| I kidnap my wife | Husband wife romantic Love story .
स्वीकृति बालकनी के सामने खड़ी है ।रोज जब खड़ी होती थी तो समझ में भी आता था लेकिन आज क्यों खड़ी है ? कल ही उसने संचित को आज कमरे में आने के लिए मना कर दिया था । बहाना बनाते हुए ये कहा था कि मेहमान आयेंगे घर पर । लेकिन ये नहीं बता पाई की वो मेहमान कौन होंगे ? संचित हमेशा उसकी बात मान लेता है इसीलिए स्वीकृति बेफिक्र है कि उसे कुछ पता चल पाएगा । इसीलिए बालकनी से आकर वापस शीशे के सामने पत्थर की तरफ जम गई । तैयार तो पूरी तरह हो चुकी थी बस नीचे से बुलावे का इंतजार था ।
अरे वाह ! क्या बात है ! कहीं जा रही हो क्या ? संचित पीछे के खंभे से चढ़कर उसकी बालकनी में और उसकी बालकनी से कमरे में आ चुका था।
संचित ! तुम पागल , बेवकूफ , नासमझ हो क्या ! कल मना किया था न कि आज घर मत आना फिर भी..। स्वीकृति उसे डांटते हुए कुर्सी से उठ खड़ी हुई।
आज ऑफिस में बॉस से झगड़ा हो गया था तो मन भारी हो गया था मेरा । तभी सोचा वापस जाते हुए एक बार तुमको गले लगा लूं तो सब अच्छा feel होगा । लेकिन आज तो तुम्हें देखते ही दिल गार्डन गार्डन हो गया। तुम आज उसी तरह सजी हो जिस तरह हम लोग तुम्हें देखने आएं थें, तब सजी थी। संचित बेड पर बैठ के जूते उतारने जा रहा है।
संचित नहीं यार please जाओ न । स्वीकृति ने उसे रोकते हुए कहा ।
ऐसे ही चला जाऊं ? कम से कम खाने पीने के लिए नहीं ल सकती मेरे लिए तो प्यार से दो बोल तो बोल ही सकती हो ।
दो नहीं हजार बोलूंगी लेकिन आज नहीं कल। अभी तुम चले जाओ बस, इससे पहले कि कोई आ जाएं कमरे में । स्वीकृति ने उसकी बांह पकड़ के उसे उठा दिया।
ऐसे ही भेज दोगी ?
हाँ बाबा जाओ न ।
ऐसे नहीं जाऊंगा ।
तो कैसे जाओगे ?
कैसे का क्या मतलब ? थोड़ा प्यार करो मुझसे , गले लगो नहीं तो बस छोटा सा kiss ही कर लो ।
Kiss? No way ! किसी ने देख लिया तो..
तो मैं ऐसे तो नहीं जाऊंगा। होठों पर न सही गालों पर ही कर लो ।
पक्का फिर चले जाओगे ?

हाँ मेरी जान तुम्हारी कसम । संचित ने उसकी कमर में हाथ डालते हुए अपना गाल आगे कर दिया। स्वीकृति ने घबराते हुए आहिस्ते से उसके गालों पर एक छोटा सा kiss दे दिया । लेकिन दोनों की किस्मत को अच्छा कहा जाएं या खराब ! ऐन मौके पर ही स्वीकृति की मम्मी दरवाजा खोल कर अंदर आ गई। सिर्फ वो ही आती तो ठीक था साथ में स्वीकृति को देखने आई आंटी भी थी। दोनों तेजी से अलग तो हुए लेकिन शायद तब तक उन्होंने सब देख लिया था ।
भाई… भाई चचेरा भाई है कृति का…! मम्मी ने बात संभालने की कोशिश की।
पाय लागू मम्मी जी । संचित ने झुक कर उनके पैर छुए।
हाँ वो तो दिख ही गया । भाई है? मम्मी जी बोलने वाला, लड़की से पप्पी लेने वाला भाई है ! बड़ी आई ! आंखों देखी मक्खी नहीं निगली जाती समझी । चल बेटा अशोक हम गलत लोगों के चक्कर में पड़ गए हैं। वो तुनकती हुई कमरे से निकल गई।
सुनिए तो..! मम्मी पीछे दौड़ी ।
लेकिन मम्मी जी ये हैं कौन ? मैने तो आज तक इन्हें नहीं देखा था। संचित भी पीछे-पीछे कमरे से बाहर आया। उसके बाद स्वीकृति भी निकली।
वो हो तो ये मामला था । संचित सीढ़ियों से नीचे उतरा तो टेबल पर सजे खाने और उन लोगों के जाने के अंदाज से ही समझ गया कि वो लोग स्वीकृति को देखने आए थें।
पड़ गई तुम्हारे कलेजे को ठंडक । भगा दिया इतने अच्छे लोगों को । मम्मी संचित पर चीखी।
तुम घर में आएं कैसे ? स्वीकृति के पापा भी भड़क चुके थें।
दरवाजे से तो आप आने नहीं देते है तो बालकनी से ही आना पड़ता है।
आना पड़ता है का क्या मतलब है तुम्हारा ?
पापा संचित का मतलब है कि उन्हें आज पहली बार बालकनी से आना पड़ा है । जैसे ही किसी से मेरे रिश्ते की बात इन्हें पता चली तो ये खुद को रोक नहीं पाएं। स्वीकृति ने बात संभालने की पूरी कोशिश की । संचित तब तक सोफे पर बैठ के समोसे खाने लगा था।
संचित तुम अभी के अभी मेरे घर से निकल जाओ और मेरी बेटी की जिंदगी से भी समझे ।
चला जाऊंगा पापा जी बस समोसे खत्म कर लूं। भूख लगी है बहुत तेज ।
ये पापा जी क्या होता है ? इज्जत से बात करो । मम्मी ने उसे गुस्से से देखा ।
इससे ज्यादा इज्जत कोई किसी को क्या ही दे सकता है मम्मी जी । हाँ नई तो …! कमाल करती हैं आप भी। संचित ग्लास में कोक भी डालने लगा।
रखो ये सब, तुम्हारे लिए नहीं है । अपने घर में खाना जाके । ऐसा लग रहा है इसे खिलाना भी इसके घर वालों को भारी पड़ रहा है। मम्मी ने संचित के हाथ से सबकुछ छीन कर साइड में रख दिया।
मम्मी ऐसा तो मत बोलो न please.
क्यों तुझे बड़ा बुरा लग रहा है । इसकी वजह से जो माँ बाप की बेइज्जती हुई वो नहीं दिखा तुझे ?
देखिए श्रीमती कुसुम बलदेव वर्मा जी , आपको जो भी कहना है मुझसे कहें मेरी पत्नी पर आपको आवाज ऊंची करने का कोई हक नहीं है। हाँ मानता हूँ आपके घर में रहती है लेकिन एक न एक दिन तो मेरे साथ जाएगी ही ।
हाँ जरूर जाएगी एक दिन लेकिन वो एक दिन इस जन्म में तो आएगा नहीं ये तुम भी सुन लो और उन्हें भी पता देना जिन्होंने तुम्हें यहाँ भेजा है।
संचित तुम जाओ यहाँ से और मम्मी आप भी अंदर चलो।
ऑफिस की झीकझीक के बाद स्वीकृति के घर पर हुए बवाल से संचित का मूड थोड़ा अपसेट था इसीलिए उसने स्वीकृति के फोन को कट कर दिया । बार-बार फोन आने पर फोन ही स्विच ऑफ कर लिया ।
भैय्या क्या कर रहो हो आप दोनों यार इतनी रात में भी सुकून से सोने नहीं दे सकते। मम्मी के बगल में लेटी थी मैं अगर मम्मी देख लेती भाभी की कॉल तो हंगामा ही हो जाता । लो पकड़ो बात कर लो भाभी से और फोन अपने पास ही रख लेना। संचित की छोटी बहन आधी नींद में चलते हुए छत पर आई थी क्योंकि स्वीकृति ने उसके नंबर पर भी कॉल की थी।
थोड़ी देर बात करने के बाद संचित का मूड अच्छा हो गया था इसीलिए वो फिर से अपने फनी मोड में आ गया।
अच्छा ये बताओ तुम्हारा नाम स्वीकृति है इसीलिए तुम किसी बात पर मना नहीं कर पाती या या कभी किसी को मना नहीं कर पाती इसीलिए घरवालों ने ये नाम रखा ?
तुम मान क्यों नहीं जाते कि मैं इस लड़के को भी मना कर देती जैसे पिछले तीन को किया था । अकेले में मिलते ही मैं लड़कों को हमारी शादी की फोटोज दिखा देती हूँ बस। इसके बाद लड़के खुद ही चले जाते हैं।
पहले भी तीन लड़के देख चुकी हो ?
क्या करूं न देखूं तो मेरे लिए जितने जरूरी तुम हो उतने जरूरी मेरे पेरेंट्स भी तो हैं।
हाँ यही होना भी चाहिए।
तुम बताओ न कब तक मना पाओगे हमारी फैमिलीज को ?
कोशिश तो कर रहा हूँ यार अब देखो …
मम्मी आ गईं । Bye… Love you.. Good night! Phone disconnect हो चुका था लेकिन संचित फोन को कान से लगाया मुस्कुराता रहा । काश उसने डेढ़ साल पहले दोनों के घर वालों की बात नहीं मानी होती । तो आज इतनी दूर से उसे love you बोलने की बजाय स्वीकृति उसकी बांहों में लेटी ये बोल रही होती ।
रायता बहुत धीरे-धीरे फैला था लेकिन इतना ज्यादा फैल चुका था कि स्वीकृति और संचित के समेटे नहीं आ रहा था। अगर दोनों ने छोटी-मोटी बात कहकर बातों को नजरअंदाज नहीं किया होता तो आज इस दिन की नौबत ही न आती ।
डेढ़ साल पहले दोनों की अरेंज मैरिज हुई थी लेकिन पहली ही नजर में दोनों को एक दूसरे से प्यार हो गया था। बिना किसी दान दहेज के शादी की बात पर तो स्वीकृति के पेरेंट्स इस रिश्ते को बिल्कुल भी अस्वीकार न कर सकें और फटाफट से दोनों की शादी बहुत धूमधाम से हो गई।
स्वीकृति बस पगफेरे की रस्म के लिए अपने ससुराल गईं थीं। विदाई की रस्म साल भर बाद रखी गई क्योंकि स्वीकृति की दादी काफी बीमार थीं और चाहती थीं कि उनके अंतिम दिनों में स्वीकृति उनके सामने ही रहें । इस बात पर संचित के घर वाले नाराज हुए थें लेकिन रिश्तेदारों के समझाने पर मान गएं थें।
शादी के तीन महीने बाद ही दादी गुजर गईं। उस समय संचित और उसकी छोटी बहन संजना ही स्वीकृति के घर आ सकें। उनके मम्मी पापा को चाचा जी की बहू को देखने जाना पड़ा जिनका एक्सीडेंट हो गया था ।
“देख रहे हो अपनी बहू से ज्यादा दूसरों की बहू की फिक्र है उनको तो ।” रिश्तेदारों ने इतनी सी बात का बतंगड़ बनाना शुरू कर दिया था । स्वीकृति और संचित ने इसे हल्के में लेकर इग्नोर कर दिया ।
शादी के पाँचवे महीने में स्वीकृति की मम्मी का पैर सीढ़ी से गिरकर टूट गया था । इसबार भी परिस्थिति ऐसी बनी कि सिर्फ पापा और संजना ही उन्हें देखने हॉस्पिटल पहुंच पाएं। संचित अपनी माँ के साथ बड़ी बहन के ससुराल गया था क्योंकि उनकी डिलीवरी होने वाली थी। ये बात भी स्वीकृति की मम्मी को बहुत खटक गईं थीं।
शादी के छठे महीने में स्वीकृति की फैमिली ने सालों से चल रहे पाँच करोड़ की जमीन का केस जीता था लेकिन फोन करके एक बार भी संचित के घर वालों को नहीं बताया, ये बात उसकी मम्मी को खराब लग गई। सातवें महीने में पड़ोसी ने मम्मी को स्वीकृति की वीडियो दिखा दी जिसमें स्वीकृति एक हेलमेट वाले लड़के के साथ बाइक पर चिपक के बैठी है और अपना हाथ कभी कमर तो कभी उसके सीने पर कस दे रही है ।
इस वीडियो पर संचित ने सफाई भी दी थी कि ये उनका बेटा ही है। लेकिन मम्मी को आज भी लगता है कि ये उनकी बहू को बचा रहा है क्योंकि उसके पास तो बाइक है ही नहीं ।
ठीक ऐसा ही वीडियो स्वीकृति की माँ के हाथ लगा जो उनके बेटे के दोस्तों ने शूट किया था । जिसमें नाइट क्लब में संचित किसी लड़की की कमर में हाथ डाले झूम रहा है। पूरा फोकस संचित पर ही होने से लड़की का चेहरा साफ नहीं दिखा । लेकिन ये स्वीकृति नहीं हो सकती ।क्यों? क्योंकि उनकी बेटी इतनी संस्कारी है कि अपने पति के सामने खुल कर बात न कर सकें तो डांस कहाँ से करेगी।
शादी के नौवें महीने में सबसे बड़ा हंगामा हुआ जब अपने छोटे बेटे के अब्रॉड जाने की खुशी में स्वीकृति की फैमिली ने एक पार्टी रखी । जिसमें संचित और उसके पापा ही आएं । वजह संजना के एग्जाम्स चल रहें थें और मम्मी आना ही नहीं चाहती थीं।
“पूरी फैमिली साथ नहीं आ सकती शायद उन्हें लगता है कि सबके साथ आ जाने पर हमारे घर में खाना कम पड़ जाएगा । बताइए भीखमंगे लगते हैं क्या हम लोग?” मम्मी ने ये बात अपनी खास सखियों के बीच कहीं थीं लेकिन यही बात समाचार की तरह इसके विपरीत होकर संचित के घर तक पहुंची। रिश्तेदारों ने आग में इतना घी डाल दिया था कि उससे हवन तो क्या पूरा घर भी जल सकता था ।
सुन लिया आपने ! वो लोग भीखमंगा समझते हैं हम लोगों को । इसीलिए बहु को नहीं भेज रहें थें उन्हें लगता है कि हम उनकी बेटी को खिला नहीं सकते हैं। बोल रहें हैं कि हम सब के आने से उनका खाना कम पड़ जाएगा । इतना भूखा समझ के रखा है हम लोगों को । अभी बताती हूँ इसको मैं। मम्मी किसी मकई के दाने जैसे फूट पड़ी थी।
फिर तो फोन पर बहुत ही घमासान हुआ । उधर से कहा गया कि लड़का आवारा है इसीलिए दहेज नहीं लिया गया तो इधर से जवाब था कि लड़की छिछोरी है तभी फटाफट ब्याह निपटा दिया । वो लोग बोलें कि तुम लोग भीखमंगे हो , तो ये लोग बोले कि तुम लोग कंजूस हो । उन्होंने कहा कि भाग्य ही फूटे थें जो ऐसा दामाद मिला , इधर से जवाब गया कि “हमारी तो किस्मत अच्छी थी जो ऐसी बहू घर में न आने पाई।”
उधर से जवाब मिला कि ऐसे भिखमंगों के घर वो अपनी बेटी नहीं भेजेंगे और इन लोगों ने कहा कि ऐसे कंगालों की बेटी वो लाएंगे ही नहीं। कुत्ते बिल्ली की तरह दोनों परिवार एक दूसरे से लड़ रहें थें और घर के कोनों में खड़े स्वीकृति और संचित बस तमाशा देखने भर के रह गएं थें।
दोनों की अंडरस्टैंडिंग काफी अच्छी थी और काफी टाइम फोन पर कनेक्ट भी रहते थे इसीलिए उन दोनों के बीच कोई मिसअंडरस्टैंडिंग तो न हुई लेकिन अपने परिवारों को वो इससे बचा न सकें।
बात इतनी बिगड़ चुकी थी कि साल भर के अंदर ही तलाक के कागज बनकर तैयार हो चुके थें। लेकिन न संचित ही पेपर्स पर साइन कर रहा था और न स्वीकृति ही इस बात पर तैयार थी। दोनों सीधे तौर पर अपने घर वालों का विरोध नहीं कर रहें थें बल्कि बहाना ही बनाते रहते हैं। दोनों तलाक के मामले में बस इतना ही कहते – ” पहले उधर से तो कागज आने दीजिए , रिश्ता तोड़ने का इल्ज़ाम हम अपने सर क्यों ले !”
इसी तरह के बहाने बनाते हुए दोनों को लगभग 10 महीने से ऊपर हो चुका था । लेकिन लगता है अब इस बहाने से भी कोई काम नहीं होने वाला क्योंकि स्वीकृति की शादी के लिए लड़के ढूंढे जा रहें हैं यही बात संचित के घर में भी चल रही है कि अच्छी लड़की देखकर संचित की भी जल्दी से शादी हो जाएं।
अगले दिन ऑफिस से लौटने पर रास्ते में पड़ते स्वीकृति के घर को जब संचित ने देखा तो उसका दिल टूट गया। दोनों के मिलने का एक ही साधन था , बालकनी । उस पर भी जाली लगवा दी गई थी। स्वीकृति बालकनी पर ही खड़ी थी उसने हौले से हाथ हिलाया। जवाब में संचित ने भी उसे Hi बोला और थोड़ी देर एक दूसरे को देखकर अपना मन भर लिया।
दोनों अपने घरवालों को मानने के लिए जी जान से लगे हुए थें लेकिन वो लोग तो बिल्कुल बर्फ की तरफ सख्त बने पड़े थे।
सारे पैंतरे अजमाने और अनचाहे रिश्तों को मना करने के बाद संचित ने सोच लिया कि अब वो स्वीकृति को भगा कर ही ले जाएगा। जब ये आइडिया उसने स्वीकृति को बताया तो उसने साफ इनकार कर दिया ।
लोग क्या कहेंगे कि देखो वर्मा जी की लड़की भाग गई। मेरे पापा की इज्जत तो मिट्टी मिट्टी में मिल जाएगी।
गलत ! लोग तो ये कहेंगे कि अपने घर वालों के सितम से तंग आकर पति-पत्नी घर छोड़कर चले गएं है।
देखो मैं ऐसा नहीं कर सकती ।
ठीक है सोच लो अगर ऐसा न कर सके तो बता देना फिर मैं भी रोज-रोज अपने पैरेंट्स को दुखी नहीं कर पाऊंगा ।
संचित समझो मैं उनकी बेटी हूँ।
और मेरी better half भी तो हो ।
संचित को महीने भर से ज्यादा हो गया था स्वीकृति को समझाते हुए । तब जाकर कहीं स्वीकृति ने साथ में भाग जाने की स्वीकृति प्रदान की।
बहुत हिम्मत जुटा कर स्वीकृति रात के अंधेरे में कमरे से निकल कर सधे कदमों से लॉन तक आई थीं लेकिन नीचे पहुंचते ही उसकी हिम्मत जवाब दे गईं । सामने संचित था और पीछे उसकी फैमिली , उसके पैर आगे नहीं बढ़ पाएं। स्वीकृति ने संचित को वापस जाने के लिए बोल दिया क्योंकि वो अपने पेरेंट्स को धोखा नहीं दे पा रहीं थीं। ऐन मौके पर फैसला पलटने पर संचित को बहुत गुस्सा आया लेकिन फिर भी उसने प्यार से बात करने की कोशिश की । फिर भी स्वीकृति ने इनकार कर दिया और अपना सामान लेकर वापस घर के अंदर जाने लगी। अब संचित के पास कोई दूसरा चारा नहीं था।
I can’t live without you. कहते हुए संचित ने उसे पीछे से पकड़ कर उसे गोद में उठा लिया । स्वीकृति ने छुड़ाने की बहुत कोशिश की लेकिन उसने जरा सी भी ढील न दी। आया तो बेचारा पति बनकर ही था लेकिन जाते हुए एक किडनैपर बन चुका था।

अगली सुबह दोनों के घर वालों को उनके लिखे खत मिले तो हंगामा मच गया। हंगामा इतना शांत था कि किसी को पता न चले लेकिन कहते हैं न कि दीवारों के भी कान होते हैं।
सुना है , आपका बेटा अपनी बीवी को भगा ले गया है। पड़ोसी ने मजे में पूछा ।
किसने कहा ये झूठ ? दोनों तो बेचारे अपना नया घर सजाने गएं हैं। इसी घर लेने के चक्कर में ही तो हम लोग रुके थें अभी तक । अब उनका खुद का घर हो गया है तो विदाई भी हो जाएगी ।
रिश्तेदारों और पड़ोसियों के मजाक से तंग आकर दोनों परिवारों ने विदाई की तैयारियां शुरू कर दी ।
हम तो जानते थें कि हमारी बहू किसी बेगाने लड़के के साथ बाइक पर थोड़े घूमेगी ।
हम खुद ही जानते थें कि हमारा दामाद कभी किसी दूसरी औरत को छू भी नहीं सकता , नाचना तो दूर की बात है।
दोनों की मम्मियों को भरोसा हो गया था कि वो साथ मे भाग सकते है तो कुछ भी कर सकते हैं।
“दो दिन बाद संचित को अपनी email पर msg मिला – बेटा घर वापस आ जाओ दोनों लोग । हम लोग स्वीकृति की विदाई के लिए तैयारी कर रहें हैं । यहाँ आकर इज्जत से अपनी धर्मपत्नी को लेकर जाओ।” संचित ने mail पढ़ने के बाद मुस्कुराते हुए लैपटॉप को देखा फिर अगली निगाह बेड पर अलसाई पड़ी स्वीकृति पर डाली । स्क्रीन बंद करके संचित ने एक अंगड़ाई ली और कुर्सी से उठ गया।
Honeymoon बहुत हो गया जानेमन , अब चलो सुहागरात मनाते हैं चल कर । उसने स्वीकृति की चादर खींच कर उसे नई सुबह के लिए जगाया।
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