीं है भाई क्यों जबरदस्ती कर रही हो। सार्थक चिढ गया।

पहली ही बार में ये है आगे अगर आपको उन्हें संभालना पड़ गया तब भी ऐसे ही करेंगे आप। हर बार मैं हूँ ये जरूरी तो नहीं अभी आपके कहने पर इनके मन लगने तक मैं यहाँ रात दिन रुक रही हूँ हमेशा थोड़े रहूंगी मेरा भी परिवार है आखिर । अब आप अपना परिवार नहीं संभालेंगे तो कोई कल्पना कितने दिन संभालेगी। आज तो मैंने सब कर दिया , मेरी गोद में सर रख के सो गयी वो कल को जब आपको भी उन्हें इसी तरह संभालना पड़ गया । मुझे लगता है तब तो उनसे ज्यादा आप बीमार हो जाएंगे।

कल्पना की थोड़ी सी ऊँची आवाज से सार्थक का गुस्सा और भड़क जाना चाहिए था लेकिन उसके चेहरे पर तो शर्म और मुस्कुराहट आ गयी। आखिर उसे आज पहली बार ये अहसास हुआ था कि मंजिल उसकी फैमिली हो चुकी है और फैमिली में जब ऐसी दिक्कतें आएं तो उन्हें मैनेज किया जाता है उन्हें लेकर बैठ नहीं जाया जाता ।

आप कुछ बढ़िया सा बना दीजिये मैं बस गया और आया। मुस्कुराते हुए सार्थक कल्पना के सामने से तो हट गया लेकिन कल्पना की बातें अपने सीने से ही लगाएं रहा।

प्रेस कॉन्फ्रेस में उसका ध्यान सारा समय मंजिल पर ही टिका था। फिल्म से जुड़े अधिकतर सवालों का जवाब उसके साथी कलाकारों ने दिया था । अपनी खराब तबियत का फायदा उठाते हुए वो जल्दी से कॉन्फ्रेंस से निकल गया।

शाम को घर पहुँचते ही बिना कपड़े चेंज किये वो मंजिल के कमरे के पास पहुंच गया था। वो दरवाजे के होल से अंदर की बातें जानने की कोशिश करने लगा।

 

मंजिल कल्पना की गोद में सर रख के सुबक रही थी लेकिन अबकी बार उसका रोना सुबह के रोने से कुछ अलग था ।
कल्पना के बार बार पूछने और समझाने के बाद मंजिल ने उसे बताना शुरु किया कि वो क्यों रो रही है।
मेरे साथ कभी ऐसा नहीं हुआ , चाहे जितना दर्द हो ऐसे प्यार से कभी किसी ने सर पर हाथ नहीं फेरा । किसी ने भी नहीं !

ऊहू….! जब कभी पापा घर पर होते थे तो जरूर मेरे लिए बाजार से दर्द की दवा और जूस वगैरह ले आतें थें। जब वो आसपास नहीं होते थे तो कोई आता ही नहीं था । उसपर से तब मम्मी को जब ज्यादा काम करना पड़ता था तो बहुत उल्टा-सीधा कहने लगती थीं मुझे और मेरी…. मरी…..हुई मम्मी…… मंजिल की सुबकते- सुबकते हिचकियाँ बंध गयी ।

कल्पना ने दोनों हाथों से उसकी पीठ को सहलाया । जब उसे आराम हुआ तो उसने फिर से बताना शुरु किया। वैसे तो तूबा के अलावा उसने कभी किसी को कुछ भी बताने में न तो दिलचस्पी दिखाई और न ही उसे ऐसी जरूरत ही महसूस हुई । लेकिन आज कल्पना से ये सब बातें कहते हुए उसे अच्छा लग रहा था ।

इसीलिए वो मेरी मम्मी को कुछ ना कहें तभी मैं थोड़ा आराम मिलते ही शाम तक सारे काम करने लगती थी कोई मुझसे झूठा भी ये नहीं कहता था कि , ‘आज तुम्हारा फर्स्ट डे है आज आराम कर लो तुम ।’ रात में जब सारे काम करके लेटती थी तो हाथ पैरों में बहुत दर्द होता था नींद नहीं आती थी । कभी-कभी पापा आकर सुला जाते थें और कभी-कभी मम्मी को याद करते-करते ही सारी रात निकल जाती थी ।

दरवाजे के बाहर खड़ा सार्थक ये सब सुन गुस्से से लाल पिला हुआ जा रहा था । उसे सबसे ज्यादा गुस्सा मंजिल के पापा के ऊपर आ रही थी आखिर कोई बाप इतना कैसे मजबूर हो सकता है कि अपनी बेटी के साथ हो रहे गलत के खिलाफ आवाज़ न उठा सके !
और आपकी छोटी बहन भी तो है ! उसे जब ऐसी दिक्कत…

उसे कभी ऐसी दिक्कत हुई ही नहीं । हाँ एक बार उसे दर्द ज्यादा होने लगा था तो मम्मी ने पूरा घर सर पर उठा लिए था , तुरंत डॉक्टर को बुलाया गया था । पूरे 5 दिन मम्मी ने उसे बिस्तर से उठने नहीं दिया। उसके लिए कुछ न कुछ बनाते हुए और सारे वक्त उसके हाथ पांव दबाते हुए बहुत थक जाती थी मैं जबकी उस वक्त मेरे भी पीरियड्स चल रहें थें ।

मंजिल की बातें सुनकर कल्पना की आँखे आंसूओं की वजह से लाल हो गयी थी और सार्थक की गुस्से से । अब ज्यादा देर वहाँ खड़ा रहना उसे अपनी मर्दानगी के खिलाफ लगा । वो गुस्से से भरा हुआ घर से निकल कर कहीं के लिए चला गया।
जब वहाँ आपको इतनी दिक्कत थी तब फिर आप बार-बार वहाँ जाने के लिए क्यों कहती है ? क्या हम लोग अच्छे नहीं हैं, सार्थक साहेब आपको ठीक नहीं लगते ?

मैं वहाँ वापस जाने के लिए नहीं कह रही मैं बस यहाँ से जाना चाहती हूँ । मंजिल ने कल्पना की गोद से सर हटा लिया।
घर भी नहीं जाओगी , यहाँ भी नहीं जाओगी तब फिर आप कहाँ जाना चाहती हैं ।अपने मामा के घर ।

उनका खुद का परिवार भी तो होगा उन्हें भी तो देखना-भालना पड़ता होगा , तब वो आपका खयाल कैसे रख पाएंगे? कल्पना मंजिल के सर की तरफ से हट कर उसके पैरों के पास आकर बैठ गयी पैरों की मालिश करने लगी।
मामा नहीं लेकिन कोई है जो मेरा बहुत अच्छे से ख्याल रखेगा और जिंदगी भर संभालेगा।

कौन?? कल्पना हैरान हुई।
मंजिल ने एक करवट ली और चादर अपने मुँह पर खींच लिया शायद वो दोबारा सोने जा रही थी।
To be Continued. …
Wait for next part of ‘ इश्क़ का अंजाम ‘ story.

 

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इश्क़ का अंजाम all parts 

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