The guardian – A love story beyond societal norms part 2

                   The guardian – A love story beyond societal norms part 2

The guardian – A love story beyond societal norms कहानी के पहले भाग में आपने पढ़ा कि गर्ग जी और उनका बेटा अनिरुद्ध अकेले रहते हैं। पढ़ाई के सिलसिले में उनकी परिचित मीनाक्षी भी उनके शिफ्ट हो जाती हैं। गर्ग जी उसे अपनी बेटी मानते हैं लेकिन अनिरुद्ध उसे अपनी बहन नहीं स्वीकार करता , वो मीना को कोई बॉयफ्रेंड बनाने से भी मना करता है। रक्षाबंधन के दिन मीनाक्षी से राखी न बंधवाने के लिए अनिरुद्ध घर से चला जाता है जिससे गर्ग जी गुस्सा हो जाते हैं। अब आगे –

गर्ग जी को जितना भी गुस्सा था वो सब केवल मिनाक्षी को दिखाने भर का था। अनिरुद्ध के घर आने पर वो पहले की तरह ही सामान्य हो चुके थें।

वक्त तेजी से बीतता जा रहा था दुनिया के लिए भी और अनिरुद्ध मीनाक्षी के लिए भी । जब तक अनिरुद्ध मीनाक्षी के साथ खुद college जाता था तब तक उसे कोई भी दिक्कत या डर नहीं महसूस हुआ था। लेकिन अपना एमटेक खत्म हो जाने के बाद जब से उसे घर पर रहना पड़ा तब से उसे मीनाक्षी को लेकर इनसिक्योरिटी फील होने लगी। इसीलिए वो मीनाक्षी से ज्यादा खुलकर बातचीत करने लगा। उसकी पढ़ाई , दोस्तों और घूमने फिरने के बारे में । उसके इस खुले स्वभाव को देख कर मीनाक्षी का डर भी खत्म होने लगा था वो भी खुशी- खुशी सारे बातें अनिरुद्ध से शेयर करती थी ।

Sunday के दिन दोनों साथ में पक्की सहेलियों की तरफ पूरे खानदान की चुगली करते।
कभी-कभी अनिरुद्ध मिनाक्षी के कॉलेज के बाहर तक उसे छोड़ भी आता और बिना उसके मांगे अपनी जेब से कभी पांच सौ तो कभी हजार रुपए निकाल कर उसके हाथ में रख देता था। मिनाक्षी भी बिना आपत्ति किए खुशी से मुट्ठी बंद करके कॉलेज के अंदर भाग जाती थी।

दोनों की दोस्ती देख कर गर्ग जी बड़े खुश होते थें । चलो “देर से ही सही उसे अपनी बहन तो मान लिया ।” वो मन में ही सोचते ।
लेकिन उनकी खुशी स्थाई नहीं थी। पास-पड़ोस से उन्हें जिस तरह की बातें लोगों के मुंह से सुनने को मिली उससे उन्हें धक्का लगा । इसके बाद उन्होंने पड़ोसियों के पास जाना लगभग कम कर दिया था । उन्हें अपने बेटे के बेरोजगार होने के ताने बर्दाश्त थें लेकिन उसके चरित्र पर एक दाग भी बर्दाश्त नहीं था।

एक दिन गर्ग जी अनिरुद्ध के कमरे में किसी काम से गएं थें। अनिरुद्ध इस समय बाजार गया हुआ था । उसकी टेबल पर किताब खुली हुई रखी थी।
कैसे पढ़ता है ? Notes highlight करता है कि ऐसे ही बस ऊपरी निगाह से पढ़ता है। ये देखने के लिए उन्होंने किताब पलटनी शुरू कर दी। कुछ पन्ने पलटे ही थें कि उन्हें एक तस्वीर दिखी। तस्वीर को हाथों में लेकर देखा तो मीनाक्षी के टीन एज की फोटो थी। लगभग पांच साल पहले जब वो यहाँ आई थीं।

गर्ग जी खुद को यकीन दिलाते हुए फोटो को पन्नों में दबा कर कमरे से निकल गएं।
पापा आपने बुलाया था? घर आते ही मीना से जैसे ही पता चला कि पापा उसे ढूंढ रहें हैं वो तुरंत छत पर पहुंच गया ।
तुम कोई job क्यों नहीं कर रहे बेटा ? तुम्हारे दोस्त तो अमेरिका , जर्मनी और पता नहीं कहाँ कहाँ चले गए।
पापा अभी तक कोई सूटेबल ऑफर नहीं मिला है।

सूटेबल ऑफर ? 50 लाख , 90 लाख , डेढ़ करोड़ ये सब तुम्हारे लिए सूटेबल ऑफर नहीं थें ?
आपको ये सब किसने बताया ?
मुझे पता सब है अनिरुद्ध बस मैं बोलता नहीं हूँ तुम्हारी खुशी के लिए ।
पापा मैं आपको साफ बता देना चाहता हूँ कि अगर मुझे इंदौर में ही नौकरी मिली तो करूंगा वरना मैं अपनी पार्ट टाइम जॉब्स से ही खुश हूँ।

बाहर क्यों नहीं जाना चाहते हो ?
पापा मैं आपको अकेला छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगा।
मैं अकेला कहाँ तुम्हारी बहन भी….

पापा मैं आपको एक और बात बताना चाहूंगा कि मीनाक्षी मेरी बहन नहीं है । मैंने न कभी उसे बहन माना था और न मानता हूँ। आप उसे बेटी मानते है अच्छी बात है लेकिन मैं उसे प्यार करता हूँ।
तुम क्या कह रहें हो जानते हो न ? वो तुम्हारी मौसी …
वो मेरी मौसी नहीं.. मेरी मम्मी की जेठानी की बहन की बेटी है ।

लेकिन समाज के हिसाब से तो तुम्हारी बहन ही मानी जाएगी बेटा !
पापा मैं इतना जानता हूँ कि कोई भी रिश्ता हो तो दिल से बनता है , समाज के दबाव से नहीं ।

देखो बेटा ये परिवार की बात है । पास पड़ोसियों में बदनामी का डर है । फिर भरोसा करके ममता बहन ने मुझे अपनी बेटी सौंपी थी ताकि निकिता लोगों की तरह उसे भी तुम अपनी बहन मानकर प्रोटेक्ट करो।

उसे प्रोटेक्ट करने के लिए मुझे उससे राखी बंधवाने की कोई जरूरत नहीं है पापा। दो सालों से मैं उसे प्रोटेक्ट ही कर रहा हूँ और आगे भी करता रहूंगा । अगर मेरी हुई तो पति बनकर न हुई तो दोस्त बनकर लेकिन कभी उसे बहन नहीं मानूंगा।
तुमने उससे बात करके देखी है ?

अभी तक तो नहीं क्योंकि मैं पहले आपसे बात करना चाहता था और उसके बारे में भी पता है कि वो मना नहीं करेगी ।
बेटा मैं फिर कहूँगा अभी छोटे हो दोनों लोग। थोड़ा टाइम लो दुनिया को देखो फिर सोचो आगे क्या करना है।

पापा 24 का हूँ मैं और वो 20 की । जब 17 का था तबसे खुद को टाइम ही दे रहा था अगर आप उसे दोबारा इस घर में न लाएं होते तो शायद सम्भाल लेता खुद को। आप जो हमेशा मुझसे पूछते रहते हैं गर्लफ्रेंड क्यों नहीं बनाते, लड़कियों से चिढ़ क्यों रखते हो ? मुझे कभी किसी से भी चिढ़ नहीं रही बस किसी के करीब नहीं जा पाया मीनाक्षी की वजह से। अनिरुद्ध ने गहरी सांस लेकर सब कह दिया।

तो इतना पहले से चल रहा था ये सब तुम्हारे दिमाग में ! मुझे पहले बता देते तो ये अनर्थ होने से रोक लेता मैं।
अनर्थ ?
पापा प्यार किया है मैंने उसे और प्यार कोई अनर्थ नहीं होता ।
अनिरुद्ध की बात सुनकर गर्ग जी थोड़ा मुस्कुराए फिर गहरी साँस छोड़ते हुए उससे बोले –

बेटा प्यार करना न अनर्थ है और न गलत लेकिन किसी से प्यार का वादा करके समाज के दबाव में उसे छोड़ देना जरूर गलत है । अब तुम जो ये प्यार के दावे कर रहें हो मेरे सामने, कल को समाज के सामने भी इसी तरह अकड़ के खड़े हो सकोगे ?
पापा मेरे लिए मेरी दुनिया और मेरा समाज सब आप तक ही सीमित है । आपके बाद अपनी सफाई सिर्फ ऊपर वाले को दूंगा ।
अगर बड़े भैया लोग नहीं माने , मीना के परिवार वाले भी नहीं तैयार हुए तब तुम क्या करोगे ?

अगर आपने और मीना ने साथ दिया तो बाकी सब को खुद ही सम्भल लूंगा।
अगर मीना ने कदम पीछे खींचे ?
अगर उसने दो कदम पीछे खींचे तो मैं दस कदम पीछे खींच कर हमेशा के लिए उसकी जिंदगी से चला जाऊंगा।

चलो ठीक है भाई ! अब लग रहा है कि मेरी जिम्मेदारी कुछ कम हुई आज तुम बड़े हो गएं हो। पर बेटा मेरी एक बात हमेशा याद रखना । तुम्हारे पापा को सब उनकी जबान के लिए जानते है इसीलिए आज की अपनी किसी भी बात से मुकरने से पहले सौ दफा सोचना । आज से मैं मीना की और उसके परिवार की जिम्मेदारी तुम्हें सौंप रहा हूँ। गर्ग जी कुर्सी से उठ खड़े हुए।

पापा आपने मुझे यहाँ सिर्फ इतना ही पूछने के लिए बुलाया था ?
सीने में हल्का दर्द हो रहा था इसीलिए सोचा डॉक्टर को दिखा आऊं लेकिन अब उसकी कोई जरूरत नहीं है।
आपने पहले क्यों नहीं बताया पापा ! मैं ही बेवकूफ हूँ जो इस सिचुएशन में ऐसी बातें करने लगा । पापा अभी चलो हॉस्पिटल….

बेटा अब कोई जरूरत नहीं है बताया तो । रोज-रोज दवा खा के थक चुका हूँ यार ! तुम्हारी माँ से वादा किया था कि तुम पहुंचो बस तुम्हारे बेटे को कहीं सेट करके आता हूँ। आज वो भी दिक्कत खत्म हो गई ।
पापा ये क्या अनाप शनाप बोल रहें है मैंने बोला न मैं आपको डॉक्टर के पास …

और मैने भी मना किया न । समझा करो यार ! पिछले 7 सालों से एक ही सपना देखता हूँ कि तुम्हारी माँ के साथ स्वर्ग की झील में नाव चलाने जा रहा हूँ । उसे नाव में बिठा कर जैसे ही खुद चढ़ने जाता हूँ वैसे ही दवा की वजह से गहरी नींद आ जाती है और सपना अधूरा रह जाता है। अब मुझे ये सपना पूरा देखना है इससे पहले कि वो गुस्से में किसी और के साथ नौकविहार करने लगे।

पापा आप ये कैसी बातें कर रहें हो ? आपको दवा की जरूरत है ।
जैसी बातें मेरा दिल कर रहा है। देखो मैंने तुम्हारी सारी बातें मानी हैं ,आज तुम मेरी ये बात मान लो मुझे कोई भी दवा मत खिलाओ ।
पापा ! अनिरुद्ध बेबस सा रह गया।

एक और बात अनिरुद्ध अबकी बार तुम्हें जो भी पैकेज मिला है उसे मना मत करना। तुम वो नौकरी पकड़ के मीनाक्षी के साथ इस शहर से निकल जाना ।
नहीं पापा आपको छोड़ के नहीं ।
अनिरुद्ध की इस बात पर गर्ग जी ठहाका मार के हँसे और पलटकर उसे गले से लगा लिया ।
मुझे हमेशा गर्व रहेगा कि तुम मेरे बेटे हो ।
लेकिन पापा मुझे इस बात का घमंड रहेगा कि आप मेरे पापा हैं। अनिरुद्ध ने भी उन्हें टाइटली हग किया।

The guardian - A love story beyond societal norms
The guardian – A love story beyond societal norms 

क्षणिक आलिंगन के उपरांत गर्ग जी छत से जाने लगे तो अनिरुद्ध ने छत की लाइट जला दी क्योंकि शाम से अब रात हो चुकी थी। लाइट जलाते ही सीढ़ियों पर मीनाक्षी खड़ी दिखी । उसके हाथ में चाय की प्लेट थी जिस पर तीन कप चाय रखी थी। लेकिन उसका सर नीचे झुका था । शायद उसने सारी बातें सुन ली थीं।
बेटा अब तो चाय का नहीं खाने का समय हो गया है। गर्ग जी मीनाक्षी के सर पर हाथ फेरते हुए बोले ।

लेकिन तुम चाय लाई हो तो … गर्ग जी ने अपना कप उठाया और एक सांस में ही पी गएं क्योंकि चाय बिल्कुल ठंडी हो चुकी थी। उनके इशारे पर अनिरुद्ध ने भी आगे बढ़ कर एक कप उठाया और चाय पी ली।
बेटा चाय अच्छी बनी है तुम भी पीकर देखो। प्लेट उसके हाथ से लेकर मीना के हाथ में कप पकड़ा दिया। उसने भी एक ही घूंट में चाय खत्म कर दी ।
अनिरुद्ध नीचे चलो बेटा । उनकी बात सुनते ही अनिरुद्ध बगल से होता हुआ नीचे चला गया।

 

बेटा तुमको हमेशा अपनी बेटी की तरह माना है लेकिन आज तुम्हें बहु मानते हुए अपने बेटे की जिम्मेदारी तुम्हें सौंप रहा हूँ।मगर देखो अगर तुम्हें कोई और पसंद हो या अनिरुद्ध न पसंद हो तो तुम मुझे अभी बता दो ।

मिनाक्षी ने कोई जवाब नहीं दिया उसका सर झुका ही रहा।
मीना अगर ये रिश्ता मंजूर न हो तो अनिरुद्ध को पूरे अधिकार से मना कर देना कोई जरूरत नहीं है उससे डरने या उसका अहसान मानने की। जो किया है तुम्हारे बाप ने किया है और तुम्हारा बाप यहाँ खड़ा है तुम्हारे साथ हमेशा हमेशा के लिए।

पा…पा ! मीनाक्षी रोते हुए गर्ग जी से लिपट गई। इतने सालों से आत्मीय सम्बन्ध होने के बावजूद थी आज पहली बार मीनाक्षी को लगा कि उसके खुद के पापा उसके सामने खड़े है।
हाँ मेरा शेर बेटा । उन्होंने उसका माथा चूमा ।

छत पर ही काफी टाइम हो जाने से आज खाना न बन पाया था इसीलिए अनिरुद्ध रसोई में आते ही खाना बनाने की तैयारी करने लगा । थोड़ी देर बाद गर्ग जी और मीना भी किचन में आकर एक दूसरे की हेल्प करने लगें।
अनिरुद्ध को रोटी बनाने का काम सौंपकर मीना और पापा आंखों ही आंखों में उसकी जली और नक्शेदार रोटी देख कर हँस रहे थें। दोनों में से जिसे ज्यादा तेज हँसी आती वो या तो मुंह बंद कर लेता या बाहर जाकर हँस आता।

आज खाने की टेबल पर सब्जी- चावल की तरह दुनिया भर की बातें भी परोसी जा रही थीं। शाम की घटना को पूरी तरह से भुलाकर सब कुछ सामान्य हो चुका था।
अनिरुद्ध और मीना की रोजाना वाली बहस , थोड़ी देर टीवी और फिर मीना के हाथों से गर्ग जी की चंपी। सब कुछ सामान्य था । लेकिन क्या सबकुछ वाकई सामान्य था ?

हाँ रात तक वो सामान्य था सुबह की पहली किरण के साथ विकराल बन चुका था। सब कुछ असमान्य और गतिहीन हो चुका था। रात के बर्तन , सुबह की चाय और गर्ग साहब ..!
पूरे शांत वातावरण में सिर्फ एक तेज चीख सुनी अनिरुद्ध ने मीना की और भागते हुए कमरे में पहुंचा तो फिर वैसी ही शांति …! पापा मुस्कुरा रहे थें लेटे हुए। उनके सीने पर मम्मी की तस्वीर है। लगता है कल रात पापा ने सपना पूरा देखा था ।

पूरा घर जिस तेजी के साथ भरा था उसी तेजी से खाली भी हो गया । सबने सामने से आकर सांत्वना दी , अच्छी बातें बोली और अपने कर्तव्य से मुक्ति पा ली । लेकिन पीठ पीछे जो बोला उसे भी अनिरुद्ध ने सुना ।
सबके चले जाने के चार दिन बाद मीना ने हिम्मत करके खाना बनाया और थाली परोस कर अनिरुद्ध के कमरे में ले गई।
खाना खा लीजिए थोड़ा सा । अनिरुद्ध फर्श पर सर झुकाए बैठा था।

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मुझे भूख नहीं है । तुमने कुछ खाया ?
मुझे भी भूख नहीं है।
तुम खा लो मीना तुम्हारे एग्जाम्स शुरू होने वाले है। अगर सेहत का ध्यान नहीं रखेगी तो पढ़ नहीं पाओगी।
पता नहीं एग्जाम्स दे भी पाऊंगी या नहीं ।

क्यों ?
मौसा लोग घर बुला रहें हैं। कह रहें हैं वहीं से एग्जाम्स दिल देंगे बस।
ऐसे तो मैं भी कहूं कि मुझे जॉब मिल रही है UK में मेरे साथ चलो वहीं से एग्जाम्स दिलाने आ जाऊंगा। तो चलोगी मेरे साथ ?
आपकी बात अलग है और उनकी बात अलग ।

क्या अलग है भाई ? बस इतना ही कि मैं तुमसे प्यार करता हूँ और उन्हें तुमसे सामाजिकता निभावनी है बस।
आप जानते हैं ऐसा नहीं हो पाएगा ।
क्या नहीं हो पाएगा ?
समाज इस रिश्ते को स्वीकार नहीं करेगा ।

समाज की परवाह उसी दिन छोड़ दी थी मैने जब मम्मी के ऑपरेशन के लिए 20 लाख चाहिए थे, सिर्फ पाँच लाख लाख की वजह से मेरी मम्मी चली गईं थी।इसीलिए समाज को अस्वीकारते हुए मुझे बस तुम्हारी स्वीकृति से मतलब है।
मीना ने कोई जवाब न दिया सर झुकाए खाने की थाली को देखती रही।
मीनाक्षी तुमने मुझे कभी प्यार किया है या सिर्फ बड़े भाई की नजर से ही देखती आई हो ?

पता नहीं । अब भी उसका सर झुका था।
अनिरुद्ध ने बीच से थाली अलग हटा दी और मीना को अपनी तरफ खींच लिया ।
मेरी आँखों में देख कर कहो जो भी कहना हो । अनिरुद्ध के इस तरह पकड़ने पर मीनाक्षी सन्न रह गई। अपनी पूरी ताकत लगाकर बड़ी मुश्किल से खुद को उससे अलग कर पाई । छूटते ही डर की वजह से और भी पीछे खिसक के बैठ गई। अनिरुद्ध ने भी गिल्ट में भरकर अपना सर घुटनों में छुपा लिया, शायद वो रो रहा था।

थोड़ी देर बाद उसे अपने सर पर एक हाथ महसूस हुआ । सर उठाया तो मीना ने उसके मुंह में उसी तरह रोटी का कौर डाल दिया जैसे 7 साल पहले खिलाया था। अनिरुद्ध ने भी कौर तोड़कर उसके मुंह में डाल दिया।

मीना अपने एग्जाम्स में व्यस्त थी और अनिरुद्ध वीजा और पासपोर्ट बनवाने में । साथ चलने की स्वीकृति मीना ने नहीं दी थी लेकिन उसने मना भी नहीं किया था। उनकी कन्फ्यूजिंग पर्सनैलिटी देखकर अनिरुद्ध ने उसकी मम्मी से बात की थी। इस रक्षाबंधन पर सुनीत से भी बात करने की सोची है उसने क्योंकि अब वो भी मैच्योर हो चुका है ।

मीनाक्षी राखी बांधने की तैयारी कर रही थी और अनिरुद्ध सुनीत के लिए चाय बना रहा था। मीनाक्षी जब तक सुनीत को राखी बांधती तब तक बड़ी मम्मी भी आ चुकी थी। उन्हें देखकर मीनाक्षी हैरान हुई क्योंकि वो पापा की डेथ के टाइम भी नहीं आई थीं।

अरे बेटा सिर्फ सुनीत को अकेले क्यों अनिरुद्ध कहाँ है, उसे भी तो बांधो ?
मासी वो चाय बना..
अरे बाद में बना लेगा । अनिरुद्ध… बेटा आ जाओ राखी बंधवा लो अपनी बहन से।
मेरे पास सिर्फ एक राखी है।

कोई बात नहीं मैं देती हूँ न । उन्होंने अपनी पर्स से राखी निकाल कर थाली में रख दी।
प्रणाम बड़ी मम्मी ! अनिरुद्ध ने झुक कर आशीर्वाद लिया।
बड़ी मम्मी ये राखी आप वापस रख लो इनका एक भाई है उसे ही राखी बंधेंगी।
एक कैसे तुम भी तो …

जी नहीं । मेरे लिए निकिता , अनीता ही काफी हैं।
तो तुम राखी नहीं बंधवाओगे ? लेकिन क्यों?
ये आपने अपनी बहन से पहले ही पता कर लिया होगा।
मीनाक्षी अपना सामान पैक करो और अभी मेरे साथ चलो। तुम्हें इससे डरने की कोई जरूरत नहीं है और न यहाँ साथ रहने की।

मासी मेरी पढ़ाई…!
पढ़ाई जरूरी है या इज्जत ? मौसा जी देख लेंगे बस तुम साथ चलो।
वो नहीं जाएगी ।
देखती हूँ कैसे नहीं जाएगी।
मैं भी देखता हूँ उसकी मर्जी के बिना आप उसे कैसे ले जाएंगी।

मीना जो भाई-बहन के रिश्ते की कदर न रख सके वो किसी चीज की इज्जत नहीं रख पाता बेटा । तू मेरे साथ चल इससे भी अच्छे लड़के से तेरी शादी कराउंगी मैं। उन्होंने मीना का हाथ कसके पकड़ लिया।
मासी हाथ छोड़ो मेरा । मीना हाथ छुड़ाने की कोशिश करने लगी
बड़ी मम्मी मैं आपकी इज्जत करता हूँ इसीलिए प्यार से कह रहा हूँ उसका हाथ छोड़ दीजिए।

बात ज्यादा बिगड़ती इससे पहले सुनीत ने उठकर उनका हाथ खींच कर छुड़ा दिया।
मासी दीदी को अपनी जिंदगी का फैसला खुद लेने दीजिए।
मासी मैं नहीं जाऊंगी।
क्या ? हे भगवान छोटे भाईसाहब ये सब देखते होंगे तो क्या बीतेगी उनकी आत्मा पर ।

उन्होंने ही मुझे बहू मानकर अपने बेटे की जिम्मेदारी सौंपी थी, उन्हीं की खुशी के लिए तो इन्हें अकेला नहीं छोड़ पाऊंगी।
अच्छा तो सुन लो तुम दोनों आज से हमारे परिवार के साथ सारे सम्बन्ध खत्म हो गएं हैं तुम लोगों के।
अपनी माँ- पापा की मिट्टी के साथ मैंने उनके सारे सम्बन्ध भी दबा दिए हैं मिसेज गर्ग । अब आप जा सकती हैं।
बड़ी मम्मी अपना बैग उठा कर तमतमाई हुई घर से निकल गईं।

मैं देखता हूँ घर में कोई बड़ा बखेड़ा न खड़ा कर दे जाकर। पीछे से सुनीत भी अपना बैग लेकर भागा। मीनाक्षी दरवाजे तक भागी-भागी उसके साथ आई और ठिठक कर वहीं रुक गई। उसके आँखों से आँसू बहने लगे थें।
पीछे से अनिरुद्ध ने कंधे पर हाथ रखा तो उसके सीने पर सर रख के रोने लगी।
रोती क्यों हो अकाउंट में पहली सैलरी आते ही ऐसे ही रिश्तेदार सबसे पहले आएंगे। अनिरुद्ध ने उसका माथा चूमा तो उसने अपना पूरा शरीर ढीला छोड़ दिया।

The end . THANKS FOR READING

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