“Last wish” sad heartbreaking love story part 2
“Last wish” sad heartbreaking love storyकहानी के पहले भाग में आपने पढ़ा कि असम की मशहूर पियानोवादक नताशा जोसेफ अपनी दुख भरी धुनों के लिए पूरी दुनिया में जानी जातीं हैं। लोग अपने दर्द को आंसुओं के जरिए निकालने के लिए उनके शो को बुक करते है। नताशा भी अपनी जिंदगी के निजी दर्दनाक अनुभवों को इकट्ठा कर लोगों को एक झटके से रुला देती है। फिर उनकी ज़िंदगी में सलीम की एंट्री होती है। जिसकी एक छोटी सी ख्वाहिश है कि वो उनकी उंगलियों को छू सकें । नताशा इस बात के लिए उसे बहुत फटकारती हैं , जिसके बाद दोनों में बातचीत बंद हो जाती है। फिर एक दिन सलीम अचानक गायब हो जाता है। अब आगे –
8 दिनों बाद दरवाजा खोलते ही मिलांग फर्श पर बैठकर रोने लगी। सलीम की आवाज सुनकर रसोइया भी बाहर आई, काका भी अपना सारा काम छोड़कर वहाँ आ गए। तीनों नौकरों को इस तरह रोता देखकर सलीम बोल पड़ा, “अरे भाई, आप लोग ऐसे क्यों रो रहे हैं जैसे मैं मर गया हूँ।”
“जरा जाइए तो मैडम बताएँगी फिर आपको,” दरवाजे के बाहर से बुधवा बोला।
सलीम दबे पाँव नताशा के कमरे में गया ताकि वो डिस्टर्ब न हो, लेकिन नताशा तो पहले से ही दरवाजे को ताक रही थी। सलीम को देखते ही झट से पैरों से चादर हटा दी, ऐसा लगा जैसे भागकर उसके गले मिलने चाहती थीं, लेकिन अपनी बेबसी का अहसास होते ही वापस पैर ढक लिए। सलीम नौकरों से सारी कहानी सुनकर आया था, इसलिए उसे नताशा से जरा भी डर महसूस नहीं हो रहा था।
“कहाँ गए थे?”
“बड़े भाईजान के पास। मेरी भतीजी को मलेरिया हो गया था, जैसे ही मुझे पता चला मैं तुरंत निकल गया।”
“अभी कैसी तबीयत है?”
“अल्लाह की मेहरबानी से ठीक ही है।”
“आगे से ध्यान रखना, अगर बिना कहे तुम गए तो नौकरी पर दूसरे ड्राइवर को रख लिया जाएगा।”
“आपको अबकी बार ही रख लेना चाहिए था, क्योंकि आपके इस छोटे भाई को शायद फिर से घर जाना पड़े।”
“छोटे भाई” को तीर की तरह इस्तेमाल किया गया था, जिसके घाव को छुपाते हुए नताशा बोली, “अब घर क्यों जाना होगा?”
“हम 6 भाई हैं, जिसमें सबसे छोटा मैं हूँ। बड़े भाईजान ने अब्बू के जाने के बाद मुझे अपना बेटा मानकर रखा है, क्योंकि उनके सिर्फ 3 बेटियाँ ही हैं। इस लिहाज से भाई और बेटे दोनों का फर्ज निभाना होगा मुझे। अगर कभी भाईजान ने वापस आने का हुक्म भेजा, तो मैं फिर से बिन बताए चला जाऊँगा।”
“बता रहे हो या धमकी दे रहे हो?”
“एक मामूली से ड्राइवर होने के अलावा मेरा आपसे कोई रिश्ता नहीं है, तो आपको धमकी देने का सवाल ही नहीं उठता। भले ही मेरी फिक्र में आपने सही से खाना नहीं खाया, परेशान रहीं, अखबार में इश्तिहार दिया, और फिर बीमार भी हो गईं। इन सबके बावजूद आपके लिए रहूँगा तो ड्राइवर ही।”
“हाँ, हाँ! ड्राइवर ही रहोगे। मन हो तब तक रहना, मन न हो तो फिर से बिन बताए चले जाना। लेकिन अपने पैसे लेकर जाना। मुझे किसी का अहसान नहीं चाहिए।” नताशा ने चादर खींचकर मुँह ढक लिया।
सलीम थोड़ी देर वहीं खड़ा रहा, फिर कमरे से निकलकर रसोई की तरफ चला गया।
सलीम वापस अपने काम पर लग चुका था। वो जितनी बार भी नताशा को व्हीलचेयर से उठाकर कहीं और बिठाता, उतनी बार उसने नताशा के दिल की बढ़ी हुई धड़कन महसूस की, लेकिन उनके चेहरे की तरफ न देखकर हर बार उन्हें शर्मिंदा होने से बचाया। अब तो नताशा की मैनेजर से लेकर शो बुक करने वाले क्लाइंट भी सलीम की पर्सनैलिटी और नताशा की देखभाल को देखकर उसे नताशा का बॉयफ्रेंड समझने लगे थे। मगर नताशा सबको क्लियर करने की नाकाम कोशिश करती कि सलीम सिर्फ उनका हेल्पर है और कुछ नहीं।
इन सब से तंग होकर एक दिन नताशा ने सलीम से साफ पूछ लिया, “तो तुम कब जा रहे हो?”
“जिस दिन नौकरी से निकाल देंगी, उसी दिन।”
“मैं सच सुनना चाह रही हूँ, सलीम।”
“सच बोलूँ तो जिस दिन भी मैंने आपकी उंगलियों को अपनी उंगलियों से छूकर देख लिया, उस दिन चला जाऊँगा।”
“तुम मेरी उंगलियों के पीछे क्यों पड़े हो?”
“मुझे लगता है कि आपकी उंगलियों को थोड़ा मीठा, दयालु और खुशहाल होना चाहिए। मैं आपकी उंगलियों से आपका सारा दर्द सुकून में बदलना चाहता हूँ।”
“तुम्हें लगता है कि मेरी सभी दुखी धुनें मेरी उंगलियों से निकलती हैं?”
“नहीं! वो आपकी सोच और व्यवहार के कारण हैं। बेचारी खूबसूरत उंगलियों को दोष मत दीजिए। आप दुनिया की सबसे दुखी धुनों में से कुछ धुनें जरूर बना सकती हैं, लेकिन आपकी उंगलियाँ जानती हैं कि जिस दिन आपने पूरे दिल से कोई प्रेम गीत की धुन बजाई, उसी दिन आप अमर हो जाएँगी।”
“मेरे अंदर जो है, वो मेरी उंगलियों से बयान होता है। लोग भी इसी दर्द के पैसे देते हैं मुझे।”
“वहीं तो! जो आपके अंदर है… एक बार दर्द की जगह सुकून को महसूस करके बजाइए। यही लोग जो सैड म्यूजिक सुनने के लिए प्राइवेट शो करवाते हैं आपके, वही लोग डबल पैसे में आपका पब्लिक शो करवाएँगे।”
“मेरे पैसे या म्यूजिक की टेंशन करना तुम्हारा काम नहीं है। तुम बस खुद को उन लोगों से बचाओ जो तुम्हें लेकर मुझसे गंदे मजाक करते हैं। तुम्हें लेकर सब शक करते हैं मुझ पर। मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन इन बातों का असर अगर तुम पर पड़ गया तो तुम कहीं के नहीं रहोगे।”
“वो आप पर शक करते हैं, ये बात आपको खराब लगती है, या फिर मुझे लेकर करते हैं, ये दिक्कत है आपको? अगर आपको लगता है कि इन बातों से मैं कहीं का नहीं रहूँगा, तो आपको बता दूँ मेरठ मेरे बाप का है और आपको कहीं मिलूँ या नहीं, लेकिन वहाँ जरूर मिलूँगा। इससे ज्यादा फिक्र मेरी न करें। क्योंकि उम्र में भले बड़ी हैं, लेकिन माँ नहीं हैं आप मेरी।” सलीम अपनी बात खत्म करके बिना नताशा की बात सुने उनके सामने से हट गया।
इसके बाद से, सामान्य सी दिखने वाली दोनों की जिंदगी उथल-पुथल से भर चुकी थी। फिर भी दोनों पूरे दिल से एक-दूसरे की इज्जत करते थे। अपने काम पूरी शिद्दत से करते हुए आगे बढ़ते जाते थे। दोनों ही समझ चुके थे कि चाहे बहसबाजी जितनी भी हो, रहना दोनों को इसी तरह ही है। नताशा सलीम पर निर्भर हो चुकी थीं, तो सलीम को भी नताशा के आसपास रहने की आदत लग चुकी थी।
लेकिन दोनों की समझ से परे भी एक खेल था, जिसे सिर्फ ऊपरवाला ही खेलना जानता है, और उसने वो खेल खेला भी। जब लगने लगा था कि जिंदगी इसी तरह चलती चली जाएगी, तभी वक्त ने अपनी करवट बदल ली और हकीकत के वो चेहरे दिखाए, जो उन्होंने सोचे भी नहीं थे।
सलीम अपना बर्थडे कभी नहीं मनाता था, इसलिए उसे याद भी नहीं रहता था। आज कमरे में आते ही जैसे ही उसने लाइट जलाई, कमरे में मौजूद सभी ने एक साथ “Happy Birthday” सॉन्ग गाना शुरू कर दिया।
“हाँ तो सलीम साहब, आइए, केक काटिए।” नताशा व्हीलचेयर पर हाथ में केक लिए बैठी थीं। मिलांग ने केक टेबल पर सजा दिया और चाकू सलीम के हाथ में पकड़ा दी।
“एक मिनट! केक कटने से पहले हम सब God से प्रे करेंगे कि हमारे सलीम भाई को एक खूबसूरत, कम उम्र और हसीन बीवी मिले। आमीन!”
सलीम नताशा की बात पर मुस्कुराया और बिना देरी किए केक काट दिया। हाथों में केक का एक छोटा सा टुकड़ा लेकर नताशा के पास गया।
“केक पर पहला हक मेरी बड़ी बहन का।” नताशा के सामने घुटनों पर बैठते हुए सलीम ने केक उनके होठों से लगा दिया—“उम्मीद है अपनी भाभी आप खुद ही ढूँढकर लाएँगी।” सलीम की बातों से और उसकी आँखों में नताशा को जो एक जुनून सा दिखा, वो आज तक नहीं दिखा था।
नताशा के दोनों हाथ व्हीलचेयर के किनारे टीके थे। सलीम चाहता तो उन्हें अपने हाथों में पकड़ लेता, नताशा सबके सामने कुछ कह भी न पातीं, लेकिन जबरदस्ती से तो वो अपना हक भी नहीं लेता, तो मामूली सी भीख के लिए जबरदस्ती क्यों करे। सलीम नताशा को केक खिलाकर बाकी लोगों के पास चला गया।
रात को जब सलीम नताशा को उनके कमरे में लिटाने गया, तो उसने अपनी इच्छा व्यक्त की।
“मेरा बर्थडे गिफ्ट कहाँ है?”
“मुझे तुम्हारी पसंद तो नहीं मालूम, लेकिन फिर भी मैंने तुम्हारे लिए बूट्स लेकर आई थीं। तुम्हारे कमरे में ही रखे हैं।”
“नहीं, मुझे ये सब नहीं चाहिए।”
“तो?”
“मैं अपने लिए कोई धुन सुनना चाहता हूँ अभी।”
“खुशी के दिन भला कोई मातम की धुन सुनता है?”
“नहीं, इसीलिए तो खुशी के दिन खुशी की धुन ही बजाई जानी चाहिए।”
“वो मुझे नहीं आता।”
“आता तो है, मगर आप बजातीं नहीं।”
“हाँ, नहीं बजाती और न कभी बजाऊँगी। अगर मैंने अपनी शादी के दिन वो सॉन्ग्स न बजाए होते, तो हम और अल्बर्ट आज भी साथ होते। मेरा हैप्पी म्यूजिक एक डेथ वॉर्निंग है और कुछ नहीं। मुझे God ने जिस काम के लिए बनाया है, उसके अलावा कुछ भी करूँगी तो वो गुस्सा तो होंगे ही न।”
“आप और आपके God…!” सलीम फीकी सी हँसी हँसा। “दुनिया में पता नहीं ऐसे कौन God हैं जो अपने बच्चों को दुखी रहने का काम देते हैं। खैर होंगे कोई, मुझे क्या!”
सलीम ने नताशा की पीठ को सहारा देकर उन्हें खड़ा किया और अपनी बाहों में लेकर बिस्तर पर लिटाने लगा।
“देखो, God का मजाक नहीं…” आह! नताशा एक तेज चीख के साथ सलीम की बाँहें पकड़े ही रह गईं। सलीम भी नताशा को वैसे ही थामे रहा। ऐसा पहले भी हुआ था, लेकिन इतना बेतहाशा दर्द आज ही हुआ था। नर्स ने बताया था कि व्हीलचेयर पर बैठे रहने की वजह से शायद कमर में दर्द हो गया है, लेकिन इतना दर्द तो नहीं होना चाहिए।
“आप ठीक हैं?”
“मैडम…!” सलीम ने नताशा को बिस्तर पर लिटा दिया।
“मैम…?” नताशा दर्द से बेहोश हो चुकी थीं। ये पता चलते ही सलीम ने तुरंत नौकरों को आवाज लगाई। सलीम का बर्थडे होने के कारण आज कोई भी अपने घर नहीं गया था। नर्स को भी तुरंत फोन किया गया।
सब नताशा के कमरे के बाहर खड़े थे, अंदर नर्स उनकी जाँच कर रही थी।
“मैंने अभी के लिए इंजेक्शन दे दिए हैं, लेकिन मुझे लगता है कि कोई सीरियस प्रॉब्लम है। आप इन्हें कल ही डॉक्टर के पास ले जाइए।”
सबके जाने के बाद सलीम उनके कमरे के बाहर कुर्सी डालकर बैठ गया।
सुबह जब सलीम की नींद टूटी, तो उसने नताशा को अपने पास महसूस किया। बिना पूरी आँखें खोले उसने अधमुंदी आँखों से नताशा को देखा, वो उसी की तरह दीवार से सर टिकाए अपलक उसे देख रही थीं। नताशा सलीम के इतने पास थीं कि सलीम चाहता तो अपनी हथेलियों में उनके चेहरे को ले सकता था।
“मैडम! नाश्ता कर लीजिए, वरना ठंडा हो जाएगा।” नताशा ने रसोई से आती आवाज को अनसुना कर दिया। सलीम को किसी के आ जाने का डर लगा, इसलिए वो खुद ही बोल पड़ा—
“मैं तो सारा दिन ऐसे ही आपका वेट कर सकता हूँ, लेकिन ब्रेकफास्ट वेट नहीं करेगा।” उसने आँखें खोलकर सर सीधा कर लिया।
“क्या मतलब? मेरा मतलब, क्या तुम जग रहे थे? मैं तुम्हें जगाने ही आई थी। जल्दी उठो और तैयार हो जाओ।” नताशा ने अपनी हड़बड़ी छुपाने के लिए आवाज ऊँची की।
“कहाँ के लिए?”
“मालवा चलना है, कल सुबह का शो है।”
“नहीं! हमें आज हॉस्पिटल जाना है। आपको कोई सीरियस हेल्थ प्रॉब्लम है।”
“Oh C’mon! Don’t be childish. डॉक्टरों का तो काम ही होता है छोटी चोट को नासूर बताना। जरा से कमर दर्द को अगर डॉक्टर को दिखाया, तो न जाने क्या बीमारी बना दें।”
“आप चलेंगी या नहीं?” सलीम गुस्से से कुर्सी छोड़कर खड़ा हो गया।
“हाँ, ठीक है, शो से लौटने के बाद सोचेंगे।”
“Fine!” सलीम तैयार होने अपने कमरे में चला गया।
मालवा से लौटने के बाद भी नताशा किसी भी डॉक्टर के पास जाने को तैयार नहीं हुईं। कभी कोई बहाना बना देतीं, तो कभी गुस्सा दिखा देतीं। “इस शो के बाद जाऊँगी, उस शो के बाद जाऊँगी,” करते-करते महीना भर निकल गया और इस बीच दो बार फिर से दर्द के दौरे पड़े। सलीम और घर के बाकी नौकर जब सब कुछ करके हार गए, तो सलीम ने अपनी पैकिंग शुरू कर दी। नताशा उसे रोकने की कोशिश करने लगीं।
वो ये बात अच्छे से जानती थीं कि इन डेढ़ सालों में वो पूरी तरह सलीम पर निर्भर हो चुकी थीं। दवा से लेकर, सोने-जागने तक में उन्हें सलीम की मदद चाहिए होती थी। सलीम की जगह अगर दूसरा कोई आ भी गया, तो इतने अपनेपन और जिम्मेदारी से उनकी देखभाल नहीं कर पाएगा।
सलीम सिर्फ हॉस्पिटल जाने की शर्त पर ही रुकने को तैयार था, इसलिए नताशा ने उसकी शर्त मान ली। ये बात सुनकर सलीम के साथ नौकर भी खुश थे। लेकिन उनकी ये खुशी शाम तक ही रही। शाम को सलीम का चेहरा देखते ही सब बेरंग हो गए।
सलीम ने नताशा को उनके कमरे में आराम करने के लिए भेज दिया और खुद सीढ़ियों के सहारे खड़ा हो गया।
“सलीम बाबू! सब ठीक तो है न?” रसोइया ने पूछा।
“बीजी, कुछ ठीक नहीं है। आप लोग समझिए उन्हें।”
“हुआ क्या है, ये तो बताओ?” काका घबरा गए।
“उनके कमर में ट्यूमर है, जो बढ़ता ही जा रहा है। डॉक्टर तो रिपोर्ट देखकर हैरान हो गए कि इतने दर्द में ये जी कैसे रही हैं।”
“हैए… भैरवी कृपा कर।”
“दादा, दवा नहीं होगी इसकी क्या?” मिलांग ने पूछा।
“ऑपरेशन होना है, एक-दो दिन में। लेकिन ये माने तब न। मुझसे कहती हैं कि 36 से ज्यादा की हो गई हूँ, अब मरना ठीक रहेगा। वरना बुढ़ापे में सारी खूबसूरती मिट जाती है।” सलीम की आँखों से आँसू बहने लगे।
“बाबू, तुम ये सब हम लोगों को इसलिए बता रहे हो ताकि हम कुछ कर सकें, लेकिन बेटा, हम लोग तो पहले से ही तुम्हारे सहारे हैं। अब तुम ही उन्हें बचा सकते हो, बेटा।” काका ने भारी आवाज में कहा।
सलीम रात भर जागकर सोचता रहा कि नताशा को ऑपरेशन के लिए कैसे तैयार किया जाए। सुबह की पहली किरण उगते ही वो नताशा के कमरे में दाखिल हो गया। नताशा भी जगी हुई थीं।
“भाईजान ने मेरे लिए एक लड़की पसंद की है, मैं उससे शादी करना चाहता हूँ।”
“क्या, सच में? ये कोई सपना तो नहीं! Congratulation, सलीम। तुमने तो मेरा दिन बना दिया।” काफी दिनों बाद नताशा पूरे दिल से खुश हुईं।
“लेकिन मेरी एक शर्त है।”
“शर्त! कैसी शर्त?”
“आपको ऑपरेशन करवाना होगा। अगर आपने ऑपरेशन से मना किया, तो आपके सिर की कसम खाकर कहता हूँ, कुंवारा ही मर जाऊँगा। अभी तक की गई आपकी सेवा के बदले, मुझे बस यही एक चीज चाहिए। मैं आपसे वादा करता हूँ कि आपके ठीक होने के बाद मैं यहाँ से हमेशा के लिए चला जाऊँगा और फिर कभी आपकी उंगलियों को पकड़ने की कोशिश भी नहीं करूँगा।” सलीम का गला आँसुओं से भर आया था, लेकिन वो फिर भी बोलता रहा।
“पकड़ना तो दूर, मैं आपकी उंगलियों की तरफ देखूँगा भी नहीं। आपके पास सोचने के लिए सिर्फ शाम तक का ही समय है।” इतना बोलकर सलीम तेजी से बाहर निकल गया।
नताशा फिर से सलीम के आगे मान गईं और ऑपरेशन फॉर्म पर साइन कर दिए। नताशा के ऑपरेशन थिएटर में जाते ही उनकी मैनेजर डेबी ने यीशु से प्रार्थना शुरू कर दी, सलीम ने अल्लाह के आगे सर झुका लिया। हवेली में बीजी और बुधवा अपनी कुलदेवी भैरवी को मानने लगे, वहीं मिलांग बुद्ध से नताशा के जीवन की भिक्षा माँगने लगी। सबके आराध्य अलग थे, लेकिन सबका ध्येय नताशा ही थी।
सुबह तक सबकी प्रार्थनाएँ स्वीकार हो चुकी थीं।
नताशा का ऑपरेशन सक्सेसफुल रहा। डॉक्टर्स 3 दिन की निगरानी के बाद उनकी छुट्टी पर फैसला लेंगे। प्रचार के भूखे कुछ डॉक्टरों ने मीडिया में भी खबर डाल दी कि “असम की मशहूर पियानोवादक नताशा मरीना जोसेफ के ट्यूमर का सफलतम ऑपरेशन कर उन्हें नया जीवन दिया गया।”
खबर मीडिया में जाते ही नताशा के लिए बुके आने शुरू हो गए। उनकी पहचान के लोग उनसे मिलने आने लगे। सलीम के बड़े भाईजान भी उनसे मिलने के लिए ट्रेन पकड़ चुके थे।
“आज आपको अपने भाईजान से मिलवाऊँगा।” अगली सुबह खुशी से सराबोर सलीम नताशा से ये कहकर निकला था। तीन घंटे में वापसी का कहकर गया था, लेकिन नहीं आया, बल्कि उसकी खबर आई।
“मैम… मै… सलीम!” डेबी की घबराई आँखों से आँसू बहने लगे।
“डेबी! क्या हुआ?” वो खुद से बैठने की हालत में नहीं थीं, फिर भी उठने की कोशिश की।
“मैम, उन्हें एक बार देख लीजिए चलकर।” डेबी ने नताशा को अपनी बाहों में भरके उठाया।
सलीम का एक्सीडेंट हो गया था। हॉस्पिटल से थोड़ी ही दूर, जब वो टैक्सी से उतरकर किराया दे रहा था, तो एक अनियंत्रित कार उनकी तरफ आ रही थी। गाड़ी के ब्रेक फेल थे। सलीम ने भाईजान को तो धक्का देकर बचा लिया, लेकिन खुद कार के नीचे आ गया।
नताशा जब ICU में पहुँची, तो उसे चक्कर आ गए। गोरा-चिट्टा सलीम खून से लाल हुआ पड़ा था। नताशा सलीम के शरीर पर लगी तरह-तरह की मशीनों की तरह खुद भी मशीन जैसी बैठी रही। अपने दोनों हाथों से उन्होंने सलीम के हाथ को पकड़ लिया। अगर सलीम मर न रहा होता, तो जरूर जवाब में उनके हाथों को कसके दबाते हुए उन्हें सीने से लगाता।
नताशा ने सिर्फ उसकी उंगलियों को अपनी उंगलियों में समाया ही नहीं, बल्कि झुककर अपने होठों से चूम भी लिया।
“याद… है…” सलीम बहुत धीमे से बोला, जिसमें एक भी शब्द साफ नहीं था, क्योंकि उसका मुँह छिल गया था।
नताशा ने उसके करीब जाने की कोशिश की।
“मैम, डॉक्टर ने मना किया…”
“बाहर जाओ, डेबी। हाँ, बोलो सलीम, मैं सुन रही हूँ।”
“मैंने कहा था… जिस दिन भी… आपकी उंगलियों को छू लिया, उसी दिन… चला जाऊँगा। अब मेरे जाने का वक्त…”
“आ…”
“मैंने भी तो कहा था, उंगलियों के बाद कंधा और कंधे के बाद पूरा शरीर छुआ जाता है, सलीम।”
“इस जनम में… इतना ही छूना लिखा था… बाकी अगले जन्म में…”
“तो वादा करो, फिर अगले जन्म में मुझे पूरा छुओगे।”
“क्या आप ऐसा… चाहती हैं?”
“हाँ, हाँ, सौ दफा चाहती हूँ, इसी जनम में चाहती हूँ।”
“तो आज तक… कहा क्यों नहीं?”
“समाज के डर से। बात सिर्फ उम्र की नहीं, विधवा, बाँझ, अपंग, सभी कुछ तो हूँ मैं।”
“खूबसूरत, प्यारी… पावरफुल… कामयाब भी!” बोलते हुए सलीम के मुँह से खून निकलने लगा।
“सलीम! देखो, छोड़कर मत जाना मुझे। तुम्हारे बिना मेरा एक काम भी नहीं हो पाएगा।” नताशा व्हीलचेयर से उठने की पूरी कोशिश करते हुए सलीम के बेड पर लटक गई।
“सलीम, मैंने तुम्हारी बात मानी, अब तुम मेरी मान लो। वापस आ जाओ। मैं तुम्हें नहीं खोना चाहती। अगर तुम आ गए, तो मैं तुमसे शादी कर लूँगी, दोबारा कभी मेरे पियXpiano से कोई सैड ट्यून नहीं निकलेगी।” नताशा सिसक-सिसक कर रोने लगी। सलीम बोल तो नहीं पा रहा था, लेकिन सुन सब रहा था।
“सलीम, एक बार… बस एक बार मुझे नैट बोलो।” वो सरककर बेड पर आ गई।
“सलीम, please।” नताशा ने उसके दूसरे हाथ को भी पकड़ लिया था।
“न… नै… नैट…” सलीम ने अपनी पूरी ताकत लगाकर ये शब्द बोले। इसके बाद सभी मशीनें आवाज करने लगीं।
“नहीं, सलीम, अभी नहीं।” कहते हुए नताशा ने सलीम के जख्मी होठों पर अपने होठ रख दिए।
तब तक डॉक्टर ICU में आ चुके थे। डॉक्टरों ने तुरंत नताशा को वहाँ से हटाकर व्हीलचेयर पर बिठाया। लेकिन नताशा चीखती हुई सलीम का हाथ छोड़ने को तैयार नहीं थी। सलीम के चेहरे पर एक मनमोहक मुस्कान छाई हुई थी।
“सलीम… सली… अकेले तो मत जाओ। तुम्हारे सिवा कोई और नहीं है, जिसके लिए जिंदा रहूँ मैं। सलीम…!” नताशा चिल्लाती जा रही थीं। उनकी चीखों से ICU ही नहीं, पूरा हॉस्पिटल सिहर गया था। नताशा की आखिरी चीख के साथ ही कमरे की सारी मशीनें शांत हो गईं। नताशा के बेहोश होते ही उनकी उंगलियाँ ढीली पड़ीं और सलीम की रूह उसके शरीर से आजाद हो गई।
सबके लाख रोकने के बावजूद नताशा हॉस्पिटल में नहीं रुकी। डेबी ने उसे व्हीलचेयर पर नहीं बिठाया, तो फर्श पर ही सरक-सरककर हॉस्पिटल से घर के लिए जाने लगी। उसकी ऐसी हालत देखकर डेबी अपनी बेबसी पर रोने लगी।
हवेली पहुँचते ही नताशा ने किसी को कॉल करके घर बुलाया और अपने कमरे में चली गई। थोड़ी ही देर में नताशा के कमरे से प्यारी, रोमांटिक-सी धुन निकलने लगी। धुन इतनी नशीली थी कि उसे सुनकर बाहर बैठे नौकरों के आँसू भी सूख गए।
“To my beloved lover” ये गाना नताशा एक बैंड के लिए बजा रही थीं, जो आज तक उनके गाने मार्केट में लॉन्च करना चाह रहा था। उनके बगल में दो आदमी खड़े संगीत के सातों सुरों को आँखों से देख रहे थे। रात होने के बावजूद भी किसी को अंधेरे का अहसास नहीं हो रहा था। इतनी देर तक बैठने की वजह से नताशा के टाँके खुल गए थे और कमर से खून निकल रहा था।
डेबी ने बड़ी रिक्वेस्ट करके डॉक्टर्स को घर पर बुलाया। म्यूजिक डायरेक्टर्स को कमरे से बाहर करके डॉक्टरों ने जबरदस्ती नताशा को बिस्तर पर लिटाया और कुछ दवाएँ दीं। इंजेक्शन लगाने के बाद सब बाहर चले आए। अभी नताशा को वापस हॉस्पिटल ले जाने की तैयारी चल ही रही थी कि कमरे से कुछ गिरने की बहुत तेज आवाज हुई। सभी भागे-भागे कमरे में पहुँचे, तो देखा—बिस्तर से लेकर पियानो तक खून की मोटी रेखा बनी हुई थी और पियानो नताशा के ऊपर गिर चुका था। जल्दी से पियानो को नताशा के ऊपर से हटाया गया, तो उसने आखिरी बार पियानो की कुंजियों पर हाथ फेरा और चेहरे पर एक मुस्कान लिए शांत हो गई।
नताशा की वसीयत के अनुसार, उनकी प्रॉपर्टी का आधा हिस्सा सलीम के भाईजान को और बाकी बचे हिस्से में डेबी और नौकरों को बाँटा गया।
अगले दिन के अखबार में नताशा मरीना सिद्दीकी के म्यूजिक से ज्यादा चर्चा उनकी लव स्टोरी की रही। कुछ को मुस्लिम और क्रिश्चियन लड़की का साथ में दफनाया जाना गलत लग रहा था, तो कुछ इस अमर कहानी पर मूवी बनाने की बात कर रहे थे।
मगर इन सब से बेफिक्र, कहीं आसमानों में शायद सलीम और नताशा साथ में मिलकर कोई प्यार भरा नगमा गा रहे हों। आमीन!
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