The Nightingale and The Rose by Oscar Wilde in Hindi
गहरी पीड़ा के साथ आह भरते हुए वह नौजवान अपने आप से बोला, ‘वह कहती है लाल गुलाब के बिना मेरे साथ नहीं नाचेगी लेकिन मेरे बाग़ में तो एक भी लाल गुलाब नहीं है।’ युवक की आंखों से आंसू बह रहे थे। ‘ओह, ज़िंदगी में कभी-कभी ख़ुशियां कितनी छोटी-छोटी चीज़ों पर टिकी होती हैं। मेरा सारा ज्ञान और दर्शनशास्त्र का अध्ययन इस एक लाल गुलाब के मुक़ाबले बेकार है।’
वहीं पेड़ पर बने घोंसले में बैठी बुलबुल इस नौजवान आशिक़ की दुःखभरी प्रेमकथा चुपचाप ध्यान लगाकर सुन रही थी। बुलबुल ने कहा, ‘मैं रातों में जिस अनजान प्रेमी के लिए गाती थी, चांद-तारों को जिसकी कहानी सुनाती थी, वह आज मिल ही गया। हाय…. लाल गुलाब की चाहत में उसका चेहरा पीला पड़ गया है।’
नौजवान बुदबुदाया, ‘कल राजकुंवर ने नृत्य की शाम सजाई है। मेरी महबूबा भी वहां होगी। अगर मेरे पास लाल गुलाब हो तो वह मेरे साथ रातभर नाचेगी लेकिन लाल गुलाब के बिना…. आह!’
बुलबुल चहकी, ‘यह सच्चा आशिक़ दुःखी है, ऐसे में मैं कैसे गा सकूंगी ?’
युवक की आंखों में कल की तस्वीरें छाई थीं कि वहां उसकी महबूबा नाच रही होगी और सब उसे निहारते रहेंगे लेकिन वह एक सुर्ख गुलाब के बिना मेरे साथ नहीं नाचेगी। उस नौजवान के दुःख में दुःखी बुलबुल प्यार के रहस्य के बारे में सोचती हुई अचानक उड़ चली। दरख्तों के पार हवा से बातें करती हुई बुलबुल को घास के कालीन में दूर से एक गुलाब का पौधा दिखा। बुलबुल ने उसके पास जाकर एक चक्कर काटकर याचना की, ‘मुझे एक लाल गुलाब चाहिए।’ पौधे ने कहा, ‘मेरे पास तो सिर्फ़ सफ़ेद गुलाब हैं। तुम ऐसा करो, धूप-घड़ी के पास मेरे भाई के पास जाओ, शायद वहां तुम्हारी चाहत पूरी हो जाए।’
उड़ती-उड़ती बुलबुल ने इस गुलाब के पास पहुंचकर अपनी प्रार्थना दोहराई। गुलाब के इस पौधे ने कहा, ‘मेरे पास तो जलपरियों के बालों की तरह पीले फूल होते हैं। तुम्हें छात्रों की खिड़की के नीचे रहने वाले मेरे भाई के पास जाना पड़ेगा। शायद वह तुम्हारी मदद करे।’
बुलबुल ने उड़ान भरी और खिड़की के नीचे वाले Rose के पास आकर अपनी चाहत बताई। पौधा बोला, ‘मेरे पास मूंगे से भी कई गुना लाल सुर्ख गुलाब हैं लेकिन ठंड के मारे मेरी नसें जम गई हैं और पाले ने तो सर्दियों की शुरुआत में ही मेरी कलियां नष्ट कर दी थीं। तूफ़ान से मेरी टहनियां टूट गई हैं। अब पूरे साल मुझ पर कोई फूल नहीं खिलेगा।’
दुःखी बुलबुल चीख़ी, ‘मुझे सिर्फ़ एक लाल गुलाब चाहिए। क्या किसी भी तरह से एक लाल गुलाब मिल सकता है?’ पौधे ने जवाब में कहा, ‘एक रास्ता है, लेकिन बहुत ख़तरनाक । मैं तुम्हें नहीं बता सकता।’
बुलबुल बोली, ‘बताओ, मैं नहीं डरूंगी।’ पौधे ने कहा, ‘सुनो अगर तुम्हें लाल गुलाब चाहिए तो चांदनी रात में तुम्हें अपने संगीत और दिल के खून से मुझे सींचना होगा। रातभर तुम मेरे लिए गाओगी और तुम्हारे कलेजे में मेरा कांटा चुभा रहेगा। तुम्हारा लहू मेरी नसों में बहेगा और मेरा हो जाएगा।’ बुलबुल ने कहा, ‘एक लाल गुलाब के लिए ज़िंदगी का दांव बहुत बड़ा है।’
दुनिया की तमाम खूबसूरत चीज़ों की तरह ज़िंदगी सभी को प्यारी होती है लेकिन बावजूद इसके प्यार ज़िंदगी से बेहतर है। बुलबुल उड़कर वापस अपने घोंसले वाले दरख्त पर पहुंची।
अभी भी नौजवान आशिक़ घास पर लेटा हुआ था। बुलबुल बोली, ‘अब खुश हो जाओ, तुम्हें तुम्हारा लाल गुलाब मिल जाएगा। मैं चांदनी रात में अपने गीत से उसे पैदा करूंगी और अपने कलेजे के लहू से सींचूंगी। मैं यही कहने आई हूं कि तुम्हीं सच्चे प्रेमी हो। प्रेम ही ईश्वर है।’
युवक ने देखा और सुना लेकिन वह कुछ भी नहीं समझ सका। वह तो सिर्फ़ किताबों में पढ़ी बातें ही जानता था, बुलबुल की बात कैसे समझता। लेकिन शाहबलूत का वह दरख़्त समझ गया था, जिस पर बुलबुल का घोंसला था। उसने बुलबुल से कहा, ‘मेरी ख़ातिर आख़िरी बार गाओ। तुम्हारे जाने के बाद मुझे बहुत अकेलापन लगेगा और बुलबुल शाहबलूत के लिए गाने लगी। जैसे ही उसने गाना बंद किया, नौजवान उठा और चल दिया। चलते-चलते वह अपनी महबूबा के बारे में सोच रहा था। इसी सोच में वह अपने कमरे में गया और बिस्तर पर लेट गया। सोचते-सोचते वह सो गया।
आकाश में चांद दिखते ही बुलबुल उड़कर गुलाब के पौधे के पास पहुंच गई। वक़्त गंवाए बिना उसने अपनी छाती में कांटा चुभो लिया और गाने लगी। सबसे पहले उसने युवक-युवती के दिलों में पनपने वाले प्यार का गीत गाया। पौधे के माथे पर एक खूबसूरत गुलाब खिल आया। बुलबुल जैसे-जैसे गीत गाती रही गुलाब की पंखुड़ियां खुलती चली गई।
अभी गुलाब के फूल का रंग कोहरे की मानिंद था, रंगहीन सफ़ेद जैसा। उधर पौधा बुलबुल से बार-बार कह रहा था, ‘कांटे को अपने दिल में कसकर दबाओ प्यारी बुलबुल, कहीं ऐसा न हो गुलाब पूरा होने से पहले ही दिन निकल आए। बुलबुल ने पूरी ताक़त से कांटे को कस लिया और गाना तेज़ कर दिया। अब वह दो आत्माओं में पनपने वाले प्यार का गीत गा रही थी।
फूल पर अब गुलाबी रंग छाने लगा था। हालांकि उसका अंदरूनी हिस्सा अभी भी सफ़ेद था। अब तो सिर्फ़ बुलबुल के दिल का लहू ही उसे सुर्ख रंग दे सकता था। इसलिए पौधे ने फिर बुलबुल से ज़ोर लगाने के लिए कहा। बुलबुल ने पूरा ज़ोर लगाया और अन्ततः कांटा उसके दिल तक पहुंच गया। बुलबुल को भयानक दर्द हुआ और वह ज़ोरों से गाने लगी। अब वह उस प्यार का गीत गा रही थी जो मृत्यु पर जाकर ख़त्म होता है।
बुलबुल की कोशिशें रंग लाई और आख़िरकार गुलाब पूरी तरह पूरब के आसमान जैसा लाल हो गया। बुलबुल की आवाज़ धीमी पड़ती जा रही थी। उसके पंख तेज़ी से फड़फड़ा रहे थे-आंखें बंद होती जा रही थीं। बुलबुल ने अब आख़िरी तान छेड़ी। इसे सुनकर चांद बादलों में छिपना भूलकर एक जगह स्थिर हो गया। लाल गुलाब सुनकर ख़ुशी के मारे कांप उठा। उसने अपनी तमाम पंखुड़ियां खोल दीं। पूरे इलाक़े में एक चीख़ गूंज उठी, जिसे सुनकर सपने देखते गड़रिये जाग उठे।
पौधा मारे ख़ुशी के चिल्लाया, ‘देखो, गुलाब पूरा हो गया, देखो।’ बुलबुल कुछ नहीं बोली। कांटा उसके कलेजे में गहरे घुसा हुआ था और वह घास पर मौत की नींद सो रही थी। दोपहर में नौजवान ने खिड़की खोलकर देखा तो चिल्लाया, ‘यह रहा मेरा लाल गुलाब, क़िस्मत का शानदार करिश्मा। मैंने ज़िंदगी में ऐसा लाल गुलाब नहीं देखा।’ उसने झुककर फूल तोड़ लिया।
हाथ में Rose लिए माशूक़ा के घर की तरफ़ दौड़ चला। वहां दरवाज़े पर बैठी महबूबा धागे की रील लपेट रही थी। वह चिल्लाया, ‘तुमने कहा था, अगर मैं लाल गुलाब ले आऊं तो तुम मेरे साथ नाचोगी। यह दुनिया का सबसे खूबसूरत लाल गुलाब है। आज की रात तुम इसे अपनी छाती से लगाओगी। हमारे नाच के वक़्त यह गुलाब का फूल तुम्हें एहसास कराएगा कि मैं तुमसे कितना प्रेम करता हूं।’
लेकिन लड़की ने चंचला स्त्री की तरह मुंह बनाते हुए कहा, ‘मुझे लगता है यह मेरे कपड़ों के रंग से मेल नहीं खाएगा। यूं भी बड़े सरदार के भतीजे ने मेरे लिए सोने के गहने भेजे हैं। सब जानते हैं, गहने फूलों से बहुत क़ीमती होते हैं।’ नौजवान क्रोध में चीख़ा, ‘तुम बेवफ़ा हो।’ और उसने गुलाब का वह फूल सड़क पर फेंक दिया। उसके आगे बढ़ते ही एक गाड़ी फूल को कुचलकर चली गई।
लड़की ने कहा, ‘बेवफ़ा ! हुंह…. वैसे भी तुम हो क्या? एक स्टुडेंट ? मैं क्यों वफ़ा करूं? क्या कभी तुम्हारे जूतों में सरदार के भतीजे की तरह चांदी के बक्कल होंगे?’ वह कुर्सी उठाकर घर में चली गई।
नौजवान अपने कमरे में लौटते हुए बुदबुदाया, ‘यह इश्क़ भी कितनी वाहियात चीज़ है? न तो इसका कोई कारण है और न ही इससे कुछ सिद्ध किया जा सकता है। यह कभी न ख़त्म होने वाले ख़्वाब जैसा है। इश्क़ हमें इस यक़ीन के लिए मजबूर करता है कि यह सच नहीं है, अवास्तविक है, व्यावहारिक नहीं है और मेरी उम्र में व्यावहारिकता ही सब कुछ है। अब मैं वापस दर्शन की ओर लौटूंगा। तत्त्व मीमांसा पढूंगा।’
उसने कमरे में आते ही एक किताब उठाई और पढ़ने बैठ गया।
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