“Last wish” sad heartbreaking love story part 1

                        “Last wish” sad heartbreaking love story part 1

लोग जब किसी दर्द से गुजरते हैं तो उनकी आँखों से आँसू बहने शुरू हो जाते हैं। उनकी आँखें रोती हैं। लेकिन नताशा के साथ ऐसा बिल्कुल नहीं है क्योंकि उनकी तकलीफ पर उनकी आँखें तो खामोश रहती हैं, लेकिन उनकी उंगलियाँ सारी रात रो सकती हैं। दर्द बयां करने के इस अनोखे अंदाज की वजह से ही पूरे असम में उनकी चर्चा हमेशा बनी रहती है।

वो सिर्फ उंगलियों से खुद ही नहीं रोतीं, बल्कि अपनी उंगलियों के दम पर किसी को भी रुला सकती हैं। इसीलिए सिर्फ असम के ही नहीं, बल्कि पूरे देश के बड़े-बड़े लोग उनके एक प्राइवेट शो के लिए भारी-भरकम रकम चुकाने को तैयार रहते हैं। पिछले 6 सालों से तो उन्होंने स्वीडन, फ्रांस, दुबई, यूके, अमेरिका, कनाडा, मलेशिया, जर्मनी जैसे देशों में भी अपनी प्राइवेट परफॉर्मेंस दी है।

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दरअसल, नताशा मरीना जोसेफ एक पियानिस्ट हैं। पियानो बजाना उन्होंने कहीं से सीखा नहीं है। असम के लोग बताते हैं कि यह हुनर उनके अंदर जन्मजात है। उनके घर में दादाजी का पियानो रखा हुआ था, जिसे उन्होंने पहली बार 2 साल की उम्र में बजाया था। तब से उनकी यह कला दिनोंदिन निखरती रही। 12 की उम्र तक उनकी पहचान पूरे असम में फैल गई थी और 18 तक पूरे देश में।

लेकिन सबसे खास बात उनकी क्या है? उनकी उंगलियों से निकली पहली ही धुन में ऐसा लगता था कि दुनिया भर के दुख उनकी उंगलियों में समा के पियानो के कीबोर्ड पर थिरक रहे हों। आज तक उनके पियानो से किसी ने कोई खुशी की धुन बजते नहीं सुनी। लेकिन कुछ लोग दावा करते हैं कि उन्होंने आखिरी बार अपने वेडिंग डे पर हैप्पी ट्यून बजाई थी।

नताशा जब भी पियानो बजाती हैं, सुनने वाला चाहे कितना ही खुश क्यों न हो, उसके अंदर एक दर्द सा उभर कर चेहरे पर चला आता है। इसीलिए ऐसे लोग जो कोई प्रेशर झेल रहे हैं, किसी तकलीफ में हैं, अपने दिल का सारा दर्द निकालना चाहते हैं मगर किसी को बता नहीं पा रहे, उनके लिए नताशा एक दवा की तरह काम करती हैं।

ऐसे ही लोग उन्हें अपने दर्द को आंसुओं के जरिए बाहर निकालने के लिए संपर्क करते हैं। उनके म्यूजिक को सुनकर ऐसा लगता है कि पियानो की 88 कुंजियों से नताशा 88 प्रकार के दुखों को सहला रही हों। उनकी उंगलियाँ हफ्ते के हर दिन एक ग्लूमी संडे की गवाह बन रही हों।

The Sound of Grief की सरताज नताशा की जिंदगी भी ऐसी ही है। जन्म के समय माँ का देहांत, 15 तक कैंसर से पिता की भी मौत, 23 साल की उम्र में रोड एक्सीडेंट में पति और अजन्मे बच्चे की मौत, और 25 तक आते-आते उनके दोनों पैरों का जवाब दे जाना। एक्सीडेंट की वजह से उनके एक पैर में रॉड पड़ी थी, लेकिन दूसरा पैर अचानक ही काम करना बंद कर गया था। आज 35 की उम्र में उन्हें व्हीलचेयर का सहारा लेना पड़ रहा है।

उनकी इस दर्दनाक जिंदगी के कारण ही आसपास के लोग उन्हें मनहूस मानते हैं। उनके घर के नौकर भी शाम 6 बजे के बाद उनकी हवेली में नहीं रुकते। उनकी नर्स भी 8 बजे घर चली जाती है, यह जानते हुए भी कि नताशा को बिस्तर पर लेटने और उठने के लिए सहारे की जरूरत पड़ती है। फिर भी कोई उनकी मदद के लिए नहीं रुकना चाहता।

सबके जाने के बाद उस पूरी हवेली में दो ही लोग बचते हैं—खुद नताशा और उनका ड्राइवर सलीम, जिसे उन्होंने दो हफ्ते पहले ही काम पर रखा था। सलीम का घर दूसरे राज्य में होने के कारण नताशा ने उसे अपनी हवेली में रहने की इजाजत दे दी थी, जिसे सलीम ने बिना विरोध के मान लिया। दो दिन तो हवेली के ऊपरी फ्लोर पर रहा, लेकिन तीसरे ही दिन उसने नताशा से नीचे किसी रूम में रुकने की परमिशन मांगी ताकि वो एक आवाज पर नताशा की मदद कर सके। अब उसका कमरा नताशा के बगल वाले कमरे में शिफ्ट हो चुका था।

ड्राइवर की हैसियत से आए सलीम ने अब नताशा के खाने-पीने और दवा का ध्यान रखना भी शुरू कर दिया था। किसी भी शो के लिए ले जाने से लेकर वहाँ से सही-सलामत लाने की जिम्मेदारी भी पूरी तरह निभाता था। इतने कम वक्त में इतनी ज्यादा तवज्जो मिलने की वजह से नताशा को सब चीजें थोड़ा अजीब लगीं, लेकिन उन्होंने इस बात को अनदेखा करना ही मुनासिब समझा।

घर के नौकरों को लगता है कि सलीम नताशा को अकेला जानकर उसकी करोड़ों की प्रॉपर्टी हड़पना चाहता है, इसीलिए जब-तब वो नताशा को भड़काते रहते हैं। नताशा भी सोचने पर मजबूर हो गई थीं कि 12 हजार की मामूली पगार पर कोई नौजवान 24 घंटे उनकी नौकरी क्यों करेगा? महीने के हिसाब वाले दिन उनकी शंका अपने चरम पर पहुंच गई जब सलीम ने पगार लेने से मना कर दिया।

“क्यों भई? पगार नहीं लोगे तो अपने बीवी-बच्चे कैसे पालोगे?” नताशा व्हीलचेयर पर बैठे हुए नोटों की गड्डी को उसकी तरफ बढ़ाती हैं।
“जी मैडम, शादी नहीं हुई है मेरी,” सलीम अपने दोनों हाथों को आगे की तरफ बांधे खड़ा था।

“तो क्या कभी फ्यूचर में करोगे भी नहीं? तब के लिए…”
“अभी तो कहा नहीं जा सकता।”
“गर्लफ्रेंड है?”
“नहीं!”

“तो यहाँ अपना घर छोड़कर असम में किसके लिए भटक रहे थे?”
“नौकरी के लिए।”

“अगर मुफ्त में ही नौकरी करनी थी तो मेरठ कम था क्या?”
“मुफ्त में कहाँ! यहाँ आप रहने को छत देती हैं, खाने को खाना। इसके सिवा आदमी को पैसा चाहिए ही कहाँ होता है।”
“और भी बहुत चीजें हैं जो तुम बिना पैसे के नहीं कर सकते…”
“अगर ऐसी कभी जरूरत पड़ी तो आपसे मांग लूंगा।”
“लेकिन मैं तुम्हें अभी तुम्हारा पैसा देना चाहती हूँ।”

“मुझे अभी पैसे की कोई जरूरत नहीं है, फिर भी अगर आप कुछ देना चाहती हैं तो मैं आपसे पियानो सीखना चाहूंगा।”
“भूल जाओ, न मैंने कभी किसी को सिखाया है और न सिखाऊँगी।”
“क्यों?”

“क्योंकि दर्द सीखने की नहीं, झेलने की चीज है और दूसरी बात कि सबके दर्द अपने निजी होते हैं, कोई दूसरा उन्हें नहीं समझ सकता।”
“दर्द को समझा जा सकता है, बशर्ते कोई समझाना चाहे।”
“तुम मुझसे बहस करना चाहते हो?”

“बिल्कुल भी नहीं मैडम।” सलीम सर झुका के दो कदम पीछे चला गया।
नताशा थोड़ा मुस्कुरा दी।
“तैयार हो जाओ, हमें एक शो के लिए बैंगलोर जाना है।”
“Ok ma’am.”

बैंगलोर से वापसी में नताशा ने अपनी फीस को दो बैग में रखवाया था। एक में 10% और बाकी 90% दूसरे बैग में। असम पहुंचते ही Mother Marry नाम के एक अनाथाश्रम के सामने नताशा ने कार रुकवाई। सलीम के हाथ में पैसों से भरा बैग देते हुए अंदर जाने को कहा। उन्हें उम्मीद थी कि सलीम इस काम के लिए मना करेगा, लेकिन उसने ऐसा कुछ भी नहीं किया। काउंटर से आते ही उसने एक रसीद नताशा को दी और अपनी ड्राइविंग सीट पर बैठ गया।

कार अपनी स्पीड में चल रही थी। सलीम ने कोई सवाल भी नहीं किया और कार की अगली और पिछली सीट के बीच मीलों की खामोशी फैल गई। जिसे नताशा ने बात करके कम करने की कोशिश की।

“लोग सोचते हैं कि मेरे पास बहुत पैसा है। अगर मैं मर गई तो उस पैसे का क्या होगा। लेकिन उन लोगों को ये नहीं मालूम कि अपनी कमाई का आधे से ज्यादा पैसा मैं दान कर देती हूँ। कभी-कभी सोचती हूँ कि ये समाजसेवा की आदत की वजह से कहीं मेरे फ्यूनरल के लिए भी लोगों से उधार न लेना पड़े।”

“ऐसा क्यों सोचती हैं? दूसरों को बांटने वाले की झोली ऊपरवाला कभी खाली नहीं रखता। आप जितना बांटेंगी, उससे दुगना सवाब आपको मिलता जाएगा।”
“सच में? मेरे बांटने की हरकत से मेरे घर के नौकरों तक को ऐतराज रहता है, तुम्हें कोई दिक्कत नहीं हुई।”
“आपका पैसा है, आपके सिवा मुझे या किसी को भी कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए।”

“हू…!” नताशा ने अपना सिर खिड़की से बाहर कर लिया। इतनी देर में उसे समझ आ गया था कि सलीम उसकी प्रॉपर्टी के लालच में तो बिल्कुल भी नहीं है और पियानो सिखाने से उसने मना कर दिया था। तो फिर किस लिए उसके यहाँ जॉब कर रहा है?

“मैडम, सिर अंदर कर लीजिए, वरना ठंडी हवा लग सकती है। शाम के समय वैसे भी ठंड ज्यादा है।”
“कुछ तो लगने दो सलीम, इस बंधी जिंदगी में कुछ तो जरा हटके होगा।”

“अगर आपको कुछ हटके करना ही है तो और भी बहुत सारी चीजें हैं करने के लिए।”
“जैसे?”

“जैसे घूमना, नई चीजें खरीदना, नया खाना ट्राई करना या फिर रिवर राफ्टिंग या पैराजंपिंग करना…!”
“मजाक कर रहे हो? ये सब मैं नहीं कर सकती।”

“कर सकती हैं, मगर अकेले करना मुश्किल रहेगा। लेकिन आप चाहें तो साथ देने के लिए मैं रहूंगा।”
“अच्छा, अगर सोच ही लिया है तो बताओ कहाँ ले जाना चाहते हो मुझे?”

“अजमेर शरीफ की दरगाह पर। कहते हैं वहाँ जो मांगो वो मिलता है।”
“मेरे पास जितना है, उतना ही काफी है। बस घूमने चलूँगी वहाँ।”
“जैसा ठीक समझें।”

“अगले हफ्ते की टिकट बुक कर लो।”
“Ok।”

“अच्छा, सुनो, ड्रिंक करते हो?”
“दो साल पहले पी थी।”
“तो आज रात हम ड्रिंक्स करेंगे।”
“Sure!”

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नताशा सालों बाद अपने बेडरूम से निकलकर अपने आर्ट रूम में बीयर पी रही थीं। जब से उनके पैरों ने जवाब दिया था, तब से उनके सारे शौक उनके कमरे तक ही सिमट कर रह गए थे। लेकिन आज सलीम के हौसले पर यहाँ तक चली आई थीं। उसे पता था कि अगर वो होश में न भी रही, तब भी सलीम उसे बिस्तर पर लिटा आएगा।

मगर सलीम ने ये नौबत आने ही नहीं दी। 6 ड्रिंक्स के बाद 7वीं ड्रिंक बनाने से साफ मना कर दिया। बार-बार रिक्वेस्ट करने पर भी उसने उनके सामने व्हीलचेयर लाकर बैठने का इशारा किया। रात काफी बीत चुकी थी, यही सोचकर उन्होंने और जिद भी नहीं की।

उन्हें उनके बेड पर लिटाकर सलीम अपने कमरे में चला आया और खिड़की के पास आकर आसमान को देखने लगा। जहाँ लाखों तारों के बीच चाँद रोशनी से तर-बतर पूरे आसमान में फैला मुस्कुरा रहा था।

सलीम बचपन में राजस्थान आया था, तब से 15 सालों बाद उसे ये मौका मिला। नताशा को उसने उसी नजर से राजस्थान की खूबसूरती दिखाई, जिन आँखों से उसके अब्बू ने रूबरू करवाया था। नताशा भी वहाँ का नजारा देखकर रोमांच से भर उठी थीं। आज तक जो उंगलियाँ सिर्फ पियानो पर थिरकती थीं, आज वो पेड़ों, शिल्प कलाओं, पत्थरों, जानवरों और रेत के मैदानों को छूकर उनके अंदर के साज को पिरो रही थीं। अल्बर्ट के जाने के बाद न उन्होंने कभी घूमना चाहा था और न ही उनके पैर इस लायक बचे थे। मगर आज सलीम के सहारे ने उन्हें बेफिक्र होकर घूमने में बड़ी मदद कर दी थी।

वहाँ दोनों 5 दिन रहे और इन पाँच दिनों में नताशा ने सैकड़ों नई चीजें देखीं और सीखीं भी। इसी टूर के दौरान नताशा ने सलीम को बताया था कि अल्बर्ट उसे नैट कहकर बुलाता था। “नैट,” कन्फर्मेशन के लिए सलीम ने इसे दोहराया ही था कि नताशा ने उसे डाँट दिया, क्योंकि अल्बर्ट के अलावा और कोई उसका ये नाम लेने का अधिकारी नहीं है।

राजस्थान से लौटने के बाद भी नताशा का मन वहाँ से नहीं आ पा रहा था। अपनी रसोइया से वो एक के बाद एक राजस्थानी खाने की फरमाइश किए जा रही थीं। बाकी नौकरों को भी अपनी टूटी-फूटी राजस्थानी बोली से परेशान करतीं, तो बाकी नौकर सलीम को ऐसे देखते कि उसने कोई गुनाह कर दिया हो। लेकिन जो भी हो, नताशा के चेहरे की ताजगी देखकर बाकी सबके चेहरे पर भी एक मुस्कान तो आ गई थी।

अब नताशा असम के बाहर जहाँ भी जातीं, शो खत्म होने के बाद बड़ी उम्मीद के साथ सलीम को देखतीं। सलीम भी समझ जाता कि उनका घूमने का इरादा है, तो बिना सवाल किए आसपास की फेमस जगहों पर उन्हें घुमा लाता।

एक बार तो बिना किसी शो के ही उन्होंने दिल्ली देखने की जिद पकड़ ली थी। लेकिन वहाँ की भीड़ और शोर-शराबे को देखते हुए सलीम ने साफ मना कर दिया। काफी मान-मनव्वल के बाद पंजाब घूमने का प्लान बना। इसकी खबर रसोइया तक पहुंची तो वो सलीम पर भड़क गई।

“याद रखना सलीम भैया, अगर वहाँ से आकर मैडम ने मुझसे मक्के की रोटी और सरसों का साग बनवाना शुरू किया, तो आपकी खैर नहीं।”
“फिक्र न करें, मैं वहाँ इन्हें ऐसा कुछ खाने ही नहीं दूंगा जिससे यहाँ मेरी बीजी को तकलीफ उठानी पड़े,” सलीम ने मुस्कुराते हुए कहा था।

सलीम चार महीने पहले आया था, लेकिन यहाँ के सभी लोगों से इस तरह का रिश्ता बन गया था कि जैसे चार सालों से यहीं रह रहा हो। उसके आने के बाद से ही हवेली थोड़ी हँसती-मुस्कुराती लगती थी। अब नताशा किसी खाली दिन पर जिद करके भी अपने बिस्तर पर लेटना चाहतीं, तो भी सलीम उसे सबके साथ पत्ते खेलने या टीवी पर कोई मूवी देखने के लिए उठा लाता। घर के नौकर अब न नताशा से ज्यादा डरते थे और न इस हवेली से ही।

लेकिन कहते हैं न कि अच्छे दिन ज्यादा दिन नहीं रहते। इस हवेली के अच्छे दिन भी ज्यादा समय नहीं रहे। पंजाब से आने के बाद एक दिन नताशा सलीम के कमरे में चली गई थीं। टेबल पर रखे कैमरे को देखकर मन में फोटो देखने की इच्छा जागी, तो कैमरा उठा लिया।

कुछ फोटोज सलीम की थीं, कुछ उनकी और कुछ आसपास की जगहों की, लेकिन सबसे ज्यादा फोटोज उनके हाथों की थीं। ऐसी करीब सौ फोटो नताशा ने देखीं, जिनमें सिर्फ उनके हाथों को खींचा गया था। बाकी की लगभग 40 फोटोज उनके चेहरे की थीं। इसी बीच सलीम भी कमरे में आ गया था।

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“कुछ काम था आपको?”
“नहीं, फोटोज देख रही थीं ऐसे ही। ये बताओ, इन पिक्चर्स में मेरी उंगलियों की तस्वीरें क्यों ली हैं तुमने? वो भी बिना मेरी परमिशन के।”
“एक्चुअली, आपकी उंगलियाँ काफी खूबसूरत हैं। आप जब ग्लव्स नहीं पहनतीं, तो वो रेशमी धागे की तरह चमकती हैं।”
“इसमें मेरी कुछ तस्वीरें पियानो प्ले के टाइम की हैं, वो भी बिना ग्लव्स के। जहाँ तक मुझे याद है, मुझे साल भर से ज्यादा हो गया है सलीम, मैं अपनी हर परफॉर्मेंस ग्लव्स के साथ ही दे रही हूँ।”

“जी! वो फोटोज मिस्त्री साहब की प्राइवेट पार्टी के हैं। पहली बार आपको वहीं पियानो प्ले करते हुए देखा था। मैं वहाँ बैरा का काम कर रहा था। आप पियानो बजाने में इतनी मशगूल थीं कि आपने मुझ पर ध्यान नहीं दिया था।”

“Oh, तो इसका मतलब तुम मुझे स्टॉक कर रहे थे काफी टाइम से?”
“नहीं। मैंने बस ऊपरवाले से आपसे एक बार मिलने की दुआ मांगी थी और ऊपरवाले ने 7 महीने में मेरी दुआ कुबूल भी कर ली।”
“मुझसे मिलने की दुआ क्यों मांगी थी?”
“दरअसल, मैं आपकी उंगलियों को एक बार छूकर देखना चाहता हूँ बस।” सलीम की आवाज में कोई डर या घबराहट नहीं थी।
“You fell for my fingers? जानते हो मेरी उम्र कितनी है?”
“35।”

“उन्हूं, 35 साल 5 महीने 12 दिन। अब अपनी उम्र बताओ।”
“24 साल 6 महीने 20 दिन।”
“Correct. उम्र का ये फासला हमेशा अपने जेहन में रखना।”
“मैं बस आपकी उंगलियों को एक बार छूना…”
“आज उंगलियाँ छूना है और कल कंधा चाहिए होगा, फिर परसों तो…”
“इतना तो मैंने भी नहीं सोचा जितना आप बोल गईं मैडम।”

“मैडम नहीं। दीदी, बाजी, बहन जी, सिस्टर…! आगे से इन्हीं में से कुछ कहना।”
“मैम, वो तो मैं नहीं बोल सकता, आप चाहें तो भले नौकरी से निकाल दें।”
“ठीक है, मैं तुम्हें नौकरी से ही निकाल दूँगी।” नताशा गुस्से में अपनी व्हीलचेयर चलाती हुई बाहर चली गईं, सलीम से सहारा तक नहीं लिया।

उस दिन के बाद से हवेली फिर से पुरानी वाली मनहूसियत में खो गई। सलीम ने सबसे मजाक करना बंद कर दिया और बाकी सबने नताशा से डरना शुरू कर दिया। लेकिन एक चीज गौर करने वाली थी कि न नताशा सलीम को जॉब से निकाल पाईं और न सलीम ही नौकरी छोड़कर जा पाया।

उन दोनों के बीच सब कुछ पहले जैसा ही रहा, बस दोनों की बातचीत कम हो गई। व्हीलचेयर से कार में बिठाना और उतारना या फिर बिस्तर पर लिटाना और उठाकर वापस व्हीलचेयर पर बिठाना, इतना ही काम था सलीम का। सलीम तो एक शब्द भी नहीं बोलता नताशा से, लेकिन नताशा ही कभी-कभी उसका जी जलाने की कोशिश करतीं।

“छोटे भैया, आराम से” या फिर “Thanks brother” जैसे शब्दों के इस्तेमाल से सलीम अंदर से उलझ तो जाता, लेकिन अपनी उलझन को चेहरे पर नहीं आने देता।

नौकरों को लगा था कि अगर दोनों के बीच कोई बात हुई है, तो एक-दो हफ्ते में ठीक हो जाएगी। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। पाँच महीने से ज्यादा हो गया, दोनों के बीच कोल्ड वॉर नहीं रुका, बल्कि स्थिति और बिगड़ गई जब सलीम एकदम से गायब हो गया। नताशा ने अपने नौकरों को आसपास दौड़ाया, नताशा की मैनेजर ने सभी क्लाइंट्स को फोन करके जानकारी ली, अखबार में छोटा सा इश्तिहार भी निकलवाया गया, लेकिन सलीम का कुछ पता नहीं चला। सलीम के पास फोन था, लेकिन उसका नंबर किसी के पास नहीं था, खुद नताशा के पास भी नहीं, वरना शायद कुछ पता ही चल जाता।

5 दिनों तक कुछ भी हाथ न आया, ऊपर से नताशा की तबीयत भी बिगड़ गई। ठंडी हवा लगने से नताशा को बहुत तेज बुखार चढ़ आया था। सबका ध्यान सलीम से हटकर नताशा पर ही आ गया।

 

                                                                                                                                                                                                                Thanks for reading…

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