इश्क़ का अंजाम Part 17 love story in hindi

इश्क़ का अंजाम Part 17 love story in hindi

हेलो दोस्तो कैसे है आप, मैं आशा करता हूं आप सब अच्छे होंगे। आपका हमारी अपनी वेबसाइट atozlove पर स्वागत है। दोस्तो आपने हमारी पिछली स्टोरी डायरी-a cute love story को बहुत ही प्यार दिया उसके लिए आप सब का बहुत बहुत धन्यवाद।
अब आप पढ़ रहे है हमारी दूसरी कहानी इश्क़ का अंजाम….. अभी तक आपने इश्क़ का अंजाम part-16  में  आपने पढ़ा कि जब मंजिल को यह पता चला की उसके पिता ने उसे सार्थक के हाथो 20 करोड़ में बेच दिया था तो वह जोर जोर से रोने लगी, और सार्थक के गाल पर एक करारा तपड़ जड़ दिया अब आगे …….

सार्थक मंजिल को कंधे पर उठाए सीढ़ियां चढ़ रहा था । उसका पूरा चेहरा गुस्से से तमतमाया हुआ था और आँखें बिल्कुल लाल थी। कल्पना ने कभी भी सार्थक को इतने गुस्से में नहीं देखा था। जैसे वो मंजिल को लेकर जा रहा था ऐसा लग रहा था कि शायद मंजिल के साथ मारपीट ही न कर दे। इसी डर से कल्पना सार्थक के पीछे-पीछे चल दी।

सार्थक ने कमरे में घुसते ही मंजिल को बेड पर पटक दिया ।
हाँ बहुत शौक है न तुम्हें गर्मी दिखाने का , चलो अब दिखाओ। उसने मंजिल के चेहरे को अपने एक हाथ से दबाते हुए कहा ।
मंजिल उसके हाथ से अपने चेहरे को छुड़ा कर बिस्तर के दूसरे कोने में भाग गयी और खुद को चादर से लपेट लिया।

तुम्हारी गर्मी , तुम्हारा गुस्सा और तुम्हारी जवानी….. मुझे पता है कैसे काबू में करना है । सार्थक ने जाकर एसी को फुल कर दिया , कमरे की खिड़कियाँ खोल दी और फिर मंजिल के ऊपर से चादर खींच ली ।

सार्थ…..क ….! मंजिल की सिसकी में दर्द, डर , दया और गुस्सा सब कुछ था ।
खबरदार जो तुमने अबसे मेरा दोबारा नाम भी लिया तो ……। सार्थक ने मंजिल की गर्दन पकड़ के पीछे की तरफ मोड़ दी ।
अब से बाकी लोगों की तरह तुम भी मुझे सर कहके बुलाओगी।

जाने दीजिये साहेब गलती हो गयी उनसे । कल्पना दरवाजे पर ही खड़ी थी और मंजिल की सिसकी अब उसे बर्दाश नही हो रही थी ।
गलती नहीं बहुत बड़ी गलती हो गयी आज इससे ….. सार्थक मंजिल की गर्दन पर अपनी उँगलियों की पकड़ और कस दी।

कल्पना ….! कल से आप कुछ भी काम नहीं करेंगी आपका बस एक ही काम होगा और वो ये है कि आप इसपर बराबर से नजर रखेंगी कि ये सारे काम ठीक से कर रही है कि नहीं । कल से मेरा खाना मेरे कपड़े , घर की साफ सफाई सब कुछ यही करेंगी।
साहेब…….

बस ….! आप भी कुछ बोले न इस वक्त तो बढ़िया रहेगा। ये लीजिये ये चादर भी ले जाइये । सार्थक ने मंजिल की गर्दन को छोड़ दिया और चादर कल्पना की तरफ फेंक दी ।

अब आप जा सकतीं है। और इतना कह कर सार्थक ने कमरे का दरवाजा बंद कर लिया ।
तुम्हारी गर्मी तो काबू में आ ही गयी होगी बस अब तुम्हारी जवानी का कुछ इंतजाम करना पड़ेगा न । सार्थक अपने शर्ट के बटन खोलता हुआ बेड की तरफ बढ़ा ।

Remove your clothes now ! सार्थक बिस्तर के पास खड़ा मंजिल को देख रहा था। मंजिल ने बिस्तर से उतर कर भागने की कोशिश की थी लेकिन सार्थक ने उसे दोबारा बिस्तर पर गिरा दिया था ।

तुम्हें भी मालूम है भागने का कोई फायदा नही , क्योंकि आओगी तो मेरे पास ही। हो सकता है ऐसे थोड़ी दया ही दिखा दूँ जो तुम्हें पकड़ने में मुझे मेहनत करनी पड़ी तो फिर सोच लेना तुम्हें अगली सुबह खुद को पहचानने में भी बहुत मेहनत करनी पड़ेगी। समझ रही हो न तो चलो फटाफट से अपने कपड़े उतारो ।

मंजिल सिकुड़ी जा रही थी डर से कि ठंड से पता नहीं लेकिन सार्थक के बदन से अभी भी पसीना सूखा नहीं था ।
मंजिल …. सोच लो अगर मैंने तुम्हारे कपड़े उतारे तो तुम्हारे बदन पर पड़ने वाले निशान उससे भी ज्यादा नीले होंगे जितना की मेरे गाल पर तुम्हारी उँगलियों का निशान …….।

सार्थक ने बिस्तर पर बैठ मंजिल को खींच कर खुद से सटा लिया था। मंजिल की उठती-गिरती साँसे सार्थक के कठोर सीने से टकराकर दर्द मे बदल जा रहीं थीं। मंजिल खुद को छुड़ाना चाहती थी लेकिन उसके दोनों हाथों को सार्थक ने पीछे मोड़ के रखा था । वो एक भूखे भेड़िया जैसा नजर आ रहा था और मंजिल उसके सामने नन्हा सा मेमना दिख रही थी ।

सार्थ……
सर…… ओनली सर ….!!
सर…… ! मंजिल का पूरा चेहरा आंसुओ से भरा था लेकिन पता नहीं क्यों सार्थक को आज जरा भी दया नहीं आ रही थी ।
छोड़ दूँ तुम्हें, यही कहने वाली हो …! सार्थक ने मंजिल के मुँह के ऊपर अपना मुँह ले जाकर उसका मजाक उड़ाने की नियत से देखा।

नहीं बस इतना….. इतना कह दो…..! मंजिल का गला बंध गया।
माफी नहीं मिलेगी । सार्थक उसके चेहरे को बेतहाशा चूमने लगा।
सर…….
हूँ. …… सार्थक ने मंजिल को वापस से बिस्तर पर गिरा दिया और उसकी गर्दन पर बोसे लेने लगा।

बस एक बार कह दीजिये….बस एक बार की मेरे पापा ने मुझे बेचा……. बेचा नहीं. ..है ,नहीं बेचा……..! मंजिल की सिसकियां चीख में बदल गयीं और वो फफक के रोने लगी। सार्थक जहाँ का तहाँ थम के रह गया उसकी पकड़ मंजिल के बदन पर ढीली पड़ गयी।

बस एक बार…… फिर आप जो बोलेंगे मैं वो सब करुँगी, आपका खाना ,कपड़े घर सब सम्भालूंगी आपके पैर दबाउंगी , नौकर बन कर रहूँगी आपकी बस एक बार बोल दीजिये जो आपने …. आपने बताया वो झूठ है प्लीज। मंजिल के हाथ आपस में जुड़ गएँ थें और उसकी आँखें किसी चमत्कार की उम्मीद के लिए सार्थक की ओर खुली हुई थी ।

सार्थक पहले से ही जानता था कि मंजिल को ये पता चलने पर उसपर क्या बीतेगी इसीलिए उसने एक भी बार ये नही बताया था लेकिन आज गुस्से में. …… ! भला दुनिया कि किस बेटी को अच्छा लगेगा ये सुनकर की उसके बाप ने ही उसे बेच दिया । सार्थक मंजिल के ऊपर से हट कर बगल में लेट गया।

स….र….! मंजिल उठाते हुए बोली।
मुझे तुम चाहिए थी और उन दोनों को बहुत सारा पैसा ।

नहीं.. नहीं झूठ है ये सरासर झूठ….. तुम झूठ बोल रहें हो मेरे पापा मुझे नहीं बेच सकते नहीं बेच सकते नहीं …..! मंजिल सार्थक के सीने पर अपने दोनों हाथ पीटने लगी फिर उसके सीने पर ही गिर पड़ी और बिलख-बिलख के रोने लगी।

सार्थक ने उसे एक बार भी चुप कराने की कोशिश नहीं की चुपचाप उसे रोने दिया। चाहे उसके अंदर भरे गुस्से ने चाहे उसके एगो ने उसे एक बार भी मंजिल के सर पर हाथ फेरने की इजाजत नहीं दी।

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थोड़ी देर बाद उसे मंजिल के बदन में कंपकपी महसूस हुई उसने मंजिल के बदन को हाथ लगाकर देखा तो वो सच में कांप रही थी।
सार्थक ने मंजिल को अपने सीने से हटा कर उसका सर तकिये पर रख दिया , खुद उठकर एसी का टेम्प्रेचर कम कर के कमरे के बाहर चला गया । थोड़ी देर बाद वापस आया तो उसके हाथ में चादर थी।
चादर ओढ़ाने के बाद उसका मन हो रहा था कि वो थोड़ी देर बैठकर मंजिल को देखता रहे लेकिन उसने ऐसा नहीं किया क्योंकि

अगर वो मंजिल को थोड़ी और ज्यादा देर देखता तो उसका दिल फिर से नर्म पड़ जाता और मंजिल फिर उसका फायदा उठा सकती थी । इसीलिए सार्थक तुरंत कमरे के बाहर निकल गया ।
To be continued. ……..

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                                                                                                  Wait for next part of ‘ इश्क़ का अंजाम ‘ story 

मुझे आशा है कि आप सब को इश्क़ का अंजाम एक जुनूनी आशिक की लव स्टोरी पसंद आ रही होंगी।  अगर आपके पास भी कोई ऐसी लव स्टोरी हो तो आप अपने इस परिवार के साथ शेयर कर सकते है आपकी प्राइवेसी का पूरा सम्मान किया जायेगा। आप अपनी कहानी हमें मेल कर सकते है… 

इश्क़ का अंजाम एक जुनूनी आशिक की लव स्टोरी 

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